Munich massacre: खुले आसमान के नीचे बिखरी थी लाशें, सन्न थी दुनिया; अब क्यों याद आई 52 साल पुरानी मोसाद के बदले की वो कहानी

1 month ago

Munich Olympics Massacre: इन दिनों पेरिस ओलपिंक 2024 चर्चा का विषय बना हुआ है. दुनियाभर में स्पोर्ट्स के इस सबसे बड़े इवेंट को लेकर उत्साह का माहौल बना हुआ है. ऐसे में सोशल मीडिया से कुछ खास तस्वीरें सामने आई है. दुनिया में इस समय ओलंपिक खेलों से जुड़ी दो चीजों की चर्चा हो रही है. पहली तो ओलंपिक की मेडल टैली और दूसरी म्यूनिख ओलंपिक के दौरान हुई उस आतंकी वारदात की जब फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने इजरायल के खिलाड़ियों और एथलीटों की खुलेआम हत्या कर दी थी.

इंटरनेशनल इवेंट में हमले की वजह थी पर्सनल!

उस आतंकवादी हमले की वजह भले ही पर्सनल थी लेकिन उसने पूरी दुनिया को झकझोर के रख दिया था. जर्मनी के म्युनिख में खेलों का महाकुंभ चल रहा था. दुनिया के कई देशों की तरह वहां इजरायल के खिलाड़ियों का दल पहुंचा था. हमले की वजह इजरायल के जन्म और अस्तित्व से जुड़ी थी. यहूदियों का मुल्क दुनिया के नक्शे में आ चुका था. चारों तरफ से दुश्मनों से घिरा इजरायल, अमेरिकी बैकअप और हथियारों के दम पर सर्वाइव कर रहा था. इजरायल की तरक्की और विकास फिलिस्तीनियों को रास नहीं आ रहा था. अमेरिका की दरियादिली भी उनके सीने में खंजर की तरह चुभती थी. ये लगभग वही समय था जब इजरायल ने फिलिस्तीनी आतंकवादियों के एक बहुत बड़े समूह को बंधक बना रखा था. फिलिस्तीन अपने लोगों को हर हाल में छुड़ाना चाहता था.

234 आतंकवादियों को छोड़ने की थी मांग

आज से 52 साल पहले आतंकवादियों के पास 'हमास' जैसा प्रचंड आतंकी हमला करने की ताकत नहीं थी. उनकी इतनी औकात भी नहीं थी कि वो इजरायल के अंदर घुसकर कुछ बिगाड़ पाते. इसलिए उन्होंने जर्मनी गए इजरायली खिलाड़ियों को टारगेट करके अपनी मांग मनवाने की कोशिश की. 5 सितंबर की सुबह ‘ब्‍लैक सेप्‍टेम्‍बर’ ग्रुप के 8 आतंकी खेल गांव में घुसते हैं. सभी आतंकवादी ट्रैकसूट पहने थे जो एकदम एथलीट ही लग रहे थे. वो मौका देखकर और जर्मन पुलिस को धता बताकर इजराइली कैंप में दाखिल हुए.

बिखरी थी लाशें... खौफनाक था मंजर

आतंकियों ने इजरायली कैंप में घुस कर खून बहाया. वहां 11 इजरायली एथलीट्स थे. दहशत फैलाने के लिए उन्होंने दो खिलाड़ियों की हत्या कर दी और 9 को बंधक बना लिया था. फिलिस्तीनी आतंकवादियों ने एथलीटों को बंधक बनाने के बाद तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री गोल्डामेयर को मैसेज भेजा कि अगर वो अपने खिलाड़ियों की सलामती चाहती हैं तो इजरायल फौरन अपनी जेलों में बंद 234 फिलिस्तीनी कैदियों को सुरक्षित गलियारा बनाकर रिहा कर दे.

लेकिन इजरायल नहीं झुका. ओलंपिक की वजह से जर्मनी की इज्जत दांव पर लगी थी. जर्मनी की तत्कालीन सरकार ने आतंकियों को बंधक ले जाने के लिए बस का इंतजाम कर दिया. इजरायल झुकने के लिए तैयार नहीं था. इसके भड़के आतंकवादियों ने बाकी इजरायली खिलाड़ियों की भी बेरहमी से हत्या कर दी. 

इजरायल ने अपनों को खोया

दूसरी ओर इजरायल की सीक्रेट एजेंसी एक्टिव हो चुकी थी. जर्मनी की सेना तैयार थी. अमेरिका की हालात पर पैनी नजर थी. अंदरखाने इस होस्टेज यानी बंधक संकट को खत्म कराने के लिए अंदरखाने काम चल रहा था. 5 सितंबर 1972 को जब कोई और चारा नहीं दिखा तो आतंकवादियों ने बाकी खिलाड़ियों को भी मार डाला. 

मोसाद के बदले की कहानी

इस जख्म के बाद इजराइल ने बदला लेने की कसम खाई और अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को असंभव सा लगने वाला टास्क सौंपा. मोसाद तब भी खतरनाक थी और आज भी उसकी गिनती टॉप सीक्रेट एजेंसी में होती है. मोसाद के बाद आतंकियों को मारने का लंबा एक्सपीरिएंस था. उसने हमलावरों को चुन-चुन कर मारा और ये साबित कर दिया कि अगर कोई इजरायल के एक नागरिक या सैनिक को हाथ लगाएगा तो जवाबी हमले में इजरायल के फौजी बिना गिने पलटवार करेगे. 

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