अस्‍पताल में करना क्या है? प्रसव पीड़ा में पत्‍नी, बॉस का आदेश सुन शख्‍स हैरान

17 minutes ago

Last Updated:November 26, 2025, 16:37 IST

एक कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि पत्नी की डिलीवरी के दौरान दो दिन की छुट्टी मांगने पर मैनेजर ने उसे अस्पताल से ही काम करने को कहा. इस पोस्‍ट के बाद भारत में कॉर्पोरेट वर्क कल्‍चर को लेकर बहस छिड़ गई है. एक तरफ प्रसव पीड़ा में पत्‍नी और दूसरी तरफ बॉस का अस्‍पताल से काम करने का आदेश.

अस्‍पताल में करना क्या है? प्रसव पीड़ा में पत्‍नी, बॉस का आदेश सुन शख्‍स हैरानयुवक ने अपना दर्द बताया.

नई दिल्ली. पहले बच्‍चा और मां की सलामती या बॉस का आदेश? एक युवक के सामने जिंदगी के सबसे नाजुक लम्हे में यही क्रूर सवाल खड़ा हो गया. उसकी पत्नी लेबर पेन में थी और अस्पताल में भर्ती थी। वो दो दिन की छुट्टी मांगकर केवल यह उम्मीद कर रहा था कि उसके मैनेजर से एक इंसानी जवाब मिलेगा. लेकिन जो मिला, उसने लाखों भारतीय कर्मचारियों की जानी-पहचानी पीड़ा को फिर उजागर कर दिया। बॉस ने कहा, “अस्पताल से ही काम कर लो… तुम्हें करना भी क्या है?”

यह घटना सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म Reddit पर एक पोस्ट के जरिए सामने आई, जिसने देखते ही देखते हजारों व्यूज और हजार से ज़्यादा अपवोट्स जुटाए और भारतीय वर्क-कल्‍चर पर बड़ी बहस छेड़ दी. एक युवक ने लिखा कि यह उसका पहला बच्चा है और पत्नी प्रसव पीड़ा में भर्ती है. ऐसे समय वह सिर्फ दो दिन की छुट्टी चाहता था, लेकिन उसके मैनेजर ने उससे कहा कि इसे टाल दो, माता-पिता को संभालने दो या फिर अस्पताल से लैपटॉप खोलकर काम करो. जवाब में जो सबसे दुखद वाक्य मिला। “वहां तुम्हें करना भी क्या है?”सोशल मीडिया पर इसे व्यापक रूप से असंवेदनशील और अमानवीय बताया गया.

युवक ने पोस्ट में लिखा कि वह चैट पढ़ते हुए बिल्कुल टूट गया. “जब मुझे अपनी पत्नी के पास होना चाहिए था, मैं अपने मैनेजर को समझा रहा था कि मैं अस्पताल में बैठकर ईमेल क्यों नहीं भेज सकता. मैं पूरी तरह बेबस महसूस कर रहा था.” उसने अपनी नौकरी के डर को भी बयां किया, “मेरी बढ़ती ज़िम्मेदारियां हैं, एक बच्चा है. मैं नौकरी नहीं छोड़ सकता. कंपनी में माहौल ऐसा है कि जरा भी विरोध करो तो खतरा है.”

इस पोस्ट ने भारतीय कॉर्पोरेट कल्चर की उस जड़ सोच की ओर भी इशारा किया, जिसमें कर्मचारी को व्यक्ति नहीं बल्कि हमेशा ऑन-कॉल रहने वाली मशीन समझा जाता है. युवक ने लिखा, “मैं समझ नहीं पा रहा कि भारतीय मैनेजर अभी भी क्यों मानते हैं कि कर्मचारियों की न तो अपनी ज़िंदगी होती है और न ज़रूरतें—बच्‍चे का जन्‍म तक कोई अपवाद नहीं.”

सोशल मीडिया पर पोस्ट के बाद तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. एक यूजर ने लिखा, “काम कभी खत्म नहीं होगा, लेकिन ऐसे पल नहीं लौटते. छुट्टी मिली है तो मैनेजर की मत सुनो—परिवार के साथ रहो.” दूसरे ने भावुक होकर कहा, “जो फैसला आज लोग बनकर नहीं लोगे, वही कल पछतावा बनेगा. परिवार पहले, नौकरी बाद में.” एक और टिप्पणी व्यापक समर्थन बटोर गई—“ये बॉस तुम्हें बता रहा है कि तुम्हारे घर को कैसे चलना चाहिए? यह नौकरी है या गुलामी? साफ कहो—‘संभव नहीं है, मेरी पत्नी और बच्चा मुझे इस समय चाहिए.’”

Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...

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First Published :

November 26, 2025, 16:37 IST

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