Last Updated:May 03, 2025, 08:45 IST
India-Pakistan War Update: भारत-पाकिस्तान के बीच पहलगाम अटैक के बाद तनाव चरम पर है. पाकिस्तान पर भारत कभी अटैक कर सकता है. पाक के खिलाफ जंग में इंदिरा गांधी वाला जगुआर अहम भूमिका निभाएगा. वैसे भी जगुआर ने 1999 ...और पढ़ें

जगुआर भारतीय वायुसेना का सबसे अहम फाइटर जेट्स है. (फोटो क्रेडिट-sps-aviation)
हाइलाइट्स
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है.जगुआर विमान पहलगाम अटैक का बदला लेगा.1999 के कारगिल युद्ध में जगुआर ने अहम भूमिका निभाई.India-Pakistan Conflict: पाकिस्तान से पहलगाम का इंतकाम कन्फर्म है. मगर कब और कैसे यह किसी को नहीं पता. आज नहीं तो कल पाकिस्तान और उसके टुकड़ों पर पलने वाले आतंकियों को पहलगाम अटैक का अंजाम भुगतना ही है. भारत अपने दुश्मनों को यूं ही नहीं छोड़ता. इसका सबूत पाकिस्तान सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक से देख चुका है. अब इंतकाम-ए-पहलगाम में मोदी सरकार के काम इंदिरा गांधी का शेर आएगा. वही शेर जो पिछले 25 सालों से अपने शिकार की तलाश में भूखा है. आखिरी बार उसने 1999 में पाक सैनिकों के रूप में अपना शिकार किया था.
जी हां, अगर पाकिस्तान पर भारत अटैक करता है तो इसमें मोदी सरकार के बाहुबली यानी राफेल के साथ इंदिरा का शेर यानी जगुआर भी होगा. वही जगुआर जो पाकिस्तान को आज से 25 साल पहले कारगिल के युद्ध में अपनी ताकत का एहसास करा चुका है. बहरहाल, पहलगाम अटैक के बाद भारत और पाक जंग के मुहाने पर हैं. कभी भी दोनों देशों के बीच जंग छिड़ सकती है. कंप्लीट जंग न भी हो मगर भारत बदला तो जरूर लेगा. ऐसे में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान जगुआर की भूमिका अहम होगी.
भारत का शमशेर जगुआर कितना खतरनाक
भारतीय वायुसेना का जगुआर मल्टी-रोल वाला लड़ाकू विमान है. यह हर तरह के मिशनों यानी ग्राउंड अटैक से लेकर एयर अटैक को अंजाम देने में माहिर है. जगुआर को भारतीय वायुसेना का शमशेर कहा जाता है. यह इंदिरा के जमाने यानी 1970 के दशक से वायुसेना का शान बना हुआ है. हालांकि, अब इससे भी खतरनाक लड़ाकू विमान भारत के पास हो गए हैं. मगर इसे भी समय-समय पर आधुनिक तकनीकों के साथ अपग्रेड किया गया है. भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति में जगुआर से एलओसी यानी नियंत्रण रेखा के पास पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों, तोपखाने, या आतंकी शिविरों को ध्वस्त किया जा सकता है. लो-लेवल फ्लाइंग कैपेबिलिटी यानी कम ऊंचाई पर उड़ान की वजह से यह हमला करके वापस आ जाएगा, मगर पाकिस्तान का रडार इसे पकड़ भी नहीं पाएगा.
जगुआर भारतीय वायुसेना का सबसे अहम फाइटर जेट्स है. (फोटो क्रेडिट-sps-aviation)
कब महसूस हुई जरूरत
1971 में भी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी. उसके बाद जगुआर जैसे लड़ाकू विमानों की जरूरत महसूस हुई. भविष्य को देखते हुए पाक से युद्ध के बाद इंदिरा गांधी ने सबसे पहले इसे खरीदने का फैसला किया. जगुआर एक ब्रिटिश-फ्रांसीसी SEPECAT डीप-पेनेट्रेशन स्ट्राइक विमान है. इसे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद भारतीय वायुसेना की आधुनिकीकरण योजना के तहत चुना गया. वो इंदिरा गांधी की ही सरकार थी, जिसने 1970 के दशक में वायुसेना की डीप हमले और ग्राउंड-अटैक क्षमताओं को मजबूत करने के लिए जगुआर को प्राथमिकता दी गई.
इंदिरा के कारण भारत के पास जगुआर
इसके बाद साल 1978 में इंदिरा की सरकार में ही भारत ने यूके की रॉयल एयर फोर्स से 18 जगुआर विमानों की खरीद का सौदा किया. इतना ही नहीं, भारत में एचएएल यानी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस विमान को बनाने का लाइसेंस मिला. इंदिरा की पहले के कारण ही पहला जगुआर 1979 में भारतीय वायुसना में शामिल हुआ. हालांकि, तब मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार सत्ता में थी. यहां यह बताना जरूरी है कि भले ही सप्लाई के वक्त मोरारजी देसाई की सरकार थी, मगर इसकी डील की कवायद, बातचीत, और निर्णय प्रक्रिया… सब इंदिरा गांधी के 1971-1977 कार्यकाल में पूरी हुई थी. इसके आने से ही भारतीय वायुसेना की ताकत में बड़ा इजाफा हुआ था.
जगुआर फाइटर जेट इंदिरा गांधी की देन है.
कारगिल में पाक को नोच चुका है
बहरहाल, भारत के शमशेर यानी जगुआर की ताकत को पाकिस्तान देख चुका है. 1999 के कारगिल युद्ध में जगुआर ने भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई थी. इस जगुआर की वजह से पाकिस्तान घुटनों पर आया था और उल्टे पैर भागने को मजबूर हुआ था. इसे सरकार ने टोही मिशनों और प्रेसिजन स्ट्राइक के लिए तैनात किया था. कारगिल युद्ध के वक्त जगुआर ने हाई अल्टिट्यूड वाले टारगेट्स पर लेजर-गाइडेड बमों और रॉकेट्स के साथ हमले किए. इससे पाकिस्तानियों की बैंड बज गई. अब अगर हमला होता है तो यह मोदी सरकार के लिए राफेल के बाद बड़ा हथियार बनेगा.
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