Last Updated:September 08, 2025, 17:13 IST
Nepal News: नेपाल की राजधानी काठमांडू में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन हो रहा है. इस प्रदर्शन में अबतक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और 26 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. पीएम केपी ओली की चीन समर्थक नी...और पढ़ें

काठमांडू. भारत का पड़ोसी और मित्र राष्ट्र नेपाल एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक संकट से जूझ रहा है. काठमांडू की सड़कें रणभूमि में तब्दील हो गई हैं. सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ हजारों नेपाली नागरिक उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं. इन प्रदर्शनों ने एक हिंसक रूप ले लिया है, जिसमें अब तक 14 लोगों की मौत हो चुकी है और 26 से अधिक घायल हैं. नेपाल सरकार ने पूरे काठमांडू में कर्फ्यू लगा दिया है. सेना को सड़कों पर उतार दिया है. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक हो रही है, लेकिन सवाल यह है कि इस आग के पीछे क्या कारण है और क्यों भारत इस संकट में कुछ नहीं कर पा रहा है? क्या चीन की वजह से नेपाल जल रहा है? क्या नेपाली पीएम केपी ओली ने चीन को खुश करने के लिए नेपाल को आग के हवाले कर दिया? भारत अपने पड़ोसी मुल्क नेपाल की क्यों नहीं मदद कर सकता?
नेपाल सरकार ने 26 से अधिक सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म भी शामिल हैं. सरकार का दावा है कि ये ऐप्स राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं और इनका उपयोग देश विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है. हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस प्रतिबंध में चीन के लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीचैट (WeChat) और टिकटॉक (TikTok) को क्यों नहीं शामिल किया गया है? नेपाल के पीएम केपी ओली की चीन समर्थक नीतियों को देखते हुए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या यह प्रतिबंध चीन के इशारे पर लगाया गया है?
ओली सरकार चीन के हाथों की कठपुतली बन गई है?
ओली का चीन प्रेम और नेपाल का भविष्य
प्रदर्शनकारियों का मानना है कि ओली सरकार चीन के हाथों की कठपुतली बन गई है और वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश कर रही है. नेपाल में लोगों का मानना है कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर सरकार जनता की आवाज को दबाना चाहती है, ताकि उसकी नीतियों और भ्रष्टाचार पर सवाल न उठाए जा सकें. पीएम केपी ओली का चीन प्रेम जगजाहिर है. उनके शासनकाल में चीन ने नेपाल में बड़े पैमाने पर निवेश किया है और कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर रहा है. चीन नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है और वह नेपाल को भारत से दूर ले जाना चाहता है. ओली सरकार की चीन समर्थक नीतियों ने भारत के लिए भी चिंताएं बढ़ा दी हैं. अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या ओली का यह चीन प्रेम नेपाल को एक गहरे संकट में ले जाएगा?
भारत क्यों कुछ नहीं कर सकता?
नेपाल की अर्थव्यवस्था वैसे ही नाजुक है और राजनीतिक अस्थिरता इसे और भी कमजोर कर सकती है. नेपाल हमारा पड़ोसी और सांस्कृतिक रूप से जुड़ा हुआ देश है. फिर भी भारत इस संकट में खुलकर कोई हस्तक्षेप क्यों नहीं कर सकता? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नेपाल एक संप्रभु राष्ट्र है और किसी भी बाहरी देश का उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है. भारत अगर नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है, तो इसे नेपाल की संप्रभुता पर हमला माना जाएगा और इससे भारत के खिलाफ भी नाराजगी बढ़ सकती है.
भारत पर्दे के पीछे से अपनी कूटनीति का उपयोग कर सकता है.
पर्दे के पीछे भारत का कूटनीति क्या रंग लाएगा?
हालांकि, भारत पर्दे के पीछे से अपनी कूटनीति का उपयोग कर सकता है. भारत नेपाल में शांति और स्थिरता चाहता है, क्योंकि नेपाल में अस्थिरता का सीधा असर भारत पर पड़ेगा. भारत नेपाल को आर्थिक सहायता और मानवीय मदद प्रदान कर सकता है, ताकि वहां के हालात को सामान्य किया जा सके. ऐसे में नेपाल में जारी संकट का हल जल्द निकलना जरूरी है. अगर यह संकट और बढ़ता है तो इससे न केवल नेपाल बल्कि पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में अस्थिरता फैल सकती है.
पीएम ओली को जनता की मांगों को सुनना चाहिए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए. उन्हें चीन के प्रभाव से बाहर निकलकर नेपाल के हित में काम करना चाहिए. भारत को भी इस संकट पर नजर रखनी चाहिए और नेपाल की मदद के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए, लेकिन यह सब बिना उसकी संप्रभुता का उल्लंघन किए होना चाहिए. नेपाल को इस संकट से बाहर निकालने का रास्ता सिर्फ वहां की जनता के हाथ में है और उन्हें अपनी आवाज उठाने का अधिकार है.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
First Published :
September 08, 2025, 17:13 IST