Last Updated:August 07, 2025, 17:56 IST
Bihar Chunav 2025 Koeri-kurmi Vote Bank: बिहार में कोइरी-कुर्मी वोटबैंक पर राजनीति गरमाई है. नीतीश कुमार के जेडीयू का परंपरागत आधार रहा ये समुदाय बीजेपी खींचने की कोशिश में है. चिराग पासवान की उभरती ताकत ने बीज...और पढ़ें

पटना. बिहार की राजनीति में एक बार फिर से कोइरी-कुर्मी (लव-कुश) वोटबैंक को लेकर मगजमारी शुरू हो गई है. पार्टियों के टिकट बांटने से लेकर चेहरा बनाने के समीकरणों तक कोइरी-कुर्मी वोट बैंक केंद्र में है. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड का परंपरागत आधार रहे इस समुदाय को बीजेपी अंदरखाने अपनी ओर खींचने की कोशिश में है, जिसमें सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा को आगे किया गया है. लेकिन चिराग पासवान की उभरती सियासी ताकत और उनकी दलित-महादलित वोटों पर पकड़ ने बीजेपी को असमंजस में डाल दिया है. क्या कोइरी-कुर्मी की सियासत नीतीश के बाद भी बिहार पर राज करेगी? क्या उपेंद्र कुशवाहा चिराग से बड़ा फैक्टर बन गए हैं?
बिहार में कोइरी यानी कुशवाहा और कुर्मी समुदाय की आबादी लगभग 10% है, जिसमें कुर्मी 4% और कोइरी 6% हैं. यह वोटबैंक 243 विधानसभा सीटों में से 50-60 सीटों पर हार-जीत तय करता है. खासकर नालंदा, पटना, मुंगेर, समस्तीपुर और खगड़िया जैसे जिलों में ये निर्णायक साबित होते हैं. कुर्मी समुदाय से आने वाले नीतीश कुमार साल 2005 से लव-कुश समीकरण को जेडीयू का कोर वोटबैंक बनाए हुए हैं. 2023 की जातिगत जनगणना के अनुसार, ओबीसी में यादव 14% के बाद कोइरी-कुर्मी सबसे प्रभावशाली हैं. बीजेपी ने इस वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए कोइरी यानी कुशवाहा सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री और उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा में भेजकर बड़ा मैसेज दिया है.
चिराग पासवान बनाम उपेंद्र कुशवाहा
क्योंकि, एलजेपी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान बिहार में दलित-महादलित (16%) और कुछ सवर्ण वोटों पर मजबूत पकड़ रखते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने हाजीपुर, जमुई, खगड़िया और वैशाली में जीत हासिल की, जिसने उन्हें एनडीए में एक उभरता चेहरा बनाया. चिराग ने हाल ही में नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए कहा, ‘नीतीश ने बिहार को जंगलराज से निकाला और अगले 5 साल उनके नेतृत्व की जरूरत है.’, लेकिन उनकी 2020 की बगावत, जब उन्होंने जेडीयू के खिलाफ 137 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, नीतीश को याद है.
बीजेपी का असमंजस
उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय लोक जनता दल के नेता, कोइरी समुदाय के बड़े चेहरे हैं. उनकी पार्टी का जेडीयू में 2021 में विलय टूटने के बाद, वह 2023 में एनडीए में लौटे. कुशवाहा को नीतीश के विकल्प के रूप में देखा जाता था, लेकिन उनकी सियासी हैसियत हाल के वर्षों में कमजोर हुई है. 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार और सीमित संगठनात्मक आधार ने उनकी स्थिति को कमजोर किया. लेकिन 2024 के चुनाव में भी बीजेपी की कई सीट कुशवाहा वोटरों की नारजगी की वजह से गंवानी पड़ी, जिसका डर अब बीजेपी में साथ दिख रहा है.
कोइरी-कुर्मी का भविष्य
जानकारों की मानें तो बीजेपी के सामने कोइरी-कुर्मी वोटों को साधने की चुनौती है, लेकिन चिराग पासवान की बढ़ती महत्वाकांक्षा ने समीकरण जटिल कर दिए हैं. सम्राट चौधरी को बिहार का उपमुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने नीतीश के लव-कुश वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए प्रोजेक्ट किया. उनकी आक्रामक शैली और युवा छवि तेजस्वी यादव के खिलाफ बीजेपी का जवाब है. लेकिन स्रमाट चौधरी के मुकाबले उपेंद्र कुशवाहा की ज्यादा लोकप्रियता बीजेपी को बड़े फैसले लेने से रोक रही है.
नीतीश कुमार की उम्र और स्वास्थ्य को लेकर अटकलों ने कोइरी-कुर्मी नेतृत्व के भविष्य पर सवाल उठाए हैं. जेडीयू में उत्तराधिकारी की कमी एक बड़ी चुनौती है. सम्राट चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा को बीजेपी नीतीश के विकल्प के रूप में देख रही है, लेकिन दोनों का सीमित जनाधार और चिराग की बढ़ती लोकप्रियता बीजेपी के लिए दुविधा है. ऐसे में बिहार में कोइरी-कुर्मी समुदाय की सियासी ताकत अभी भी मजबूत है, लेकिन नीतीश के बाद इसका नेतृत्व अस्पष्ट है. उपेंद्र कुशवाहा का प्रभाव है, जबकि सम्राट चौधरी को बीजेपी का समर्थन मिल रहा है.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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First Published :
August 07, 2025, 17:56 IST