कार्ल मार्क्स ने दुनिया को क्या दिया? उनकी 'धर्म अफीम' वाली बात सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी दोहराई

10 hours ago

Karl Marx Theory: उसे दुनिया समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिक विश्लेषक, दार्शनिक कहती है. नाम है कार्ल मार्क्स. Gen Z पीढ़ी के लोगों ने शायद ये नाम कम सुना होगा. इस पर चर्चा की वजह है. सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कांवड़ यात्रा रूट से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान कार्ल मार्क्स की एक मशहूर लाइन दोहरा दी. मार्क्स ने कहा था, 'धर्म अफीम है.' कार्ल मार्क्स ने क्यों ऐसा कहा था? कौन था वो जिसे आज करीब 150 साल बाद भी याद किया जा रहा है? उसकी विचारधारा क्या थी जिसे मार्क्सवाद कहा जाता है. शुरू से शुरू करते हैं. 

20वीं सदी में मार्क्सवाद के चलते दुनिया में दो गुट बन गए. कई देश पूरी तरह से मार्क्सवाद के हिसाब से चले तो पश्चिमी यूरोप और अमेरिका इसे खतरनाक आइडिया मानने लगे. ये सब क्यों और कैसे हुआ? इसे समझने के लिए 19वीं सदी की शुरुआत में चलना होगा. यूरोप में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत होती है. इससे दुनिया का सिस्टम ही बदल गया. अब तक राजाओं और सामंतों के पास पैसा, सत्ता और सबसे महत्वपूर्ण जमीन हुआ करती थी. फसल पर भी सारा हक उन्हीं का हुआ करता था. उस सारी अर्थव्यवस्था का केंद्र गांव हुआ करता था. 

Industrial Revolution होने से मशीनों का बोलबाला हुआ और वे मशीनें कई लोगों के बराबर काम करने लगीं. इंसानों को अब मशीनों की देखरेख करनी थी. फैक्ट्रियां लगने से गांवों से पलायन होने लगा. गांव के लोग श्रमिक के तौर पर फैक्ट्रियों में काम करने लगे. सबसे ज्यादा फायदा उसे हुआ जो मशीनों यानी इंडस्ट्री का मालिक था. इन्हें आप कैपिटलिस्ट यानी पूंजीवादी वर्ग कह सकते हैं. हालांकि फायदा कामगारों को भी हुआ. उन्हें सैलरी मिली, उनका जीवन पहले से बेहतर हुआ लेकिन इस बदलाव का अलग-अलग तरीके से विश्लेषण किया जाने लगा. 

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अब सीन में आते हैं कार्ल मार्क्स. उन्होंने इस बदलाव को गलत बताया. मार्क्सवाद के तहत कहा गया कि शुरुआता में इंसानों की सारी कोशिश पेट भरने को लेकर थी. शिकार हो जाए और लोग पेट भर लें. मार्क्स ने कहा कि उस समय कम्युनिटी सोसाइटी थी जहां सभी लोग बराबर थे. समय के साथ खेती शुरू हुई. औजार बने और उत्पादन बदला. पेट भरने के साथ अतिरिक्त अनाज पैदा होने लगा. इसने इंसान को बेहतर संसाधनों पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया. कबीले बने. 

मार्क्स के मुताबिक इस तरह के बदलाव से समाज में खाई पैदा होने लगी. किसी के पास सब कुछ था और कुछ लोगों के पास बहुत कम. फिर से बदलाव हुआ. बड़े साम्राज्य बने. नहरें और दूसरे विकास के काम हुए. बड़ा फायदा जमीनों के मालिकों को हुआ. बाकियों को खाना तो मिला लेकिन आर्थिक स्थिति नहीं सुधरी. मार्क्स कहते हैं कि यही चीज आगे भी जारी रही जिससे संसाधन कुछ लोगों तक ही सीमित होकर रह गए. बाकी नौकर की स्थिति में ही रह गए. औद्योगीकरण के दौर में बुर्जुआ फैक्ट्री मालिक थे और सर्वहारा कामगार. 

मार्क्स के अनुसार इन दोनों ही वर्गों में संघर्ष अगला चरण बना. उन्होंने कहा कि इन दोनों क्लास में संघर्ष निश्चित है क्योंकि मालिक कम से कम सैलरी पर ज्यादा से ज्यादा काम चाहता है और कामगारों को अच्छा अप्रैजल चाहिए जो होता नहीं. मार्क्स ने कहा है कि इस संघर्ष में अक्सर कामगार ही हारता है और उसी का शोषण होता है. 

इस संघर्ष में सर्वहारा यानी कामगार ग्रुप एलियनेशन से गुजरता है. मार्क्स की मानें तो पहले व्यक्ति कोई काम खुद कर रहा था तो उसका प्रॉफिट उसी का और मालिक भी वही था लेकिन इंडस्ट्री आने से कामगारों में काम बंट गया और वे अपना प्रोडक्ट बनाने के बाद भी उसके मालिक नहीं हुए. अपने बनाए प्रोडक्ट को ही न खरीद पाने की स्थिति के चलते उनका इस काम से लगाव खत्म होता गया. यहीं पर मार्क्स का वो धार्मिक एंगल आया. 

मार्क्स ने कहा कि जब कोई अकेला पड़ता है या महसूस करता है तो धर्म की शरण में जाता है और धर्म उसके लिए अफीम जैसा काम करता है. धर्म उसकी समस्याओं को नियति के तौर पर पेश करता है. ऐसा इसलिए क्योंकि धर्म ताकत वाले लोगों की रक्षा के लिए बनाया गया है. मार्क्स ने आगे भविष्यवाणी यह भी की है कि एक दिन समाज संघर्ष के चलते फिर से कम्युनिस्ट हो जाएगा.

FAQ: कार्ल मार्क्स ने क्या कहा था?

जवाब: मार्क्स ने 1843 में दार्शनिक आलोचना पर एक पुस्तक के परिचय में टिप्पणी के रूप में लिखा था, 'धर्म जनता की अफीम है.' वह जर्मन दार्शनिक और अर्थशास्त्री थे. 

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