Last Updated:July 28, 2025, 18:40 IST

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा से उनकी उस याचिका को लेकर सवाल किए जिसमें उन्होंने नकदी बरामदगी मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार दिए जाने का अनुरोध किया है. आंतरिक जांच समिति ने नकदी बरामदगी विवाद में वर्मा को कदाचार का दोषी पाया था. जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने जस्टिस वर्मा से उनकी याचिका में पक्षकारों को लेकर सवाल किए और कहा कि उन्हें अपनी याचिका के साथ आंतरिक जांच रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए थी.
जस्टिस वर्मा की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन) के तहत एक प्रक्रिया है और किसी न्यायाधीश के बारे में सार्वजनिक तौर पर बहस नहीं की जा सकती है. सिब्बल ने कहा, “संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना, सार्वजनिक टीका टिप्पणी और मीडिया द्वारा न्यायाधीशों पर आरोप लगाना प्रतिबंधित है.” पीठ ने इस पर कहा, “आप जांच समिति के सामने क्यों पेश हुए? क्या आप समिति के पास यह सोचकर गए, कि शायद आपके पक्ष में फैसला आ जाए.”
‘इस तरह से याचिका दायर नहीं होनी चाहिए थी’
नकदी बरामद होने के मामले में कार्रवाई को लेकर जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिका “इस तरह दायर नहीं की जानी चाहिए थी” और न्यायाधीश का “मुख्य मुद्दा सुप्रीम कोर्ट से है”. जस्टिस दीपांकर दत्ता और ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा, “यह याचिका इस तरह दायर नहीं की जानी चाहिए थी. कृपया देखें, यहां पक्षकार रजिस्ट्रार जनरल हैं, महासचिव नहीं. पहला पक्ष सर्वोच्च न्यायालय है क्योंकि आपकी शिकायत उल्लिखित प्रक्रिया के विरुद्ध है.” सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, न्यायाधीश द्वारा ‘XXX’ नाम से दायर याचिका में तीन प्रतिवादी हैं: (1) भारत संघ (2) भारत का सर्वोच्च न्यायालय (3) भारत का सर्वोच्च न्यायालय.
पैनल की रिपोर्ट कहां है?
जस्टिस दत्ता ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करने वाले तीन न्यायाधीशों के पैनल की रिपोर्ट याचिका के साथ संलग्न नहीं की गई थी. उन्होंने पूछा, “तीन न्यायाधीशों के पैनल की रिपोर्ट कहां है?” जब वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि रिपोर्ट सार्वजनिक है, तो जस्टिस दत्ता ने कहा, “नहीं, आपको अपनी याचिका के साथ रिपोर्ट संलग्न करनी चाहिए थी.” इस मामले पर बहस करते हुए, सिब्बल ने न्यायाधीश को हटाने के लिए संविधान में निर्धारित नियमों का हवाला दिया. उन्होंने जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की निंदा की और कहा कि इसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.
घर से मिली थीं अधजले नोटों की गड्डियां
राष्ट्रीय राजधानी में जस्टिस वर्मा के आवास के बाहरी हिस्से में स्थित एक स्टोररूम में लगी आग में अधजले नोटों की गड्डियां बरामद हुई थीं, जिसके बाद शीर्ष अदालत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने तीन न्यायाधीशों की एक समिति गठित की थी, जिसने उन्हें (न्यायमूर्ति वर्मा को) अभ्यारोपित किया था.
तत्कालीन सीजेआई ने जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की
इस घटना के बाद, जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में कर दिया गया. वहीं, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने संबंधी तत्कालीन सीजेआई खन्ना के सुझाव को मानने से इनकार कर दिया, जिसके बाद तत्कालीन सीजेआई ने समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजकर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की. हालांकि, वर्मा ने खुद के निर्दोष होने का दावा किया है और समिति के निष्कर्षों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...
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