नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल केस में अभिषेक मनु सिंघवी की सॉलिड दलील से 1400 किलोमीटर दूर एक बिजनेसमैन का काम बन गया. अरविंद केजरीवाल को ईडी केस में दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी, मगर इससे रिहाई का रास्ता एक बिजनेसमैन का खुल गया. जी हां, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से मुंबई के इस बिजनेसमैन को भी राहत मिल गई.अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत दिए जाने का हवाला देते हुए मुंबई की विशेष अदालत ने पिछले सप्ताह मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी बिजनेसमैन पुरुषोत्तम मंधाना को रिहा कर दिया.
मुंबई की विशेष अदालत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने आरोपी को गिरफ्तार करने के ‘विश्वास करने के कारण’ नहीं बताए थे. पुरुषोत्तम मंधाना नाम के इस बिजनेसमैन को ईडी ने 19 जुलाई को 975 करोड़ रुपये के कथित बैंक धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. अब यह बिजनेसमैन जमानत पर बाहर आ गया है. विशेष अदालत ने बिजनेसमैन को राहत देने के दौरान अरविंद केजरीवाल केस का जिक्र किया. विशेष पीएमएलए अदालत ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान ईडी की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया. कोर्ट ने ईडी ओर से की गई बिजनेसमैन की हिरासत बढ़ाने की मांग को खारिज किया और उसे रिहा करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट में अरविंद केजरीवाल की ओर से सिंघवी ने ही दलीलें दी थीं.
केजरीवाल को मिली थी जमानत
अब जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर क्या फैसला दिया था. दरअसल, 12 जुलाई को जब सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत दी, तो उसने गिरफ्तारी करने की ईडी की शक्ति पर बड़े सवाल उठाए. अरविंद केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि ईडी के पास उन्हें गिरफ्तार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं थे. यूं कहें कि इसका मतलब है कि ईडी के ‘यह मानने के कारणों’ को चुनौती देना कि अरवदिं केजरीवाल मनी लॉन्ड्रिंग के दोषी थे और उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है.
अरविंद केजरीवाल केस में क्या हुआ था
सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली अरविंद केजरीवाल की याचिका को एक बड़ी पीठ को भेज दिया था. जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की पीठ ने अरविंद केजरीवाल की याचिका को एक बड़ी पीठ को इसलिए भेजा, ताकि इस सवाल की जांच की जा सके कि गिरफ्तारी की जरूरत या अनिवार्यता को धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 19 में एक शर्त के रूप में पढ़ा जाना चाहिए या नहीं. मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने कहा था कि हमने यह भी माना है कि केवल पूछताछ से आपको गिरफ्तारी की अनुमति नहीं मिलती.यह धारा 19 के तहत कोई आधार नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा था?
हालांकि, ईडी ने दलील दी थी कि ये अंदरूनी बातचीत का हिस्सा है और अदालत इसकी जांच नहीं कर सकती, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक समीक्षा हो सकती है कि गिरफ्तारी कानून के हिसाब से हुई थी या नहीं. साथ ही, अगर किसी आरोपी को अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देनी है, तो लिखित में ‘विश्वास करने के कारण’ प्राप्त करना महत्वपूर्ण होगा. यह दस्तावेज अब तक केवल आधिकारिक रिकॉर्ड का हिस्सा रहा है, लेकिन अनिवार्य रूप से आरोपी के साथ साझा नहीं किया गया है.
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FIRST PUBLISHED :
July 31, 2024, 13:03 IST