Last Updated:May 21, 2025, 13:26 IST
Banu Mushtaq: 77 साल की बानू मुश्ताक ने इतिहास रच दिया है. वह अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका हैं. यह सम्मान उन्हें अपनी किताब हार्ट लैंप के लिए मिला है. यह सम्मान उन्होंने अनुवादक दीप...और पढ़ें

बानू मुश्ताक अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका हैं.
हाइलाइट्स
बानू मुश्ताक को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिलावह यह पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका हैंउन्होंने अपनी किताब हार्ट लैंप के लिए यह सम्मान जीताBanu Mushtaq: महिलाओं के जीवन, जाति, शक्ति और उत्पीड़न के बारे में बात करने वाली बानू मुश्ताक ने 77 साल की उम्र में साहित्यिक इतिहास रच दिया है. कर्नाटक की रहने वाली बानू मुश्ताक अपनी किताब हार्ट लैंप के लिए सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी अनुवादित कथा के लिए दिए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार को जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं. यह सम्मान अनुवादक दीपा भाष्थी के साथ साझा किया गया है. इस लुभावने पल के बारे में बात करते हुए बानू मुश्ताक ने कहा, “ऐसा लग रहा है जैसे हजारों जुगनू एक ही आसमान को रोशन कर रहे हों – संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक.”
यह केवल दूसरी बार है जब किसी भारतीय कृति ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है. इससे पहले गीतांजलि श्री और डेज़ी रॉकवेल ने 2022 में टॉम्ब ऑफ सैंड (रेत समाधि) के लिए यह पुरस्कार जीता था. दरअसल 25 फरवरी, 2025 को ही बानू मुश्ताक ने इतिहास रच दिया था. तब वह अपने लघु कथा संग्रह हार्ट लैंप के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए नॉमिनेट होने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बनी थीं. इस किताब में 12 कहानियां हैं जो 1990 और 2023 के बीच प्रकाशित हुई थीं.
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मिशनरी स्कूल में किस तरह बदला जीवन
1950 के दशक में कर्नाटक के शिवमोगा में ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित एक स्कूल में आठ साल की मुस्लिम लड़की को लाया गया. मैनेजमेंट उसे कन्नड़ माध्यम में दाखिला देने से हिचक रहा था. क्योंकि उन्हें चिंता थी कि वह कन्नड भाषा नहीं सीख पाएगी और उर्दू स्कूल उसके लिए बेहतर होगा. उसके पिता द्वारा बहुत हाथ-पैर जोड़ने करने के बाद लड़की को इस शर्त पर दाखिला दिया जाता है कि वह छह महीने में कन्नड़ पढ़ना और लिखना सीख ले या फिर स्कूल छोड़ दे. उसके शिक्षकों को आश्चर्य होता है कि न केवल छोटी बानू यह कर दिखाती है, बल्कि वह स्कूल में आने के कुछ ही दिनों में यह कर दिखाती है.
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कम उम्र में शुरू हुआ साहित्यिक सफर
बानू मुश्ताक के लेखन का सफर मिडिल स्कूल में शुरू हुआ जब उन्होंने अपनी पहली लघु कहानी लिखी. हालाृंकि उन्होंने बहुत कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया था, लेकिन उनकी पहली कहानी 26 साल की उम्र में लोकप्रिय कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में प्रकाशित हुई थी. उसके बाद लोगों का ध्यान बानू मुश्ताक की ओर गया. बानू मुश्ताक का जन्म एक बड़े मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्हें अपने पिता से बहुत समर्थन मिला. यहा तक कि जब अपने स्कूल की तानाशाही प्रकृति के खिलाफ उन्होंने लड़ाई लड़ी तो पिता ने साथ दिया.
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लिखने में प्रगतिशील आंदोलनों का असर
बानू मुश्ताक की शानदार लेखनी कर्नाटक में प्रगतिशील आंदोलनों से उपजी है, जिसने उनके कामों को प्रेरित किया. उन्होंने विभिन्न राज्यों की यात्रा की और खुद को बंदया साहित्य आंदोलन में शामिल किया. यह एक प्रगतिशील विरोध था जिसने जाति और वर्ग उत्पीड़न को चुनौती दी. संघर्षरत लोगों के जीवन से उनका जुड़ाव उन्हें लिखने की ताकत देता था. यहां तक कि अपने निजी जीवन में भी उन्होंने पितृसत्तात्मक मानदंडों को तोड़ा, अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी की और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. उनकी कानूनी पृष्ठभूमि और सामाजिक जागरूकता उनकी कहानियों के नैतिक दायरे को और भी तीखा बनाती है.
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महिला अधिकारों की मुखर समर्थक
एक लेखिका के रूप में अपने जीवन के अलावा बानू मुश्ताक को महिलाओं के अधिकारों की वकालत और भेदभाव पर सवाल उठाने वाले उनके कानूनी काम के लिए भी जाना जाता है। मुश्ताक कहती हैं कि उनकी कहानियाँ दर्शाती हैं कि कैसे धर्म, समाज और राजनीति महिलाओं से बिना सवाल किए आज्ञाकारिता की माँग करती हैं और इस प्रक्रिया में उन पर क्रूरता करती हैं। अपने निजी जीवन में भी, उन्होंने पितृसत्तात्मक मानदंड से लड़ाई लड़ी और अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करके सामाजिक अपेक्षाओं को चुनौती दी.
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लिखीं और कौन सी किताबें
इस पुरस्कार विजेता कृति के अलावा बानू मुश्ताक छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह लिख चुकी हैं. उनके काम के लिए उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है. इसके अलावा उनकी पहली पांच लघु कहानियों को 2013 में हसीना मट्टू इथारा कथेगलु नामक एक खंड में संकलित किया गया है. 2023 में उनका हेन्नू हदीना स्वयंवर नाम का एक संकलन आया.
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