क्या था ऑपरेशन खुकरी, जो अफ्रीकी देश में चलाया गया... बॉलीवुड में बनेगी फिल्म

8 hours ago

Operation Khukri: यह कहानी आज से 25 साल पहले पश्चिमी अफ्रीकी देश सियरा लियोन की है. संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के दौरान रेवोलुशनरी यूनाइटेड फ्रंट (आरयूएफ) के विद्रोहियों ने अलग-अलग देशों के 222 सैनिकों और 11 सैन्य सुपरवाइजर को बंधक बना लिया था. विद्रोहियों ने उन्हें 233 दिन तक बंधक बनाकर रखा था. उनके पास खाने के लिए दो वक्त का खाना भी नहीं था. यहां संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के रूप में भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी मेजर राजपाल पूनिया के नेतृत्व में गई थी. मेजर पूनिया ने अपने सैनिकों के साथ मिलकर रेवोलुशनरी यूनाइटेड फ्रंट से लड़कर न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र सैन्य टुकड़ी को सफलतापूर्वक बाहर निकाला, बल्कि उनका ये ऑपरेशन सिएरा लियोन देश में शांति स्थापना करवाने में भी सफल रहा. इस ऑपरेशन का नाम था ‘ऑपरेशन खुकरी’.  

अब इसी ऑपरेशन खुकरी पर बॉलीवुड एक्टर रणदीप हुड्डा एक फिल्म बनाने जा रहे हैं. रणदीप हुड्डा ने ऑपरेशन खुकरी पर लिखी गयी किताब के फिल्म राइट्स खरीद लिए हैं. यह देश भक्ति से भरी एक रोमांचक फिल्म होगी, जिसमें भारतीय सैनिकों की वीरता दिखायी जाएगी. रणदीप हुड्डा ना केवल इस किताब पर फिल्म बनाएंगे, बल्कि उसमें एक्टिंग भी करेंगे. रणदीप हुड्डा ने कहा, “‘ऑपरेशन खुकरी’ की कहानी ने मुझे भीतर तक प्रभावित किया है. यह सिर्फ गोलियों और जीत की बात नहीं है, बल्कि इसमें बलिदान, भाईचारा और मुश्किल हालात में भी हिम्मत न हारने की कहानी है. यह कहानी दिल से जुड़ने वाली है.” हालांकि गोरखा अपनी उग्रता के लिए जाने जाते हैं. लेकिन सिएरा लियोन में इस घटना ने उनकी दृढ़ता की परीक्षा ली.

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विद्रोहियों की मौत से उपजा था विवाद
यूरेशियन टाइम्स के मुताबिक 
सारा विवाद शांति समझौते के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे विद्रोहियों की मौत से उपजा था. दक्षिण कोरियाई शांति सैनिकों ने उन पर गोलियां चलाई थीं. आरयूएफ ने कैलाहुन में भारतीय छावनी में मौजूद सभी संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के आत्मसमर्पण की मांग की. लेकिन गोरखाओं ने हिम्मत का परिचय दिया और अपने हथियार डालने से इनकार कर दिया. इन सैनिकों को बचाने के लिए चलाए गए अभियान का कोड नाम ‘ऑपरेशन खुकरी’ था. यह संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के इतिहास में दर्ज है. एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व भारतीय सेना प्रमुख जनरल जेजे सिंह (सेवानिवृत्त) ने बताया कि भारतीय सैनिकों ने “कायरता के बजाय मौत, दो वक्त के भोजन के बजाय सम्मान और स्वतंत्रता के बजाय सम्मान को चुना.” 

सिएरा लियोन की जनता के साथ मेजर राजपाल पूनिया.

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गृहयुद्ध में उलझा हुआ था सिएरा लियोन
इसकी शुरुआत तब होती है जब भारतीय सेना सिएरा लियोन में एक मिशन स्थापित करती है. यह दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है जो कई सालों से गृहयुद्ध और सैन्य तख्तापलट में उलझा हुआ था. विद्रोही समूह आरयूएफ लगभग नौ सालों से लड़ रहा था और देश के निवासी अत्याचारों का शिकार हो रहे थे. 1999 में आरयूएफ के साथ लोमे शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और विद्रोहियों ने संयुक्त राष्ट्र सेना के सामने हथियार डालने की इच्छा व्यक्त की. इसकी देखरेख करना भारतीय सेना का काम था. भारतीय सैनिकों का उद्देश्य आरयूएफ विद्रोहियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर समाज में फिर से शामिल करना था. इसका उद्देश्य भविष्य में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए मंच तैयार करना भी था.

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आरयूएफ के सामने शांति सैनिकों का आत्मसमर्पण
भारतीय सेना की टुकड़ी अभी वहां जम ही रही थी कि विद्रोही नेताओं ने कंपनी कमांडर मेजर राजपाल पूनिया (सेवानिवृत्त) को हथियार सौंपने के लिए बातचीत करने के बहाने बाहर निकाल लिया. उन्हें उनके सैनिकों से अलग करने के बाद विद्रोहियों ने छावनी को घेर लिया और भारतीय सैनिकों से हथियार सौंपने को कहा. मेजर पूनिया को एक अलग जगह कैद कर दिया गया था. विद्रोहियों ने गोरखाओं को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए एक अन्य अधिकारी कैप्टन सुनील को मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया. कैप्टन सुनील ने कथित तौर पर कहा, “कोई भी हथियार नहीं डालेगा चाहे ये मुझे गोली ही क्यों ना मार दे. हमारे तिरंगे की इज्जत कम नहीं होनी चाहिए किसी भी हाल में.” क्षेत्र में तैनात सभी अन्य संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों ने आरयूएफ के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था. आरयूएफ संयुक्त राष्ट्र के एक हेलीकॉप्टर पर भी कब्जा करने में कामयाब हो गया था.

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भेजी गई 120 सैनिकों की कमांडो टुकड़ी
75 दिनों तक कूटनीतिक बातचीत के जरिये भारतीय सैनिकों की रिहाई के लिए बातचीत जारी रही. संयुक्त राष्ट्र शांति सेना ने सैनिकों को बल प्रयोग करने से रोक दिया. बचाव अभियान की तैयारी और भी जटिल हो गई क्योंकि तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफी अन्नान पश्चिम अफ्रीका से थे और वह अभियान का प्रबंधन कर रहे थे. भारतीय सेना के मेजर जनरल वी.के. जेटली सिएरा लियोन में फील्ड कमांडर थे. सैन्य विकल्प चुनने का समय आ गया था, क्योंकि भारतीय सैनिकों की लंबी पीड़ा को लेकर भारत में बेचैनी बढ़ रही थी. कूटनीति विफल होने के बाद भारतीय सेना ने शांति सैनिकों को बचाने के मिशन को अंजाम देने के लिए करीब 120 सैनिकों को भेजा. इन सैनिकों को कमांडो प्लाटून कहा जाता है.  

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बाहर निकलने के लिए किया संघर्ष
अंग्रेजों ने गोरखाओं को कैलाहुन से भागने में मदद करने के लिए चिनूक हेलीकॉप्टर उधार दिए. 15 जुलाई, 2000 को सुबह 6.15 बजे गैरीसन परिसर की दीवारों को तोड़ने के लिए एक विस्फोटक के फटने से पूरा इलाका जोरदार धमाके से गूंज उठा. उसी समय घिरे हुए गोरखा सैनिकों ने परिसर में मौजूद आरयूएफ सैनिकों के हथियारों को नष्ट कर दिया. इस दरार से ट्रकों और जीपों का एक काफिला गुजरा, जिनके दोनों ओर संयुक्त राष्ट्र का चिह्न लगा हुआ था. हालांकि बच निकलना आसान नहीं था. पिछली रात की बारिश की वजह से जमीन कीचड़ से भर गई थी और ट्रक फंस रहे थे. सैनिकों को नीचे उतरकर ट्रकों को धक्का देना पड़ा क्योंकि विद्रोही अपने ट्रकों में उनका पीछा कर रहे थे और जमीन पर कब्जा कर रहे थे. योजना यह थी कि 11 सैन्य पर्यवेक्षकों और कुछ बीमार सैनिकों को चिनूक द्वारा बाहर निकाला जाए. लेकिन शेष सैनिकों को ट्रकों और जीपों में सवार होकर बाहर निकलने के लिए संघर्ष करना पड़ा.

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गोरखा सैनिकों ने पेंडेम्बू पर कब्जा किया
45 मिनट तक कमांडो विद्रोहियों से लड़ते रहे और आगे बढ़ने की कोशिश करते रहे. कमांडो और गोरखा तीन घंटे तक सड़क पर रहे. विद्रोहियों ने उन पर गोलियां चलाईं और उनका पीछा किया. जब मौसम ठीक हुआ और भारतीय वायुसेना का एमआई-35 विमान हवा में उड़ा. भागे हुए सैनिकों की मंजिल गेहुन थी, जो 12 किलोमीटर दूर एक जगह है. जहां भारतीय सेना के 18 ग्रेनेडियर विमान से उतारे गए थे. जानलेवा हमले से बचाव अभियान में करीब एक घंटे का समय लगा. सैनिक गेहुन पहुंचे और 18 ग्रेनेडियर्स में शामिल हो गए. वहां से उन्हें पेंडेम्बु पहुंचना था. गोरखा सैनिकों ने पेंडेम्बू पर कब्जा कर लिया. 

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मेजर पूनिया ने इस ऑपरेशन पर लिखी किताब
अगले दिन भारतीयों ने बिना किसी नुकसान के बचाव कार्य किया. केवल सात भारतीय घायल हुए, जबकि 34 विद्रोही मारे गए और 150 घायल हुए. ऑपरेशन खुकरी ने विद्रोहियों को एक कड़ा संदेश दिया. घर से 10,000 किलोमीटर दूर भारतीय सैनिकों द्वारा अंजाम दिए गए इस साहसिक ऑपरेशन के सम्मान में सिएरा लियोन के लोगों ने मोआ नदी के तट पर ‘खुकरी युद्ध स्मारक’ बनवाया. मेजर पूनिया भारतीय सेना में मेजर जनरल के पद तक पहुंचे. बाद में उन्होंने एक किताब लिखी, “ऑपरेशन खुकरी- संयुक्त राष्ट्र के हिस्से के रूप में भारतीय सेना के सबसे सफल मिशन के पीछे की सच्ची कहानी.”

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