Last Updated:September 06, 2025, 17:40 IST
India Pakistan War 1965: साल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध ऑपरेशन जिब्राल्टर के बाद शुरू हुआ. 6 सितंबर को शुरू हुए युद्ध 23 सितंबर तक चला. संयुक्त राष्ट्र ने दोनों देशों के बीच युद्ध विराम कराया.

India Pakistan War 1965: भारत और पाकिस्तान कभी एक ही देश का हिस्सा थे. लेकिन 1947 के बंटवारे के बाद दोनों देश एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए. 1947 में कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश सहित पाकिस्तान और भारत के बीच वर्षों तक लगातार छोटे-मोटे संघर्ष होते रहे. लेकिन वो 1965 में आज का दिन यानी 6 सितंबर था, जब भारत और पाकिस्तान के बीच पहली बार बड़ा टकराव हुआ था. यह युद्ध 17 दिनों तक चला, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया की सबसे बड़ी टैंक लड़ाइयों में से एक था.
यह युद्ध पाकिस्तान की एक गुप्त योजना ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ की वजह से शुरू हुआ. इस योजना के तहत पाकिस्तान ने हजारों सैनिकों को स्थानीय विद्रोहियों के रूप में जम्मू और कश्मीर में भेजा. उसका उद्देश्य इस क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करना और भारतीय शासन के खिलाफ स्थानीय लोगों को भड़काना था. पाकिस्तान को उम्मीद थी कि इस घुसपैठ से कश्मीर में विद्रोह शुरू हो जाएगा और वह उस क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा. लेकिन भारत ने इसके जवाब में लाहौर पर हमला करके उसे चौंका दिया था. उस समय, भारतीय सेना लाहौर के बाहरी इलाकों तक पहुंच गई थी, जिससे पाकिस्तान पूरी तरह से हिल गया था. यह सिर्फ टैंक और हवाई हमलों का टकराव नहीं था, बल्कि भारतीय सेना की हिम्मत और बहादुरी की दास्तान थी.
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6 सितंबर को शुरू हुआ युद्ध
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध आधिकारिक तौर पर 6 सितंबर, 1965 को शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया. इस मिशन के तहत उसका लक्ष्य जम्मू-कश्मीर के अखनूर पर कब्जा करना था. यह संघर्ष पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर के बाद बढ़ते तनाव का चरम था, जिसके तहत अगस्त 1965 में भारतीय शासन के खिलाफ विद्रोह भड़काने के लिए सशस्त्र घुसपैठियों को कश्मीर भेजा गया था. भारत ने इसका कड़ा जवाब दिया और संघर्ष जल्द ही एक पूर्ण युद्ध में बदल गया.
सितंबर 1965 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत पर भारतीय आक्रमण के दौरान पाकिस्तानी सैनिक एक नहर के पास छुपते हुए. (विकिमीडिया कॉमन्स)
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सेना ने पार की अंतरराष्ट्रीय सीमा
6 सितंबर को भारतीय सेना ने लाहौर सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके पाकिस्तान में प्रवेश किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से सबसे बड़े टैंक युद्धों में से एक की शुरुआत हुई. पंजाब, राजस्थान और कश्मीर सहित कई क्षेत्रों में भीषण युद्ध छिड़ गया. जिसमें दोनों देशों ने पैदल सेना, बख्तरबंद और वायु सेना तैनात की. असल उत्तर, खेमकरण और सियालकोट में प्रमुख युद्ध हुए जिनमें भीषण सैन्य टकराव देखने को मिला. यह युद्ध 17 दिनों तक चला, जिससे यह दोनों देशों के बीच लड़े गए सबसे छोटे लेकिन सबसे भीषण युद्धों में से एक बन गया. भारत और पाकिस्तान दोनों ने जीत का दावा किया, लेकिन दोनों पक्षों को भारी क्षति और आर्थिक नुकसान हुआ. भारत को कुछ रणनीतिक क्षेत्रों में बढ़त हासिल हुई, जबकि कश्मीर पर कब्जा करने का पाकिस्तान का उद्देश्य अधूरा रह गया.
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संयुक्त राष्ट्र ने कराया युद्धविराम
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस संघर्ष ने संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ दोनों का ध्यान आकर्षित किया. साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने भी तत्काल युद्धविराम का आह्वान किया. संयुक्त राष्ट्र के राजनयिक हस्तक्षेप के बाद 23 सितंबर, 1965 को युद्ध समाप्त हो गया. इसके बाद 10 जनवरी, 1966 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के बीच सोवियत संघ की मध्यस्थता में ताशकंद समझौता हुआ. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने एक-दूसरे के कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस लौटाने का फैसला किया.
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भारत ने दिखाया मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम
इस युद्ध में भारत ने अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया और यह साबित कर दिया कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का आधार बहुत मजबूत है. क्योंकि पाकिस्तान की यह उम्मीद विफल हो गई थी कि कश्मीर के मुस्लिम उसका साथ देंगे. इस युद्ध ने दुनिया को दिखा दिया कि भले ही भारत शांति चाहता हो, लेकिन जब बात देश की सुरक्षा की आती है तो वह किसी भी चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है. यह युद्ध सिर्फ एक सैन्य जीत नहीं थी, बल्कि यह 1962 के युद्ध में भारत को मिली हार के बाद खोए हुए आत्मविश्वास को फिर से हासिल करने का एक प्रतीक भी था.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 06, 2025, 17:40 IST