क्या भारत बलूचिस्तान को एक देश के रूप में मान्यता दे सकता है, अड़चनें क्या हैं

4 hours ago

कुछ दिन पहले बलूचिस्तान में वहां की आजादी की लड़ाई लड़ रहे बलोच नेताओं ने आजादी की घोषणा कर दी. इसके साथ ही वहां का झंडा और देश के लिए जरूरी कई चीजें जारी कीं. इसके साथ ही बलूचिस्तान के नेताओं ने भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ से उन्हें एक देश के रूप में मान्यता देने की मांग भी की. भारत को वो अपना सबसे हमदर्द देश मानते हैं. क्या भारत उसे एक अलग देश के रूप में मान्यता दे सकता है. आखिर इस राह में अड़चनें क्या हैं.

भारत द्वारा बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने का मुद्दा जटिल है. इसमें कई भू-राजनीतिक, कूटनीतिक, और कानूनी अड़चनें हैं. इसलिए लगता नहीं कि भारत ऐसा कोई कदम उठा सकता है. उसकी वजहें क्या हैं, ये हम यहां बताएंगे.

भारत बलूचिस्तान को मान्यता दे सकता है या नहीं?

भारत सैद्धांतिक रूप से किसी क्षेत्र को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे सकता है, जैसा कि उसने 1971 में बांग्लादेश के मामले में किया था. हालांकि, बलूचिस्तान के मामले में ये इतना आसान नहीं है. बलूच नेताओं ने भारत से बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने की मांग करते हुए इसे भारत का “नैतिक कर्तव्य” बताया. हालांकि भारत ने इस मुद्दे पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है.

अड़चन नंबर 1 – अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता

किसी क्षेत्र को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने के लिए 1933 के मॉन्टेवीडियो कन्वेंशन की शर्तें पूरी होनी चाहिए, जिनमें स्थायी जनसंख्या, परिभाषित सीमाएं, सरकार और अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित करने की क्षमता शामिल हैं.

बलूचिस्तान ने भले ही स्वतंत्रता की घोषणा की हो, लेकिन इसे अभी तक किसी देश या संयुक्त राष्ट्र से औपचारिक मान्यता नहीं मिली है. पाकिस्तान बलूचिस्तान को अपना अभिन्न हिस्सा मानता है. इसे स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देना पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन माना जाएगा, जिसके गंभीर कूटनीतिक परिणाम हो सकते हैं. भारत कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के हस्तक्षेप का विरोध करता है, इसलिए वह खुद किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहेगा.

1948 में पाकिस्तान ने सैन्य कार्रवाई के जरिए बलूचिस्तान का जबरन विलय किया था. तब से बलूच अलगाववादी आंदोलनों को दबाने की कोशिश की जा रही है. भारत द्वारा बलूचिस्तान को मान्यता देने पर पाकिस्तान इसे युद्ध की घोषणा के समान मान सकता है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा, खासकर हाल के आतंकी हमलों और “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे घटनाक्रमों के बाद.

अड़चन नंबर 2 – अंतरराष्ट्रीय समर्थन की कमी

किसी क्षेत्र को स्वतंत्र देश के रूप में स्थापित होने के लिए प्रमुख शक्तियों (जैसे अमेरिका, चीन, रूस) और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन जरूरी है. उदाहरण के लिए सोमालीलैंड ने 1991 में स्वतंत्रता की घोषणा की थी लेकिन उसे अब तक किसी देश से मान्यता नहीं मिली है.

बलूचिस्तान के मामले में, चीन जैसे देश, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के जरिए बलूचिस्तान में भारी निवेश कर रहे हैं, इसका विरोध करेंगे. अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) को आतंकवादी संगठन मानते हैं, जिससे उनकी समर्थन की संभावना कम है.

चूंकि अब तक किसी भी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्ति ने बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है, लिहाजा भारत अकेले ऐसा कदम उठाने से बचेगा.

अड़चन नंबर 3 – अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव

बलूचिस्तान को मान्यता देने से भारत के ईरान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंध प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि इन देशों में भी बलूच आबादी रहती है. इस कदम से चीन और अन्य देशों की प्रतिक्रिया भी नकारात्मक हो सकती है, क्योंकि चीन पाकिस्तान के साथ मजबूत संबंध रखता है.
इसके अलावा, भारत की ऊर्जा सुरक्षा और चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं के लिए ईरान के साथ संबंध महत्वपूर्ण हैं, जो बलूचिस्तान के मुद्दे पर प्रभावित हो सकते हैं.

अड़चन नंबर 4 -भारत की कूटनीतिक स्थिति

भारत ने बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाया है, खासकर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में. हालांकि, भारत ने कभी बलूच अलगाववाद को खुले तौर पर समर्थन नहीं दिया है, क्योंकि इससे भारत पर पाकिस्तान को अस्थिर करने का आरोप लग सकता है.
भारत का ध्यान कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ चल रहे विवाद को संतुलित करने पर है. बलूचिस्तान को मान्यता देना कश्मीर मुद्दे को और जटिल कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान इसे भारत के खिलाफ प्रचार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है.

अड़चन नंबर 5 -भारत की कूटनीतिक स्थिति

भारत ने बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे को उठाया है, खासकर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में. हालांकि, भारत ने कभी बलूच अलगाववाद को खुले तौर पर समर्थन नहीं दिया है, क्योंकि इससे भारत पर पाकिस्तान को अस्थिर करने का आरोप लग सकता है.
भारत का ध्यान कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ चल रहे विवाद को संतुलित करने पर है. बलूचिस्तान को मान्यता देना कश्मीर मुद्दे को और जटिल कर सकता है, क्योंकि पाकिस्तान इसे भारत के खिलाफ प्रचार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है.

अड़चन नंबर 6 – क्षेत्रीय स्थिरता

बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का समर्थन करने से क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि बलूचिस्तान का हिस्सा ईरान और अफगानिस्तान में भी फैला है. ईरान, जो अपने बलूच क्षेत्र में अलगाववादी आंदोलनों से जूझ रहा है, भारत के इस कदम का विरोध कर सकता है.
इसके अलावा, बलूचिस्तान में हिंसा और अस्थिरता पहले से ही क्षेत्रीय तनाव का कारण हैं. बलूचिस्तान में विद्रोही गतिविधियाँ और आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. भारत इस क्षेत्र को मान्यता देकर अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा को बढ़ावा नहीं देना चाहेगा.

भारत को क्या तय करना होगा

कुछ बलूच नेताओं का तर्क है कि भारत को बलूचिस्तान को मान्यता देनी चाहिए, क्योंकि यह पाकिस्तान को रणनीतिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाएगा. हालांकि भारत को यह तय करना होगा कि क्या वह केवल पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए ऐसा कदम उठाएगा या बलूचिस्तान के लोगों के हित में.
बलूचिस्तान में मानवाधिकार हनन और पाकिस्तानी सेना द्वारा उत्पीड़न की खबरें हैं, लेकिन भारत को यह भी विचार करना होगा कि क्या वह बलूच लिबरेशन आर्मी जैसे सशस्त्र समूहों का समर्थन करेगा, जिन्हें कई देश आतंकवादी मानते हैं.

कैसे कोई देश किसी देश को मान्यता देता है

किसी देश द्वारा दूसरे देश को मान्यता देना एक जटिल कूटनीतिक और कानूनी प्रक्रिया है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित करती है. मान्यता आमतौर पर एक देश की सरकार द्वारा आधिकारिक बयान, पत्र, या कूटनीतिक नोट के माध्यम से दी जाती है. यह बयान उस देश को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में स्वीकार करने की घोषणा करता है.

किसी देश को मान्यता देने के लिए कौन सी चार शर्तें होनी चाहिए

स्थायी जनसंख्या – क्षेत्र में लोग स्थायी रूप से रहते हों.
परिभाषित भू-भाग – स्पष्ट भौगोलिक सीमाएं हों.
सरकार – एक कार्यात्मक सरकार हो जो क्षेत्र को नियंत्रित करती हो.
अन्य देशों के साथ संबंध स्थापित करने की क्षमता – कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध बनाने की योग्यता हो.
हालांकि, ये मानदंड हमेशा सख्ती से लागू नहीं होते, क्योंकि मान्यता अक्सर राजनीतिक निर्णय भी होता है।

फिर क्या होता है

मान्यता देने वाला देश नए देश के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित कर सकता है, जैसे दूतावास खोलना या राजदूत नियुक्त करना.
यह निर्णय आमतौर पर देश की विदेश नीति, रणनीतिक हितों, और अंतरराष्ट्रीय दबावों पर आधारित होता है। इसमें सरकार, विदेश मंत्रालय, और कभी-कभी संसद की सहमति शामिल हो सकती है

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