पटना के गांधी मैदान में नीतीश कुमार ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. उनके साथ नई राज्य सरकार के मंत्रियों ने भी शपथ ली. भारत में कुछ जिम्मेदारी के ऐसे पद हैं जिन पर काम शुरू करने से पहले शपथ लेना जरूरी होता है. क्या आपको मालूम हैं कि वो कौन से पद हैं. आपको ये भी बता दें कि भारत में शपथ ग्रहण की शुरुआत ईस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में ही शुरू हुई. तो ये सवाल भी लाजिमी है कि इससे पहले भारत के राजे महाराजा गद्दी पर बैठते समय क्या करते थे.
वैसे रिकॉर्ड्स कहते हैं कि यह कहना काफी हद तक सही है कि भारत में आधुनिक रूप में “सरकारों का औपचारिक शपथ ग्रहण” ईस्ट इंडिया कंपनी और बाद में ब्रिटिश शासन द्वारा रखी गई परिपाटी से ही शुरू हुआ.
उससे पहले भारत में मुग़ल, मराठा, राजपूताना, विजयनगर, चोल या किसी भी शासन में राजा या बादशाह के सत्ता ग्रहण के समय राज्याभिषेक होता था. तब शासक को “प्रतिज्ञा” या “धर्म–शपथ” लेनी होती थी. तब मंत्री, अधिकारी और प्रतिनिधियों के लिए कोई तय संवैधानिक शपथ प्रणाली नहीं थी.
जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई तो इस परिपाटी में बड़ा बदलाव आया. कंपनी के शासन में पहली बार अफसर, न्यायाधीश और कलेक्टर ईश्वर के नाम पर लिखित शपथ लेकर पद ग्रहण करते थे. यही भारत में पहली लिखित–कानूनी शपथ प्रणाली मानी जाती है.
जब शपथ अनिवार्य कर दी गई
1858 में भारत का शासन ब्रिटिश क्राउन के हाथों में आ गया और ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म हो गया तो गर्वनर जनरल, गर्वनर, हाई कोर्ट और न्यायपालिका और सिविल सेवाओं के लिए औपचारिक शपथ अनिवार्य कर दी गई. यही वह समय था जहां भारत में सरकारी पद के ग्रहण में शपथ कानूनी परंपरा बनी.
कब भारत में चुने प्रतिनिधियों ने शपथ ली
वर्ष 1919 में मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधारों के बाद देश में ब्रिटिश राज के तहत स्थानीय जन प्रतिनिधि चुने जाने लगे. तब इस साल भारत में जनप्रतिनिधियों ने पहली बार शपथ ली. वर्ष 1935 में गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत शपथ को पूर्ण रूप से संवैधानिक दर्जा दिया गया.
फिर भारतीय संविधान ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया
आजादी के बाद जब भारत का संविधान बना तो शपथ की इसी परंपरा को आगे बढ़ाया गया. भारत में अब कई पद ऐसे हैं, जिस पर काम शुरू करने से पहले शपथ लेनी जरूरी होती है. ये संविधान में लिखित है. इसका प्रारूप भी ब्रिटिश कानून की ही विरासत है.
दुनिया में शपथ ग्रहण की परंपरा पुरानी
दुनिया में “शपथ ग्रहण” एक बेहद पुरानी परंपरा है. इसका इतिहास धर्म, राजनीति, कानून और शासन चारों से जुड़ा है. मानव सभ्यता के शुरुआती चरणों में जब कोई लिखित कानून नहीं था. लोग झगड़ों और सत्ता के विवादों में ईश्वर, आग, धरती, नदी, ग्रंथ या कबीले के नाम पर “कसम” खाते थे. अगर कोई कसम तोड़ता, तो उसे सामाजिक या दैवी दंड माना जाता. यही शपथ का शुरुआती कदम था.
मेसोपोटामिया में 3000 ईसापूर्व हम्मूराबी की संहिता में न्यायालय में गवाहों और अधिकारियों को ‘ओथ’ यानी शपथ दिलाने का उल्लेख मिलता है. फराओ के अधिकारी देवताओं के नाम पर शपथ लेते थे कि वे सत्ता का दुरुपयोग नहीं करेंगे. यूनान में तो डॉक्टरों की “हिपोक्रेटिक शपथ” भी इसी दौर की देन है. रोमन साम्राज्य में सैनिक सम्राट और राज्य की रक्षा के नाम पर शपथ लेते थे.
ईसाई धर्म में बाइबिल से शपथ दिलाकर पद और जिम्मेदारी सौंपी जाती थी. इसी परंपरा को मध्ययुगीन यूरोप में राजाओं और रईसों ने अपनाया. कुरआन में “क़सम” और “अहल–ए–अमानत” की अवधारणा है. इस्लामी अमीर और काज़ी सार्वजनिक रूप से शपथ लेते थे.
हिंदू परंपरा में राज्याभिषेक के साथ राजाओं को मंत्रियों और आचार्यों की उपस्थिति में वचन देना पड़ता था कि वो
– प्रजा की रक्षा करेंगे
– धर्म और न्याय की रक्षा करेंगे
– राज्य को समृद्ध करेंगे
आधुनिक राजनीतिक शपथ की शुरुआत कब
आधुनिक राजनीति में शपथ की शुरुआत ब्रिटेन में 1689 में हुई. ग्लोरियस रेवोल्यूशन के बाद संसद ने राजाओं के अधिकार सीमित किए और सरकारी पदों पर शपथ को कानूनी रूप दे दिया. यही मॉडल आगे चलकर यूरोप से लेकर अमेरिका और ब्रिटिश उपनिवेशों में लागू हुआ. अमेरिका में 1789 में अमेरिकी संविधान ने राष्ट्रपति के लिए औपचारिक शपथ तय की. इसमें कहा जाता था, मैं पूरी आस्था के साथ राष्ट्रपति के कामों का निर्वहन करूंगा. इसे दुनिया की पहली लोकतांत्रिक–सांविधानिक शपथ मानी जाता है.
संविधान क्या कहता है शपथ के बारे में
भारत का संविधान कहता है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक एवं अन्य पदों पर नियुक्ति के लिए शपथ लेना जरूरी है. संविधान की तीसरी अनुसूची में इसकी व्यवस्था की गई है.
पद कौन शपथ दिलाता है संविधान का अनुच्छेद
1. राष्ट्रपति मुख्य न्यायमूर्ति अनुच्छेद 562
2. उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति अनुच्छेद 69
3. प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री राष्ट्रपति अनुच्छेद 75
4. सांसद सभापति/स्पीकर अनुच्छेद 99
5. मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति अनुच्छेद 124
6. सुप्रीम कोर्ट जज राष्ट्रपति अनुच्छेद 124
7. राज्यपाल हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीश अनुच्छेद 159
8. मुख्यमंत्री, मंत्री राज्यपाल अनुच्छेद 164
9. विधायक, विप सदस्य राज्यपाल अनुच्छेद 188
10. हाईकोर्ट चीफ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट सीजेआई या राज्यपाल अनुच्छेद 219
11. हाईकोर्ट जज राज्यपाल अनुच्छेद 219
12. अटार्नी जनरल राष्ट्रपति अनुच्छेद 76
13. सीएजी राष्ट्रपति अनुच्छेद 148
14. UPSC अध्यक्ष, सदस्य राष्ट्रपति अनुच्छेद 316
इसके अलावा राज्य लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्य, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त, राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय जांच एजेंसियों के डायरेक्टर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग आदि के अध्यक्ष -सदस्य, सूचना आयुक्त (केंद्र एवं राज्य) को शपथ दिलानी अनिवार्य होती है.
शपथ का मूल स्वरूप
सभी शपथों में मूल वाक्य यही होता है कि व्यक्ति
– भारत के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा
– संविधान का पालन करेगा
– निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करेगा
– गोपनीयता बनाए रखेगा
शपथ या तो “ईश्वर की शपथ” के रूप में या “सत्यनिष्ठा की घोषणा” के रूप में ली जा सकती है.
क्या कलेक्टर और एसपी को भी शपथ दिलाई जाती है
हां, कलेक्टर और एसपी को भी नियुक्ति के समय शपथ दिलाई जाती होती है, लेकिन यह शपथ संविधान की तीसरी अनुसूची में नहीं आती, क्योंकि ये संवैधानिक पद नहीं हैं. इनकी शपथ का आधार अखिल भारतीय सेवाओं में होता है. इन सेवाओं में भर्ती होने के बाद ट्रेनिंग के अंत में शपथ ली जाती है. ये शपथ अखिल भारतीय सर्विसेज नियम, 1968 और संबंधित सेवा नियमों के तहत होती है.
आईएएस अफसर लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में शपथ लेते हैं तो IPS अफसर सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद में प्रशिक्षण पूरा होने पर शपथ लेते हैं.
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1 hour ago
