क्या है प्रणामी संप्रदाय, जिसे मानती थीं गांधीजी की मां, इस्लाम से क्या रिश्ता

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गांधीजी मां पुतली बाई गुजरात में उस समय लोकप्रिय परनामी संप्रदाय को मानती थीं, जो हिंदू धर्म के साथ मुस्लिम धर्म की भी अच्छी बातों पर विश्वास करता था.

News18 हिंदीLast Updated :March 4, 2025, 12:07 ISTEditor pictureFiled by
  Sanjay Srivastava

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गांधीजी की मां गुजरात में लोकप्रिय परनामी संप्रदाय में आस्था रखती थीं. वह हमेशा उसके मंदिरों में जाती थीं. उनके धार्मिक कार्यकलाप में शामिल होती थीं. गांधीजी भी बचपन में मां के साथ वहां जाया करते थे. इसकी छाप उनपर जीवनभर पड़ी रही.

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परनामी संप्रदाय गीता और कुरान में कोई भेद नहीं करता. मोहनदास करमचंद गांधी पर भी मां की गहरी छाप रही, वो सभी धर्मों का सम्मान करते थे. गांधीजी ने जब अपनी आत्मकथा "सत्य के साथ मेरे प्रयोग?" लिखी तो मां पुतलीबाई के बारे में बात करते हुए परनामी समुदाय पर भी लिखा. हालांकि गांधीजी ने खुद को अच्छा हिंदू कहा. ये भी कहा कि एक अच्छा हिंदू होने के नाते मैं अगर सच्ची निष्ठा से इस धर्म को मानता हूं तो दूसरे सभी धर्मों का भी आदर करता हूं.

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गांधीजी ने अपनी पुुस्तक सत्य के साथ मेरे प्रयोग में इस संप्रदाय के बारे में लिखा, प्रणामी एक संप्रदाय है जो गीता और कुरान का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करके एक लक्ष्य - श्री कृष्ण की खोज करता है.

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(प्रणामी संप्रदाय का भगवान कृष्ण का मंदिर) गांधी कहते हैं, "मेरा परिवार परनामी था. भले ही हम जन्म से हिंदू हैं, लेकिन मां जिस प्रणामी संप्रदाय के धार्मिक स्थल पर हमेशा जाती थीं, वहां पुजारी समान तौर पर गीता और कुरान दोनों से पढ़ता था. परनामी सात्विक जीवन, परोपकार, जीवों पर दया, शाकाहार और शराब से दूर रहने पर जोर देता था. इस संप्रदाय की शिक्षाओं से गांधीजी ने खुद को ताउम्र बांधे रखा.

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ये हिंदू निजानंद संप्रदाय के लगभग 60 लाख अनुयायियों के लिए दैनिक अनुष्ठान है, जो 400 साल पहले गुजरात के जामनगर में परनामी नाम से शुरू हुआ. कृष्ण के लिए उनका प्यार भी पवित्र पैगंबर का आह्वान करता है.

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ये संप्रदाय में गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान से लेकर और नेपाल में तक फैला है. वहां भी इसके अनुयायी हैं. मुंबई में कम से कम 5,000 प्रणामी अनुयायी रहते हैं. भुलेश्वर में एक विशेष कृष्ण प्रणामी मंदिर इन भक्तों का स्वागत करता है. यहां गीता के श्लोक और कुरआन की आयतें लिखे ग्रंथों कोराधा-कृष्ण का स्वरूप देकर पूजन किया जाता है.

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परनामी समुदाय को निजानंद संप्रदाय भी कहते हैं. एक ऐसा समुदाय है जो भगवान "राज जी" में विश्वास करता है. उन्हें ही परम सत्य मानता है. मुस्लिम अनुयायियों ने प्राणनाथ जी को "अंतिम इमाम मेहंदी" माना और हिंदू अनुयायियों ने "बुद्ध निशकलंक कल्कि अवतार" के रूप में माना, जिसे 1678 AD में हरिद्वार में कुंभ मेले में तय किया गया.

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(पन्ना का प्रणामी मंदिर) धर्म के भीतर एक वैष्णववाद उप-परंपरा है जो भगवान कृष्ण पर केंद्रित है. यह परंपरा पश्चिमी भारत में 17 वीं शताब्दी में भक्ति संतों, श्री देवचंद्र महाराज और उनके सबसे प्रमुख शिष्य श्री मेहरराज ठाकुर (जिसे महामती प्रणथ या प्राणनाथ भी कहा जाता है, जो इस परंपरा को नाम देती है) की शिक्षाओं के आधार पर उभरा. औरंगजेब के गैर-मुसलमानों के धार्मिक उत्पीड़न के चलते ये परंपरा बढ़ी, तब हिंदू विद्रोह ने नए साम्राज्यों का नेतृत्व किया.

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बुंदेलखंड के एक ऐसे साम्राज्य के राजा छत्रसाल ने इस संप्रदाय के लोगों को संरक्षित किया. प्रणामी परंपरा ने हिंदुओं और मुस्लिमों को श्री कृष्ण की पूजा परंपरा में शामिल होने का स्वागत किया. प्रणामी लोग चाहे किसी भी धर्म के क्यों ना हों, वो एक साथ मिलकर भोजन करने पर विश्वास करते हैं और ये काम वो हमेशा से करते आ रहे हैं. धर्मों के सामंजस्य को आधार मानने के कारण प्रणामी समुदाय बढ़ता चला गया.

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परनामी परंपरा का धार्मिक केंद्र पूर्वोत्तर मध्य प्रदेश में पन्ना शहर में रहा है. समकालीन युग में, अन्य प्रमुख परनामी धार्मिक केंद्र (गद्दी) जामनगर (गुजरात) और फुगुवा (काठमांडू, नेपाल के दक्षिण में) में हैं. इसमें भी गुरुओं की परंपरा रही है. अब भी हर साल जामनगर 12 दिनों का एक बड़ा उत्सव होता है, जिसे पारायण कहते हैं. ये एक नवंबर से 12 नवंबर तक होता है और इसमें दुनियाभर से आए परनामी जुटते हैं. इसमें आमतौर पर दो लाख लोग हिस्सा लेते हैं.

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