Last Updated:July 27, 2025, 03:31 IST
Rajendra Chola Story: राजेंद्र चोल प्रथम ने गंगा से लेकर इंडोनेशिया तक समुद्री विजय हासिल की थी. वह पहले भारतीय शासक थे जिन्होंने समुद्र को लांघकर भारत का परचम दूर देशों में लहराया. पढ़िए उनकी रोटक कहानी.

हाइलाइट्स
राजेंद्र चोल ने समुद्र लांघकर श्रीविजय साम्राज्य को हराया.चोल नौसेना ने 14 समुद्री ठिकानों पर एक साथ हमला किया.चोल साम्राज्य का असर कंबोडिया, मलेशिया, थाईलैंड तक फैला.Rajendra Chola Story: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के गंगईकोंडा चोलपुरम पहुंचे हैं… एक ऐसे चोल सम्राट को श्रद्धांजलि देने, जिसने 1000 साल पहले भारत की ताकत का डंका गंगा से लेकर इंडोनेशिया तक बजाया था. इस खास मौके पर पीएम मोदी आदि तिरुवथिरई महोत्सव में शामिल होंगे और राजेंद्र चोल प्रथम की ऐतिहासिक समुद्री विजय यात्रा की सहस्त्राब्दी के अवसर पर स्मारक सिक्का भी जारी करेंगे. यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि उस गौरवगाथा की स्मृति है, जब भारत केवल एक भूखंड नहीं था, बल्कि एक विचार था. जो हिंद महासागर से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपनी संस्कृति, शक्ति और सम्मान के लिए जाना जाता था. उस विचार के वाहक थे चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम जिनका सपना था, “गंगा से इंडोनेशिया तक हिंदुस्तान हो अपना.”
राजेंद्र चोल: विजेता भी, दूरदर्शी भी
राजेंद्र चोल प्रथम (1014–1044 ई.) चोल वंश के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक थे. उन्होंने अपने पिता राजराजा चोल के साम्राज्य को केवल कायम ही नहीं रखा बल्कि उसे एशिया के सुदूर द्वीपों तक विस्तार दिया. उनके नेतृत्व में चोल सेना ने गंगा के पार कलिंग और बंगाल तक विजय प्राप्त की. इसी विजय के प्रतीक स्वरूप उन्होंने गंगा से जल मंगवाकर अपनी राजधानी का नाम रखा… गंगईकोंडा चोलपुरम यानी “गंगा को जीतने वाला चोल”.
यह राजधानी न सिर्फ राजनीतिक शक्ति का केंद्र थी, बल्कि स्थापत्य, संस्कृति और धर्म का भी भव्य संगम थी.
समुद्री तूफान जैसा था चोल सम्राट का सपना
राजेंद्र चोल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी उनकी अद्वितीय नौसेना शक्ति. उन्होंने भारत की पहली संगठित और आक्रामक समुद्री सेना बनाई, जिसमें हाथियों और युद्ध मशीनों को ढोने वाली विशाल नावें शामिल थीं. उन्होंने इंडोनेशिया के श्रीविजय वंश पर हमला कर राजा विजयतुंगवर्मन को बंदी बना लिया था.
चोलों ने एक साथ 14 समुद्री ठिकानों पर हमला किया. यह रणनीति आधुनिक सैन्य इतिहास में भी एक मिसाल मानी जाती है. इस जीत के बाद न केवल व्यापार मार्ग खुले बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रसार भी मलेशिया, थाईलैंड और कंबोडिया तक हुआ.
गंगईकोंडा चोलपुरम: सिर्फ राजधानी नहीं, गौरव का प्रतीक
राजेंद्र चोल ने जिस गंगईकोंडा चोलपुरम को राजधानी के रूप में स्थापना की वह एक भव्य मंदिर और प्रशासनिक व्यवस्था का प्रतीक बन गया. यहां स्थित शिव मंदिर अपनी 55 मीटर ऊंचाई, 13 फीट ऊंचे शिवलिंग, और जटिल मूर्तियों के लिए जाना जाता है. यह मंदिर आज भी ‘महान जीवित चोल मंदिरों’ में गिना जाता है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है.
यह वही स्थल है जहां आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस सम्राट को सम्मानित कर रहे हैं, जिसने कभी यहां से हिंद महासागर तक चोल साम्राज्य की शक्ति दिखाई थी.
आदि तिरुवथिरई महोत्सव: भक्ति, परंपरा और पहचान का संगम
23 से 27 जुलाई तक मनाया जा रहा आदि तिरुवथिरई महोत्सव, राजेंद्र चोल की जयंती और समुद्री विजय के 1000 साल पूरे होने का उत्सव है. इस दिन को खास बनाता है उनका जन्म नक्षत्र तिरुवथिरई (आर्द्रा). चोलों ने तमिल शैव भक्ति परंपरा को आगे बढ़ाया और 63 नयनमार संतों की वाणी को अमर किया.
इस उत्सव के ज़रिए न केवल उनकी विरासत का सम्मान किया जा रहा है, बल्कि शिव भक्ति, मंदिर स्थापत्य, और तमिल सांस्कृतिक चेतना को भी मंच मिल रहा है.
गंगा से लेकर चीन तक… चोलों की छाप आज भी अमिट है
राजेंद्र चोल ने श्रीलंका, मालदीव, मलेशिया, थाईलैंड और कंबोडिया तक अपने विजय अभियान चलाए. उन्होंने खमेर साम्राज्य से कर वसूला और चीन में अपने दूत तक तैनात किए. एक समय ऐसा था जब बंगाल की खाड़ी को लोग “चोलों की झील” कहते थे.
चोल साम्राज्य अपने चरम पर कला, वास्तुकला, जल प्रबंधन, शिक्षा और समुद्री व्यापार में अग्रणी रहा. उनकी बनवाईं झीलें आज भी तमिलनाडु के कई क्षेत्रों को जल उपलब्ध कराती हैं.
आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजेंद्र चोल प्रथम को नमन करते हैं तो यह सिर्फ अतीत को याद करना नहीं बल्कि उस विचार को फिर से जीवित करना है, जो कहता है… ‘भारत सीमाओं से नहीं, संकल्प से बनता है.’
Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...और पढ़ें
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