जब बजता है युद्ध का बिगुल, तो क्या छिन जाते हैं आपके मौलिक अधिकार?

7 hours ago

Last Updated:May 09, 2025, 15:29 IST

India-pakistan War: जब देश में युद्ध के हालात होते हैं तो आपातकाल लगा दिया जाता है. इस दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन होता है. जानिए क्या है अनुच्छेद 358 और 359 जो आपातकालीन स्थितियों में मौलिक अधिकारों के निलं...और पढ़ें

जब बजता है युद्ध का बिगुल, तो क्या छिन जाते हैं आपके मौलिक अधिकार?

जानिए क्या है अनुच्छेद 358 और 359 जो आपातकालीन स्थितियों में मौलिक अधिकारों के निलंबन से संबंधित हैं.

हाइलाइट्स

युद्ध के दौरान अनुच्छेद 19 के अधिकार निलंबित हो सकते हैंलेकिन अनुच्छेद 20 और 21 के अधिकार निलंबित नहीं होतेअनुच्छेद 358 और 359 आपातकाल में अधिकार निलंबन से संबंधित हैं

India-pakistan War: भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव चरम पर है. दोनों देश युद्ध के कगार पर खड़े हैं. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दोनों देश अघोषित युद्ध लड़ रहे हैं. अअप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले में भारत के 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे. उसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत सीमा पार कार्रवाई की. भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ स्थानों पर आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर पहलगाम का बदला ले लिया. इसमें दुश्मन देश के 31 आतंकवादी हलाक हो गए. इसके जवाब में पाकिस्तान ने जम्मू, पठानकोट और उधमपुर में भारतीय सैन्य ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइलों से हमला करने का असफल प्रयास किया. इसे भारतीय सेनाओं ने प्रभावी ढंग से विफल कर दिया. 

भारत में युद्ध की घोषणा करने की शक्ति राष्ट्रपति के पास है. लेकिन इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर किया जाता है. भारतीय संविधान में युद्ध की औपचारिक घोषणा के लिए स्पष्ट रूप से कोई प्रक्रिया नहीं बतायी गयी है, जैसा कि कुछ अन्य देशों में है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा युद्ध जैसी स्थिति से निपटने का सबसे कारगर तरीका है. लेकिन क्या इस दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकार छिन जाते हैं? आइए इस बात को विस्तार से समझते हैं…

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भारतीय संविधान के अनुसार युद्ध के समय नागरिकों के कुछ मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है. लेकिन कुछ अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता है. जैसे अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा मिलने वाले अधिकार (उदाहरण के लिए, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) निलंबित नहीं किए जा सकते. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान द्वारा संरक्षित किया जाता है और सर्वोच्च न्यायालय उनकी सुरक्षा करता है. 

अनुच्छेद 19: यह अनुच्छेद भाषण, सभा, संगठन, आवागमन और निवास की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों से संबंधित है. युद्ध या बाहरी आक्रमण के कारण आपातकाल की घोषणा होने पर इन अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है.

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अनुच्छेद 20 और 21: ये अनुच्छेद जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार और अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं. इन अधिकारों को किसी भी स्थिति में निलंबित नहीं किया जा सकता है, भले ही आपातकाल घोषित हो. 

अनुच्छेद 358 और 359 भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो युद्ध या बाहरी आक्रमण जैसी आपातकालीन स्थितियों में मौलिक अधिकारों के निलंबन से संबंधित हैं. हालांकि इन दोनों अनुच्छेदों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं.

अनुच्छेद 358: यह अनुच्छेद घोषणा करता है कि जब राष्ट्रीय आपातकाल युद्ध या बाहरी आक्रमण के आधार पर घोषित किया जाता है. तो अनुच्छेद 19 द्वारा दिए गए छह मौलिक अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं. इसके लिए किसी अलग आदेश की आवश्यकता नहीं होती. निलंबन की अवधि आपातकाल की अवधि तक ही रहती है.  आपातकाल समाप्त होने के बाद अनुच्छेद 19 फिर से सक्रिय हो जाता है. राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राज्य को कोई कानून बनाने या कार्यकारी कार्रवाई करने से नहीं रोका जाता है. ऐसे कानूनों या कार्रवाइयों को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वे अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करते हैं.

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अनुच्छेद 359: यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह शक्ति देता है कि वह राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के इंफोर्समेंट के लिए किसी भी अदालत में जाने के अधिकार को निलंबित करने का आदेश जारी कर सकें. अनुच्छेद 359 अनुच्छेद 19 के विपरीत विशिष्ट मौलिक अधिकारों के निलंबन की अनुमति देता है, न कि सभी मौलिक अधिकारों के स्वतः निलंबन की. राष्ट्रपति आदेश में उन विशेष मौलिक अधिकारों का उल्लेख करते हैं जिनके इंफोर्समेंट को निलंबित किया गया है. निलंबन की अवधि का जिक्र राष्ट्रपति के आदेश में होता है. जो या तो आपातकाल की अवधि या उससे कम हो सकती है. 

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यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए सजा के संबंध में संरक्षण) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण) को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है. यह 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा जोड़ा गया था.

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New Delhi,Delhi

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