Last Updated:September 09, 2025, 11:59 IST
सुप्रीम कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण और भूमि मालिकों को मुआवजे को लेकर एनएचआई के कानून पर फटकार लगाया है. कोर्ट ने इस दोहरे कानून को बहुत 'बुरा' बताया है. साथ ही सरकार को जांच के निर्देश दिए हैं.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार एक सुनवाई के दौरान एनएचआई को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने नेशनल हाइवे अधिनियम 1956 (एनएचएआई अधिनियम) के प्रावधानों की आलोचना करते हुए, इनको ‘बुरा‘ बताया है. ये कानून भूमि मालिकों को न्यायिक सहायता से वंचित करते हैं और एकतरफा समाधान लागू करते हैं, जिसमें न्यायिक अधिकारियों (कोर्ट के जज) के बजाय नौकरशाहों के हाथों में न्यायिक शक्तियां प्रदान करता है.
सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने एनएचआई के दोहरे मापदंड पर सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि इस कानून में मुआवजे के निर्धारण का अधिकार कार्यपालिका (सरकार) के अधिकारियों को क्यों दिया गया है? भूमि अधिग्रहण अधिनियम और अन्य कानूनों के तहत छोटे राज्य अधिग्रहणों के लिए भी न्यायिक निगरानी की आवश्यकता होती है?
संविधान का उल्लंधन
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के भूमि अधिग्रहण मुआवजा नियमों को लेकर सुनवाई कर रहा था. ये पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मार्च 2025 के फैसले के खिलाफ सुनवाई के दौरान सामने आए. हाईकोर्ट ने एनएचएआई अधिनियम की धारा 3जे और 3जी को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था, क्योंकि ये नियम भूस्वामियों को निष्पक्ष मुआवजा और सुनवाई का अधिकार नहीं देते. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनएचएआई का मुआवजा तय करने का तरीका एकतरफा है. यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 300ए (संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन करता है.
स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रणाली की जरूरत
कोर्ट ने सुझाव दिया कि मुआवजा तय करने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रणाली होनी चाहिए, जिसमें कोई जज या निष्पक्ष अधिकारी फैसला ले. वर्तमान में, एनएचएआई अधिनियम के तहत मुआवजा एक कलेक्टर तय करता है. उसका फैसला अपील में ऊपरी नौकरशाहों, जैसे उपायुक्त या आयुक्त, के पास जाता है. लेकिन, कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में स्वतंत्र जज की कमी से निष्पक्षता खत्म हो जाती है. कोर्ट ने पिछले साल के एक फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें सरकारी संस्थानों द्वारा एकतरफा मध्यस्थ नियुक्त करना असंवैधानिक माना गया था.
हाइकोर्ट ने क्या कहा था?
हाईकोर्ट ने भी कहा था कि एनएचएआई के ढांचा एकतरफा बताया था. हाईकोर्ट इसमें भूस्वामी को उचित सुनवाई का मौका नहीं मिलता. साथ ही, एनएचएआई अधिनियम में भूस्वामियों को पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत मिलने वाले अतिरिक्त लाभ, जैसे 30% क्षतिपूर्ति और 9-15% ब्याज, नहीं दिए जाते, जो गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने जोर दिया कि जब सरकार किसी की जमीन लेती है, तो मुआवजा निष्पक्ष, उचित और समान होना चाहिए. एनएचएआई जैसी संस्था खुद ही मुआवजा तय नहीं कर सकती, क्योंकि यह प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है.
दीप राज दीपक 2022 में न्यूज़18 से जुड़े. वर्तमान में होम पेज पर कार्यरत. राजनीति और समसामयिक मामलों, सामाजिक, विज्ञान, शोध और वायरल खबरों में रुचि. क्रिकेट और मनोरंजन जगत की खबरों में भी दिलचस्पी. बनारस हिंदू व...और पढ़ें
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 09, 2025, 11:59 IST