झील का पानी या जहर का घूंट? प्लास्टिक बनता जा रहा नैनीझील का पानी, रिसर्च में.

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Last Updated:June 07, 2025, 12:38 IST

Naini Lake Water Crisis: नैनीताल की नैनीझील में खतरनाक स्तर तक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पाया गया है. तीन साल की स्टडी में झील के हर हिस्से में कण मिले. यह स्थिति जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए गंभीर ख...और पढ़ें

झील का पानी या जहर का घूंट? प्लास्टिक बनता जा रहा नैनीझील का पानी, रिसर्च में.

हाइलाइट्स

नैनीझील में खतरनाक स्तर तक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पाया गया है.तीन साल की स्टडी में झील के हर हिस्से में माइक्रोप्लास्टिक कण मिले.माइक्रोप्लास्टिक कण जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं.

नैनीताल- उत्तराखंड की विख्यात नैनीझील, जो न केवल नैनीताल की पहचान है बल्कि हजारों लोगों की जीवनरेखा भी मानी जाती है, आज एक गहरे पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है. हाल ही में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध रिपोर्ट ने यह उजागर किया है कि झील में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर बेहद खतरनाक हद तक पहुंच चुका है, जो न केवल जलीय जीवन बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है.

हर कोने में मिला माइक्रोप्लास्टिक
एनवायरमेंटल पॉल्यूशन नामक वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों की एक टीम ने तीन वर्षों तक झील के 16 अलग-अलग स्थानों से जल और तलछट के नमूने एकत्र किए. हैरान कर देने वाली बात यह रही कि हर स्थान पर माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए. कई क्षेत्रों में इनकी मात्रा 88 कण प्रति लीटर तक दर्ज की गई, जो किसी भी मीठे जल स्रोत के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति है.

फाइबर प्रकार के कण हैं प्रमुख कारण
शोध में यह खुलासा हुआ कि झील में मौजूद अधिकतर माइक्रोप्लास्टिक कण फाइबर प्रकार के हैं. इनकी लंबाई 0.02 मिमी से लेकर 1 मिमी तक पाई गई. ये कण मुख्य रूप से कपड़े धोने, मछली पकड़ने की जालियों, और घरेलू प्लास्टिक उत्पादों से उत्पन्न होते हैं. ये न केवल जलीय जीवों को प्रभावित करते हैं, बल्कि खाद्य श्रृंखला के माध्यम से इंसानों के शरीर में प्रवेश कर गंभीर बीमारियों का कारण भी बन सकते हैं.

नालों और पर्यटन गतिविधियों से बढ़ता संकट
शहर की होटल-रेस्टोरेंट्स, बढ़ता पर्यटन और झील में गिरने वाले अनुपचारित नाले, विशेष रूप से बड़ा नाला, इस प्रदूषण के प्रमुख स्रोत माने जा रहे हैं. झील में पाए गए रंगीन (नीले, लाल, काले और हरे) कण यह संकेत देते हैं कि ये कचरा प्लास्टिक बैग, पैकेजिंग और धार्मिक आयोजनों की सजावट से संबंधित है.

विशेषज्ञों ने जताई गहरी चिंता
डीएसबी कॉलेज नैनीताल की डीन साइंस प्रो. चित्रा पांडे के अनुसार, झील में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति एक गंभीर पारिस्थितिकीय संकट का संकेत है. उनका कहना है कि ‘झील का जल दूषित हो रहा है और पीने पर यह कैंसर जैसी बीमारियों को जन्म दे सकता है. इस पर तत्काल नियंत्रण और गहन शोध की आवश्यकता है.’

Location :

Nainital,Uttarakhand

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