आधुनिक जमाने में गर्भ धारण करने के कई तकनीकी तरीके सामने आ चुके हैं, लेकिन पुराने जमाने में बांझपन के तरीके को दूर करने के लिए बेहद अजीब-अजीब तरीके अपनाए जाते रहे हैं. पिछले दिनों हमने आपको एक खबर के ज़रिए बताया था कि एक समय में ननों के पेशाब से तैयार होने वाली दवाई भी महिलाओं के बांझपन को दूर करने में काफी कारगर साबित हुई थी. अज हम आपको बताएंगे कि एक समय में जानवरों, खासकर बाघ के प्राइवेट पार्ट यानी अंडकोष और लिंग की मदद से भी इस समस्या निवारण किया जाता रहा है.
कहां इस्तेमाल होती थी टाइगर के प्राइवेट पार्ट की दवाई?
प्राचीन काल से ही अलग-अलग संस्कृतियों में बाघ के अंडकोष और लिंग को यौन शक्ति और प्रजनन क्षमता बढ़ाने का ज़रिया माना जाता रहा है. यह सब खास तौर पर चीन, थाईलैंड, वियतनाम और अन्य कुछ एशियाई देशों में इस्तेमाल किया जाता था. कहा जाता है कि उस समय यह विश्वास था कि अपनी ताकत, आक्रामकता और प्रजनन ताकत के लिए पहचाने जाने वाले बाघ के जननांगों को खाने या फिर उससे बनी दवाइयों का इस्तेमाल करने से पुरुषों की यौन क्षमता बढ़ती थी. इसके अलावा संतान पैदान करने भी कारगर साबित होती थी.
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बाघ के लिंग की बनती थी वाइन
मान्यता थी कि बाघ का लिंग सुखाकर या उबालकर शराब में मिलाने से एक खास तरह की 'टॉनिक वाइन' तैयार की जाती थी. जिसे 'टाइगर पेनिस वाइन' कहा जाता था. बाघ के जननांगों से बनी इस वाइन को उच्च स्तर की दवाई माना जाता था. जिसे अक्सर प्रभावशाली लोग ही इस्तेमाल कर पाते थे.
अंडकोष को सुखाकर बनाते थे पाउडर
इसके अलावा बाघ के अंडकोष को सुखाकर या फिर उसका पाउडर बनाकर कुछ अन्य दवाइयों में मिलाया जाता था. जिसके बाद इस दवाई का इस्तेमाल पुरुषों में ताकत और प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
विज्ञान ने खारिज किया दावा
हालांकि इन मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिलता. आधुनिक विज्ञान के मुताबिक बाघ के लिंग या अंडकोष में कोई ऐसी खास चीज नहीं होती तो इंसानों में प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डाल सकती है. इस तरह के इलाज को यह पूरी तरह से अंधविश्वास और पारंपरिक विश्वासों पर आधारित माना जाता था. यह भी संभव हो सकता है कि लोगों के मानसिक विश्वास और प्लेसिबो इफेक्ट की वजह से कभी-कभार ये असरदार साबित हो जाता हो.
बाघों का हो रहा था अवैध कारोबार
लोगों के इस विश्वास की वजह से बाघ के जननांगों की काफी मांग बढ़ने लगी थी और अवैध शिकर किया जा रहा था. ऐसे में बाघों की तादादा में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी. इसी को देखते हुए कई देशों ने बाघ और उनके अंगों की खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी. हालांकि काला बाजार के ज़रिए आज भी कुछ जगहों पर इसका कारोबार होता है.
(डिस्क्लेमर: यह खबर इंटनेट पर मौजूद जानकारी के आधार पर लिखी गई है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते. इसके अलावा विज्ञान ने भी इन दावों को खारिज कर दिया है.)