Last Updated:July 14, 2025, 08:56 IST
Bihar Chunav 2025: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. C-Voter के ताजा सर्वे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता स्थिर, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में गिरावट और प्रशांत कि...और पढ़ें

तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के बीच बिहार चुनाव की रस्साकशी.
हाइलाइट्स
C-Voter सर्वे के अनुसार, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में फरवरी की तुलना में 6% की कमी. मोतिहारी हिंसा पर चुप्पी और 'जंगलराज' के नैरेटिव ने उनके वोट बैंक को प्रभावित किया है! सर्वे के अनुसार, CM नीतीश का स्थिर पर कमजोर आधार, नीतीश के काम से 58% लोग संतुष्ट. प्रशांत किशोर की लोकप्रियता 14.9% से बढ़कर 18.4% हुई, कास्ट पॉलिटिक्स से अलग अपील.पटना. बिहार की राजनीति में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले सियासी हलचल तेज हो चुकी है. C-Voter के मासिक ट्रैकर सर्वे के आधार पर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता और उनके कामकाज से जनता की संतुष्टि के साथ-साथ तेजस्वी यादव की घटती लोकप्रियता और प्रशांत किशोर के उभरते कद ने बिहार की राजनीति को एक रोचक मोड़ पर ला खड़ा किया है.तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी के क्या कारण हैं, नीतीश कुमार की यथास्थिति और प्रशांत किशोर के प्रभाव में बढ़ोतरी बिहार में सियासी समीकरणों के नये संकेत दे रहे हैं.कानून-व्यवस्था पर उठ रहे सवालों के बीच उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंता और एंटी इंकंबेंसी जैसे कमजोर आधार के बावजूद नीतीश कुमार के काम से 58% लोग संतुष्ट हैं, लेकिन उनकी सार्वजनिक तौर पर सक्रियता और बार-बार गठबंधन बदलने की इमेज एनडीए के लिए चुनौती बनी हुई है. वहीं, तेजस्वी यादव अपनी लोकप्रियता को बरकरार रख पाने में फिलहाल संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. इसके कई कारण हैं जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे. वहीं, जन सुराज के प्रशांत किशोर की लोकप्रियता 14.9% से बढ़कर 18.4% हुई है जो उनकी कास्ट पॉलिटिक्स से अलग अपील और युवा-शहरी वोटरों के समर्थन की ओर संकेत करता है.
तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी के कारण-C-Voter सर्वे के अनुसार, तेजस्वी यादव की लोकप्रियता फरवरी 2025 में 41% से घटकर जुलाई 2025 में 35% हो गई है. इस 6% की गिरावट के पीछे कई संभावित कारण हैं. जिमें यादव समुदाय के एक तबके में नाराजगी जाहिर हो रही है. तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी का एक प्रमुख कारण यादव समुदाय के एक तबके में असंतोष है. विशेष रूप से, मोतिहारी में अजय यादव की सांप्रदायिक हिंसा में मौत पर तेजस्वी यादव और आरजेडी की चुप्पी ने इस समुदाय को निराश किया है. बता दें कि यादव समुदाय राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का कोर वोट बैंक है. जानकार बताते हैं कि यादव समुदाय मानता है कि सामाजिक एकता और सुरक्षा के मुद्दों पर तेजस्वी को और मुखर होना चाहिए था. समुदाय का एक हिस्सा यह कह रहा है कि “पहले समाज रहेगा, तब RJD या तेजस्वी होंगे”. यह नाराजगी RJD के पारंपरिक वोटर आधार को कमजोर कर सकती है.
जंगलराज बनाम नीतीश राज की तुलना
बिहार की जनता के बीच “जंगलराज” (लालू-राबड़ी शासन) और “नीतीश राज” की तुलना एक बार फिर चर्चा में है.चुनाव का समय नजदीक आते ही लोगो तुलना करने लगे हैं और नीतीश कुमार की सरकार को लेकर लोगों के मन में उतनी नाराजगी नहीं है, भले ही उनकी सार्वजनिक उपस्थिति कम हो हो गई है. विकास और सुशासन के कुछ क्षेत्रों में जनता का भरोसा बनाए हुए हैं. C-Voter सर्वे के अनुसार, जून 2025 में 59% और जुलाई में 58% लोग नीतीश के कामकाज से संतुष्ट थे. इसके विपरीत तेजस्वी के उठाए गए बेरोजगारी और अपराध जैसे मुद्दे जनता को प्रभावित करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं. NDA का “जंगलराज” का भय दिखाने वाला नैरेटिव तेजस्वी की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है.
बिहार पॉलिटिक्स में प्रशांत किशोर का उभार
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बिहार की राजनीति में एक नए विकल्प के रूप में उभर रही है. C-Voter सर्वे में उनकी लोकप्रियता फरवरी में 14.9% से बढ़कर जून में 18.4% हो गई है और वे नीतीश कुमार को पछाड़कर दूसरे स्थान पर पहुंच गए हैं. प्रशांत किशोर का जाति-निरपेक्ष दृष्टिकोण और शहरी युवाओं व शिक्षित वर्ग के बीच बढ़ता समर्थन तेजस्वी के वोट बैंक, विशेष रूप से युवाओं और गैर-यादव पिछड़े वर्गों को प्रभावित कर रहा है. उनकी ताजा हवा की तरह उभरने वाली छवि तेजस्वी यादव की लोकप्रियता को चुनौती दे रही है.
महागठबंधन की राजनीतिक रणनीति में कमी
तेजस्वी यादव और RJD की रणनीति में कुछ कमियां भी उनकी लोकप्रियता पर असर डाल रही हैं. उदाहरण के लिए, गठबंधन के भीतर सीट बंटवारे और सहयोगी दलों, जैसे- कांग्रेस के साथ तालमेल की कमी ने महागठबंधन की एकजुटता को कमजोर किया है. पप्पू यादव जैसे नेताओं ने तेजस्वी पर गठबंधन धर्म निभाने में विफलता का आरोप लगाया है जिससे विपक्षी खेमे में भ्रम की स्थिति बनी है.
नीतीश कुमार की नीतियों का गहरा प्रभाव
नीतीश कुमार ने हाल ही में महिलाओं के लिए सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण और शत-प्रतिशत डोमिसाइल नीति जैसे कदम उठाए हैं, जो महिला वोटरों को आकर्षित कर रहे हैं. बिहार में महिला मतदाता पुरुषों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं (2020 में 59.7% महिला मतदान बनाम 54.6% पुरुष मतदान) और नीतीश की यह रणनीति तेजस्वी के युवा-केंद्रित नैरेटिव को कमजोर कर रही है.
नीतीश कुमार की स्थिति और सियासी चुनौतियां
नीतीश कुमार की लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव देखा गया है. फरवरी में 18.4%, अप्रैल में 15.4% और जून में 17.4% लोगों ने उन्हें पसंदीदा मुख्यमंत्री के रूप में चुना. उनका स्वास्थ्य कारणों से जनता के बीच में कम आना उनकी छवि पर असर डाल रही है. C-Voter सर्वे के अनुसार, 58% लोग उनके काम से संतुष्ट हैं, लेकिन 41% असंतुष्ट भी हैं जो उनकी विश्वसनीयता में कमी का संकेत देता है. नीतीश की बार-बार गठबंधन बदलने की रणनीति (2022 में NDA से महागठबंधन, फिर 2024 में वापस NDA) ने उनकी विश्वसनीयता को प्रभावित किया है. इसके अलावा उनकी उम्र और कमजोर सार्वजनिक उपस्थिति ने JDU के लिए अगली पीढ़ी के नेतृत्व की कमी को उजागर किया है. फिर भी नीतीश का सुशासन और विकास का ट्रैक रिकॉर्ड, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें एक मजबूत आधार देता है.
बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार की राजनीति में एक नया समीकरण जोड़ा है. उनकी लोकप्रियता में 4% की वृद्धि और जाति-निरपेक्ष अपील ने उन्हें युवाओं और शहरी वोटरों के बीच लोकप्रिय बनाया है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार में जातिगत समीकरणों को तोड़ना आसान नहीं है और उनकी लोकप्रियता का वोटों में तब्दील होना अनिश्चित है. फिर भी, अगर वे 5-6% वोट शेयर भी प्राप्त कर लेते हैं तो यह NDA और महागठबंधन दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
बिहार जनता रख रही पैनी निगाह
तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में कमी के पीछे यादव समुदाय की नाराजगी, जंगलराज के नैरेटिव का फिर विमर्श में आ जाना, प्रशांत किशोर का उभार और महागठबंधन की रणनीतिक कमियां प्रमुख कारण हैं. वहीं, नीतीश कुमार की संतुष्टि का स्तर स्थिर है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति और विश्वसनीयता में कमी JDU के लिए चुनौती है. जबकि, प्रशांत किशोर की एंट्री ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है और बिहार का चुनाव अब केवल NDA बनाम महागठबंधन तक सीमित नहीं है. बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दे मतदाताओं के फैसले को प्रभावित करेंगे. आने वाले महीनों में नेताओं की रणनीति और जनता का मूड बिहार की सत्ता का फैसला करेगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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