डोनाल्ड ट्रंप के पिछले कुछ महीनों के कार्यकाल यानी जब से उन्होंने व्हाइट हाउस की कुर्सी संभाली है तब से अमेरिका की विदेश नीति और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. अब अफ्रीका में अमेरिकी सेना की रणनीति में बदलाव देखा जा रहा है. पहले जहां अच्छी शासन व्यवस्था और आतंकवाद से निपटने की बातें की जाती थीं, अब अमेरिकिी प्रशासन अपने कमजोर सहयोगी देशों से कह रहा है कि वे अपनी सुरक्षा के लिए खुद अधिक जिम्मेदार बनें.
अफ्रीका में अमेरिकी सेना का सबसे बड़ा ज्वाइंट ट्रेनिंग एक्सरसाइज 'अफ्रीकन लायन' का यह बदलाव साफ था. अमेरिकी सेना के अफ्रीका प्रमुख जनरल माइकल लैंगली ने कहा, 'हमें अपने साझेदारों को इस स्तर तक लाना है कि वे स्वतंत्र रूप से ऑपरेशन चला सकें. अफ़्रीका में अमेरिकी सेना के टॉप अफसर लैंगली ने एक्सरसाइज के आखिरी दिन शुक्रवार को कहा, 'कुछ हद तक बोझ साझा करने की आवश्यकता है.'
चार सप्ताह तक चले इस ट्रेनिंग में 40 से ज्यादा देशों के सैनिकों ने हवा, ज़मीन और समंदर में खतरों से निपटने की तैयारी की. ड्रोन उड़ाए गए, नजदीकी लड़ाई का अभ्यास किया गया और रॉकेट लॉन्च किए गए. हालांकि यह अभ्यास पिछले सालों जैसा ही था, लेकिन इसमें एक बड़ा बदलाव था. अब अमेरिका की तरफ से उस तरह की बातें कम हो गई हैं जो वह रूस और चीन से खुद को अलग दिखाने के लिए करता था, जैसे कि रक्षा, कूटनीति और डेवलेपमेंट के नजर से.
'हमारी प्राथमिकताएं तय हो गई हैं'
वहीं, उन्होंने सूडान के लिए अमेरिकी समर्थन का हवाला देते हुए कहा, 'अब हमारी प्राथमिकताएं तय हो गई हैं - मातृभूमि की रक्षा करना. और हम अन्य देशों से भी इन वैश्विक अस्थिरता वाले क्षेत्रों में योगदान की उम्मीद कर रहे हैं.' यह बदलाव ऐसे वक्त में आया है जब अमेरिकी सेना 'एक कमज़ोर, अधिक घातक बल का निर्माण' करने की दिशा में कदम उठा रही है, जिसमें अफ्रीका जैसे स्थानों पर सैन्य नेतृत्व के पदों में कटौती करना भी शामिल है, जहां अमेरिका के प्रतिद्वंद्वी अपना प्रभाव बढ़ाना जारी रखे हुए हैं. जबकि चीन ने अफ्रीकी सेनाओं के लिए अपना खुद का ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू किया है. रूसी भाड़े के सैनिक पूरे उत्तर, पश्चिम और मध्य अफ्रीका में पसंदीदा सुरक्षा साझेदार के रूप में अपनी भूमिका को पुख्ता कर रहे हैं.
एक साल पहले एक इंटरव्यू में लैंगली ने इस बात पर जोर दिया था, जिसे अमेरिकी सैन्य अफसर लंबे समय से उग्रवाद का मुकाबला करने के लिए 'सरकार का संपूर्ण दृष्टिकोण' कहते रहे हैं. असफलताओं के बीच भी उन्होंने अमेरिका का बचाव किया और कहा कि अकेले बल से कमजोर राज्यों को स्थिर नहीं किया जा सकता है और हिंसा के जोखिम के खिलाफ अमेरिकी हितों की रक्षा नहीं की जा सकती है.
'AFRICOM सिर्फ़ एक सैन्य संगठन नहीं है'
लैंगली ने पिछले साल कहा था, 'मैंने हमेशा कहा है कि AFRICOM सिर्फ़ एक सैन्य संगठन नहीं है. उन्होंने सुशासन को कई स्तरों पर फैले खतरों का स्थायी समाधान बताया. चाहे वह रेगिस्तानीकरण हो, चाहे वह बदलते पर्यावरण से फसल की विफलता हो, या फिर हिंसक चरमपंथी संगठनों से हो.'
अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट
अमेरिकी सेना का नया रुख तब सामने आया है जब कई अफ्रीकी सेनाए अपर्याप्त रूप से सुसज्जित हैं और विद्रोही समूहों का विस्तार हो रहा है. इस महीने की शुरुआत में एक सीनियर अमेरिकी डिफेंस अफसर ने कहा, 'हम अफ्रीका को अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट दोनों के लिए केंद्र के रूप में देखते हैं.' उन्होंने कहा कि दोनों समूहों के क्षेत्रीय सहयोगी बढ़ रहे हैं और इस्लामिक स्टेट समूह ने कमान और कंट्रोल अफ्रीका को सौंप दिया है. अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर बात की क्योंकि उन्हें इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने का अधिकार नहीं था.
अफ्रीका को पेंटागन की प्राथमिकताओं की सूची में शायद ही कभी उच्च स्थान दिया गया हो, लेकिन अमेरिका ने अभी भी सुरक्षा सहायता पर करोड़ों डॉलर खर्च किए हैं. जबकि अफ्रीका में 6,500 अफ्रीका कमांड कर्मी हैं. कुछ क्षेत्रों में अमेरिका को रूस और चीन से सीधी लड़ाई का सामना करना पड़ता है.
पूरी सरकार की साझेदारी'
अमेरिका का जो मैसेज पहले 'पूरी सरकार की साझेदारी' (whole of government) की बुनियाद पर था, अब वह बदलकर जिम्मेदारी साझा करने (burden-sharing) पर आ गया है. यह बदलाव ऐसे वक्त में हो रहा है जब अफ्रीका में बढ़ती हिंसा को लेकर चिंता बढ़ रही है. डर है कि यह हिंसा उन इलाकों से बाहर भी फैल सकती है, जहां पहले से ही दहशतगर्दों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और जहां सरकार की पकड़ कमजोर है.
अफ्रीका का सबसे खतरनाक इलाका
पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका के कुछ हिस्से अब हिंसा के बड़े मरकज बन गए हैं. 2024 में दुनिया में जितने भी दहशतगर्दी के शिकार हुए, उनमें से आधे से ज्यादा पश्चिम अफ्रीका के साहेल इलाके में मारे गए थे. यह जानकारी इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस नाम की इदारह ने दी है. यह इलाका फौजी हुकूमतो के कंट्रोल में है. रिपोर्ट के मुताबिक , सोमालिया में भी 6 फिसदी दहशतगर्दाना हमलों में मौतें हुईं, जो साहेल के बाहर अफ्रीका का सबसे खतरनाक इलाका बना हुआ है.
सोमालिया में हवाई हमले तेज
वहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिकी की गद्दी संभाली है तब से सोमालिया में हवाई हमले तेज हो गए हैं, जिनका निशाना IS और अल-शबाब जैसे दहशतगर्दी तंजीम हैं. लेकिन जनरल लैंगली ने माना कि इन हवाई हमलों के बावजूद सोमालिया की आर्मी अभी भी ज़मीन पर सिक्योरिटी बनाए रखने में काबिल नहीं है. जबकि सोमाली नेशनल आर्मी अपनी राह तलाश रही है. कुछ हद तक उन्होंने सुधार भी किया है, लेकिन उन्हें अभी भी कई ज़रूरी चीजों की ज़रूरत है ताकि वे जंग के मैदान में दुश्मनों पर हावी हो सके.