तेल के खेल में घिरा रूस, EU ने लगाया बैन... जानें PM मोदी से कब मिलेंगे पुतिन?

13 hours ago

Last Updated:July 19, 2025, 12:19 IST

EU Sanctions on Russia: यूरोपीय यूनियन ने रूस के तेल व्यापार पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. इससे व्लादिमीर पुतिन की आर्थिक रणनीति को बड़ा झटका लगा है. हालांकि इन प्रतिबंधों को भारत के लिए फायदा वाला माना जा रहा है....और पढ़ें

तेल के खेल में घिरा रूस, EU ने लगाया बैन... जानें PM मोदी से कब मिलेंगे पुतिन?

रूस के तेल निर्यात पर यूरोपीय यूनियन के प्रतिबंध को भारत के लिए नए अवसर की तरह देखा जा रहा.

हाइलाइट्स

रूस के तेल निर्यात पर यूरोपीय यूनियन ने नया प्रतिबंध लगा.ईयू के प्रतिबंध को भारत के लिए नया अवसर माना जा रहा.सबकी नजरें पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात पर टिकी.

रूस पर पश्चिमी देशों का दबाव एक बार फिर बढ़ गया है. यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोपीय यूनियन (EU) ने रूस के तेल व्यापार पर और कड़े प्रतिबंध लागू कर दिए हैं. इस कदम से व्लादिमीर पुतिन की आर्थिक रणनीति को बड़ा झटका लगा है, खासकर तब जब रूस वैश्विक स्तर पर अपनी ऊर्जा आपूर्ति को हथियार बना चुका है.

यूरोप के इस फैसले ने रूस को वैकल्पिक बाजारों की ओर देखने पर मजबूर कर दिया है, जिसमें भारत एक बड़ा भागीदार बनकर उभरा है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी मुलाकात पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं.

यूरोप ने रूस के तेल पर क्यों लगाया बैन?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को दो साल से ज़्यादा हो चुके हैं, और पश्चिमी देश अब कड़े कदमों की ओर बढ़ रहे हैं. यूरोपीय संघ ने हाल ही में अपने 14वें प्रतिबंध पैकेज में रूसी शिपिंग कंपनियों और बिचौलियों पर कार्रवाई करते हुए, उनके टैंकरों को यूरोपीय बंदरगाहों और समुद्री बीमा से बाहर कर दिया है.

इससे रूस के शैडो फ्लीट की कमर टूट सकती है. ये ऐसे जहाज होते हैं, जो गुपचुप तरीके से तेल पहुंचाते हैं. इसका सीधा असर रूस के राजस्व पर होगा, जो कि यूक्रेन युद्ध को आर्थिक रूप से टिकाए रखने में अहम भूमिका निभाता है.

भारत बना रूस का ‘ऊर्जा साथी’

जब पश्चिमी देश रूस से दूरी बना रहे हैं, भारत ने उस खाली जगह को बड़े रणनीतिक तरीके से भरा है. रूस से भारत का कच्चे तेल का आयात 2021 की तुलना में 2023 में 15 गुना तक बढ़ गया था. सस्ता रूसी तेल भारत की ऊर्जा जरूरतों को तो पूरा कर ही रहा है, साथ ही घरेलू महंगाई नियंत्रण में रखने में भी मदद कर रहा है.

हालांकि, यह समीकरण पश्चिमी जगत की आंखों में चुभता है. अमेरिका और यूरोप बार-बार भारत को रूस से दूरी बनाने का संकेत देते रहे हैं, लेकिन भारत अपनी ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ को प्राथमिकता देता रहा है.

कब हो सकती है मोदी-पुतिन की मुलाकात?

दरअसल चीन में 31 अगस्त से दो दिवसीय संघाई सहयोग संगठन (SCO) की समिट होने वाली है. चीन के तियनजिन में होने वाली इस समिट में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ रूसी व्लादिमीर पुतिन के भी शामिल होने की उम्मीद है. ऐसे में माना जा रहा है कि इस दो दिवसीय शिखर सम्मेलन से इतर दोनों राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात हो सकती है. हालांकि इसकी कोई आधिकारी घोषणा नहीं हुई है. यह यात्रा ऐसे वक्त हो रही है जब रूस वैश्विक अलगाव झेल रहा है और भारत एक संतुलनकारी भूमिका में है.

इस मुलाकात के मायने क्या?

इस दौरान तेल की खरीद पर बातचीत हो सकती है. माना जा रहा है कि यूरोपीय बैन के बाद रूस भारत को और बेहतर सौदे देने के लिए तैयार हो सकता है. इस अलावा रूस भारत का पारंपरिक रक्षा साझेदार रहा है. उम्मीद है कि इस मुलाकात में S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम, फाइटर जेट्स और नौसेना उपकरणों में सहयोग पर बात हो सकती है. भारत पश्चिम और रूस के बीच ‘मैत्री पुल’ बना हुआ है. इस दौरे से भारत की तटस्थता और व्यावसायिक प्राथमिकता दोबारा सामने आएगी.

जब यूरोप रूस की तेल नीति पर शिकंजा कस रहा है तो ऐसे में भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए रूस से हाथ मिलाया है. इस नए भू-राजनीतिक परिदृश्य में मोदी-पुतिन की मुलाकात एक अहम मोड़ साबित हो सकती है. न सिर्फ भारत-रूस संबंधों के लिए, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार और सुरक्षा समीकरणों के लिहाज़ से भी. अब सबकी नजर इस मुलाकात पर टिकी है कि क्या भारत रूस को वैश्विक अलगाव से निकाल पाएगा?

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

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