दफ्तर, फिल्म यूनिट... POSH के दायरे में सब, फिर राजनीतिक दलों को छूट क्यों?

2 hours ago

Last Updated:September 16, 2025, 14:51 IST

सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि राजनीतिक दलों को POSH कानून के दायरे में नहीं लाया जा सकता. सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस संबंध में दायर याचिका खारिज दी. जानें क्या है पूरा मामला...

दफ्तर, फिल्म यूनिट... POSH के दायरे में सब, फिर राजनीतिक दलों को छूट क्यों?सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि राजनीतिक दलों को POSH कानून के दायरे में नहीं लाया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह साफ कर दिया कि राजनीतिक दलों को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम (POSH Act) के दायरे में नहीं लाया जा सकता. अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को इस कानून के तहत बाध्य करना ‘भानुमति का पिटारा खोलने’ जैसा होगा और यह ब्लैकमेलिंग का जरिया बन सकता है.

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ ने केरल हाईकोर्ट के 2022 के फैसले को बरकरार रखते हुए विशेष अनुमति याचिका (SLP) को खारिज कर दिया. उस फैसले में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि राजनीतिक दलों पर आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है, क्योंकि उनके पास नियोक्ता-कर्मचारी संबंध मौजूद नहीं होता.

अदालत में क्या हुआ?

सीजेआई गवई ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया, ‘जब कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी में शामिल होता है, तो यह नौकरी नहीं होती. यहां सैलरी नहीं मिलती. ऐसे में राजनीतिक दल को कार्यस्थल कैसे माना जा सकता है?’

याचिकाकर्ता अधिवक्ता योगमाया जी की ओर से वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने कानून की परिभाषा को बहुत संकीर्ण तरीके से देखा. उन्होंने कहा कि POSH एक्ट की धारा 2(ए)(i) में ‘पीड़ित महिला’ की परिभाषा काफी व्यापक है. इसमें यह स्पष्ट है कि कोई महिला चाहे कर्मचारी हो या न हो, अगर उसे कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है तो वह शिकायत कर सकती है.

गुप्ता ने यह भी तर्क दिया कि राजनीतिक दल पारंपरिक अर्थ में ‘नियोक्ता’ भले न हों, लेकिन वे संगठित संस्था हैं. इनके पास दफ्तर और सभी की तयशुदा भूमिकाएं होती हैं. ऐसे में उन्हें भी कार्यस्थल की परिभाषा के तहत लाया जाना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस दलील से सहमत नहीं हुई. अदालत ने कहा कि राजनीतिक दलों को व्यावसायिक संस्थानों या सरकारी कार्यालयों से तुलना नहीं की जा सकती. राजनीतिक दलों में सदस्यता स्वेच्छा से होती है और यह रोजगार संबंधी अनुबंध नहीं है. ऐसे में POSH एक्ट की धारा 4, जो हर नियोक्ता को ICC बनाने का आदेश देती है, राजनीतिक दलों पर लागू नहीं की जा सकती.

केरल हाईकोर्ट का क्या था फैसला

इससे पहले 2022 में चीफ जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी. चाली की खंडपीठ ने भी कहा था कि राजनीतिक दल कार्यस्थल की परिभाषा में नहीं आते. हालांकि, उसी फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया था कि फिल्म प्रोडक्शन हाउस और व्यक्तिगत फिल्म यूनिट्स को ‘कंपनी’ माना जाएगा और उन पर ICC बनाना अनिवार्य होगा.

मामला कहां से शुरू हुआ?

यह मुकदमा एक पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (PIL) से शुरू हुआ था, जिसे सेंटर फॉर कॉन्स्टिट्यूशनल राइट्स रिसर्च एंड एडवोकेसी (CCRRA) ने दायर किया था. इसमें कांग्रेस, बीजेपी और सीपीएम समेत कई राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाया गया था और मांग की गई थी कि सभी दलों में आंतरिक शिकायत समितियां अनिवार्य की जाएं.

हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद अधिवक्ता योगमाया ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की. इससे पहले भी उन्होंने एक पीआईएल दायर की थी, जिसे वापस लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने की छूट दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मौजूदा कानूनी ढांचे में राजनीतिक दलों को POSH एक्ट के तहत बाध्य नहीं किया जा सकता. यानी महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने इस कानून का दायरा केवल उन्हीं स्थानों तक रहेगा जहां नियोक्ता-कर्मचारी संबंध मौजूद है. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने बहस को और गहरा कर दिया है कि राजनीति में सक्रिय महिलाओं को यौन उत्पीड़न के मामलों में न्याय पाने का रास्ता आखिर कहां से मिलेगा.

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

September 16, 2025, 14:25 IST

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