Last Updated:May 04, 2025, 23:47 IST
Ancestral property: विरासत में मिली संपत्ति अपने नाम कराने के लिए केवल रजिस्ट्रेशन ही काफी नहीं है. सभी उत्तराधिकारियों की सहमति, जरूरी दस्तावेज, हलफनामा और दाखिल-खारिज की प्रक्रिया पूरी करना जरूरी है.

पैतृक संपत्ति कैसे करें अपने नाम
मुंबई की तरह देशभर में यह आम सोच है कि अगर किसी को दादा-दादी या पिता से कोई ज़मीन-जायदाद मिली है, तो वह “पैतृक संपत्ति” कहलाती है. लेकिन सच्चाई इससे थोड़ी अलग है. किसी भी संपत्ति को पैतृक मानने के लिए कुछ कानूनी नियम होते हैं. इसका सीधा मतलब ये है कि सिर्फ विरासत में मिली ज़मीन से आप उसके मालिक नहीं बन जाते.
कानूनी पंजीकरण ज़रूरी क्यों है?
अगर किसी संपत्ति के मालिक की मौत हो जाती है, तो वह संपत्ति अपने-आप उनके बेटे-बेटियों या बाकी उत्तराधिकारियों के नाम पर नहीं होती. इसके लिए एक तय प्रक्रिया होती है जिसे पूरा करना बहुत ज़रूरी है. इसमें आवेदन देना, जरूरी दस्तावेज जमा करना, और फिर संपत्ति को अपने नाम करवाना होता है. अगर ये सब न किया जाए तो आगे चलकर कानूनी विवाद हो सकता है.
सिर्फ रजिस्ट्रेशन से नहीं बनते मालिक
कई लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने संपत्ति का रजिस्ट्रेशन करवा लिया तो वे उसके मालिक बन गए. लेकिन असल में, सभी उत्तराधिकारियों की सहमति और उनकी मौजूदगी भी ज़रूरी होती है. सभी दस्तावेजों को ठीक से जमा करना, हलफनामा बनवाना और ‘दाखिल-खारिज’ की प्रक्रिया पूरी करना ज़रूरी होता है, तभी वह संपत्ति कानूनी रूप से आपके नाम पर मानी जाती है.
अगर संपत्ति पर वसीयत हो तो प्रक्रिया आसान
अगर संपत्ति के असली मालिक ने मरने से पहले एक वैध वसीयत बना रखी हो, तो आम तौर पर संपत्ति का ट्रांसफर आसान हो जाता है. लेकिन अगर उस वसीयत पर बाकी उत्तराधिकारियों को कोई आपत्ति हो तो मामला कोर्ट तक जा सकता है. ऐसे में वसीयत होने के बावजूद कानूनी प्रक्रिया को सही तरीके से पूरा करना पड़ता है.
मौत के बाद प्रमाणपत्र न हो तो क्या करें?
कई बार ऐसा भी होता है जब किसी के निधन के बाद मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं बना होता, या वसीयत नहीं होती. ऐसे में सबसे अच्छा तरीका है कि परिवार के सभी लोग आपसी सहमति से एक समझौता करें और उसे उप-पंजीयक के दफ्तर में ‘पारिवारिक समझौते’ के रूप में दर्ज करवाएं.
पारिवारिक समझौता और जरूरी दस्तावेज
इस प्रक्रिया में सभी संपत्ति के कागजात, पहचान पत्र, उत्तराधिकार प्रमाण, और अगर कोई पैसे के बदले अपनी हिस्सेदारी छोड़ रहा है तो उसका भी दस्तावेज़ तैयार करना होता है. साथ ही, सभी उत्तराधिकारियों से ‘एनओसी’ यानी अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना भी जरूरी होता है. तभी वह संपत्ति बिना विवाद के किसी एक नाम पर legally ट्रांसफर हो पाती है.