अमेरिका आज के दौर में कई देशों को जंग के दौरान मदद करता है, साथ ही कई जगहों पर खुद की सेना को भेजकर जंग लड़ता है. अमेरिका को सुपर पॉवर के तौर पर देखा जाता है और उसकी सेना को दुनिया की सबसे ताकतवर सेना भी माना जाता है. क्योंकि उनके पास एक से बढ़कर हथियार हैं. हालांकि क्या आप जानते हैं कि अमेरिका को भी कई जंगों में करारी हार का सामना करना पड़ा है? अगर नहीं जानते तो आज हम आपको इस खबर में बताने जा रहे हैं.
अमेरिका को 1776 में ब्रिटेन से आजादी मिली थी और अब तक 100 से भी ज्यादा जंगों में हिस्सा ले चुका है. अमेरिका को पहली जंग तो आजादी के महज 9 वर्ष बाद ही लड़नी पड़ गई थी. 1785 में अमेरिका और अल्जीरिया के बीच जंग हुई. अल्जीरिया ने इस बात का फायदा उठाया कि अब ब्रिटेन की शाही फौज अमेरिकी कारोबारियों की रक्षा नहीं कर रही है. इसलिए बार्बरी समुद्री डाकुओं ने अल्जीयर्स के करीब मौजूद 53 अमेरिका जहाज और 180 अमेरिकी नाविकों को बंदी बना लिया था. अमेरिका उस समय ज्यादा मजबूत नहीं था इसलिए उसे मजबूरन घुटने टेकने पड़ गए और मसले को सुलझाने के लिए अल्जीयर्स को एक 21600 डॉलर का सालाना टैक्स देने के लिए राजी हुआ. इसी संघर्ष के बाद अमेरिका ने 1794 में नौसेना अधिनियम पास किया और फिर अमेरिकी नौसेना का गठन हुआ.
अमेरिका ग्रेट ब्रिटेन युद्ध (1812)
इसके बाद 1812 में अमेरिका ने ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. यह जंग यूरोप के साथ अमेरिका कारोबार और ब्रिटेन की तरफ लगाई गई पाबंदियों के अलावा रॉयल नेवी के जरिए अमेरिकी नाविकों की जबरन भर्ती की वजह से हुआ था. इस जंग में अमेरिका ने ब्रिटेन के कब्जे वाले कनाडा पर हमला करने की कोशिश की, जो नाकाम हो गया. इसके बाद ब्रिटिश सेना ने 1814 में ब्रिटेन के कब्जे वाले कनाडा में एक शहर को जलाने के बदले में अमेरिका के व्हाइट हाउस समेत कई मुख्य इमारतों में आग लगा दी थी.
रेड क्लाउड वॉर (1866)
1866 में रेड क्लाउड युद्ध (Red Cloud War) हुआ. यह जंग अमेरिका और वर्तमान उत्तर-मध्य व्योमिंग में उत्तरी चेयेन, लकोटा और उत्तरी आरापोहो की जमीन हड़पने को लेकर हुआ था. इस जंग में अमेरिकी किलों पर हमले हुए थे. इसमें 81 अमेरिकी फौजियों की मौत हो गई थी. 1868 में अमेरिका ने शांति की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप फोर्ट लारमी की संधि हुई.
अमेरिका ताइवान युद्ध (1867)
इसके बाद 1867 में अमेरिका और ताइवान के बीच जंग देखने को मिली. अमेरिका ने ताइवान की मूल जनजाति, पाइवान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई शुरू की थी. इससे पहले पाइवान ने एक अमेरिकी दल का नरसंहार कर दिया था. जिसकी वजह से अमेरिका ने जवाबी कार्रवाई की हालांकि इस जंग में भी उसे मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि पाइवान ने गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपना ली थी, जिसमें घात लगाकर हमला करना, हमला करना और बार-बार पीछे हटना शामिल था. जिसकी वजह से अमेरिकी फौज कमजोर पड़ गई. इसके अलावा पाइवान ने अमेरिकी मरीन के कमांडर अलेक्जेंडर मैकेंजी को भी कत्ल कर दिया था. इसके बाद अमेरिका ने अपने जहाजों को वापस बुला लिया था. जिससे यह संघर्ष खत्म हो गया.
अमेरिका वियतनाम युद्ध (1955-1977)
अमेरिका ने वियतनाम में 1955 से लेकर 1975 तक जंग लड़ी. यह जंग मुख्य तौर पर चीन समर्थित उत्तरी वियतनाम और संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थित दक्षिणी वियतनाम के बीच मुकाबला हुआ. इस जंग को लेकर अमेरिका को अंदरूनी तौर पर भी काफी विरोध का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उसे इस जंग में नुकसान के अलावा कुछ हाथ नहीं लग रहा था. 1973 में पेरिस शांति समझौते के बाद अमेरिका ने अपनी फौज को वापस बुला लिया. 1975 में उत्तरी वियतनामी सेना ने दक्षिणी वियतनाम पर कब्जा कर लिया.
अमेरिका-अफगानिस्तान युद्ध
आखिर में अमेरिका के नाम पर अफगानिस्तान जंग भी एक धब्बा बनी हुई है. 9/11 के हमलों ने अफगानिस्तान में जंग शुरू हुई. 7 अक्टूबर 2001 को शुरू हुई इस जंग में अमेरिका के नेतृत्व वाले एक अंतरराष्ट्रीय सैन्य गठबंधन ने अफगानिस्तान पर हमला किया. जंग की शुरुआत में अमेरिका ने तालिबान को मुख्य शहरों से खदेड़ दिया था. तालिबान का प्रभाव कम तो हुआ लेकिन उन्होंने अपने संस्थापक मुल्ला उमर के नेतृत्व में फिर से धीरे-धीरे अफगानिस्तान में अपनी पकड़ को मजबूत किया और कई अहम जगहों पर कब्जा भी कर लिया. 2011 में एक अमेरिकी मिशन के दौरान ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद नाटो नेताओं ने अफगानिस्तान से अपनी वापसी की योजना बनानी शुरू कर दी थी. 2014 में उन्होंने जंग खत्म कर दी और सुरक्षा की तमाम जिम्मेदारियां अफगान सरकार के हाथों सौंप दी. इसके बाद 2020 में अमेरिकी सरकार ने तालिबान के साथ बातचीत शुरू की और सभी बलों को वापस बुलाने पर सहमति व्यक्त की, यह प्रक्रिया 2021 में पूरी हुई. अमेरिकी वापसी के बाद तालिबान ने फिर से पूरे देश पर कब्जा जमा लिया.