Last Updated:September 14, 2025, 12:43 IST
Sujatha Dreaded Naxali: एक वक्त था जब नक्सलियों का खूनी साम्राज्य पश्चिम बंगाल के जंगल महल से लेकर महाराष्ट्र के दंडकारण्य तक फैला हुआ था. इसे रेड कॉरिडोर कहा जाता था, जहां माओदियों की तूती बोलती थी. अब हालात बदल गए हैं.

Sujatha Dreaded Naxali: नक्सलियों का खूनी साम्राज्य अब महज कुछ जिलों तक ही सीमित रह गया है. माओवादी खासकर छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित जंगलों में सिमट कर रह गए हैं. ड्रोन के साथ ही मॉडर्न टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल और सुरक्षाबलों की सख्ती ने नक्सलियों को घुटने पर ला दिया है. सिक्योरिटी फोर्सेज के लगातार एक्शन की वजह से माओवादियों का टॉप लीडरशिप अंतिम सांसें गिन रहा है. नक्सलियों के टॉप कमांडर्स, जोनल हेड, पोलित ब्यूरो और सेंट्रल कमेटी के अधिकांश सीनियर मेंबर्स या तो एनकाउंटर में मारे गए या फिर सरेंडर कर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो गए हैं. वेंटिलेटर पर चल रहे माओवादी मुहिम की ताबूत में आखिरी कील उस वक्त ठोक गई, जब सेंट्रल कमेटी मेंबर के अहम सदस्य पोथुला पद्मावती उर्फ सुजाता ने पुलिस के समक्ष समर्पण कर दिया. सुजाता ने बताया कि स्वास्थ्य कारणों से यह कदम उठाना पड़ा. सुजाता कितनी खतरनाक नक्सली रही है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 40 तो महाराष्ट्र ने 25 लाख रुपये का इनाम घोषित कर रखा था.
सुजाता के पति मल्लोजुला कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की पत्नी है. कुख्यात नक्सली और माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य किशनजी को साल 2011 में मार गिराया गया था. जिंदगी की शुरुआत में सुजाता भी एक आम लड़की की तरह थी. किशोरावस्था में प्रवेश करते ही उसके सीने में भी ‘क्रांति’ की ज्वाला भड़कने लगी थी. जब वह 12वीं कक्षा में थी, तब सुजाता का रुझान मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा की तरफ बढ़ गया था. इसके बाद सुजाता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 1982 में वह माओवादी मूवमेंट में शामिल हो गई थी. नक्सली संगठन में वह लगातार आगे बढ़ती गई और सेंट्रल कमेटी मेंबर तक पहुंच गई. सुजाता का नाम माओवादियों के टॉप लीडरशिप में शुमार हो गया.
पोस्टमास्टर पिता की बेटी
जोगुलंबा गडवाल जिले के पेंचिकलपाडु गांव की साधारण ग्रामीण युवती सुजाता ने अपने जीवन की दिशा उस समय बदल दी, जब उसने किशोरावस्था में ही माओवादी विचारधारा को अपना लिया. सुजाता के पिता थिम्मा रेड्डी गांव में ही पोस्टमास्टर थे और खेती-किसानी से भी जुड़े थे. वह कक्षा 12 में पढ़ते समय वह मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारों से प्रभावित हुई और 1982 में भूमिगत होकर माओवादी मूवमेंट से जुड़ गई. सुजाता का परिवार लंबे समय से माओवादी मुहिम से जुड़ा रहा. उसका बड़ा भाई और दो चचेरे भाई संगठन में टॉप लीडरशिप तक पहुंचे. साल 1987 में सुजाता और उसके पति किशनजी को दंडकारण्य फॉरेस्ट कमेटी (गढ़चिरौली, महाराष्ट्र) भेजा गया. उसकी छोटी बेटी को संगठन के विश्वस्त कार्यकर्ता की देखरेख में सौंपा गया था. किशनजी को बाद में पश्चिम बंगाल भेजा गया. किशनजी 24 नवंबर 2011 को पश्चिम मेदिनीपुर जिले में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. सुजाता के परिवार के अन्य सदस्य भी इसी रास्ते पर अपनी जान गंवा बैठे. उनके दो चचेरे भाई और एक भाभी माओवादी गतिविधियों के दौरान पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए. किशनजी का भाई मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय (जो पोलित ब्यूरो का सदस्य है) आज भी भूमिगत जीवन जी रहा है.
लीडरशिप में लगातार आगे बढ़ती गई
सुजाता को 1997 में बस्तर भेजा गया था. संगठन में उनकी भूमिका लगातार मज़बूत होती चली गई. वह साल 2022 में वह दंडकारण्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी के दक्षिण सब-जोनल ब्यूरो की सचिव बनी. अगले ही वर्ष सुजाता को केंद्रीय समिति का सदस्य बना दिया गया. सुजाता ने केवल संगठनात्मक जिम्मेदारियों तक ही खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक मोर्चे पर भी सक्रिय रही. उसने ‘पेतुरी’ नामक पत्रिका का संपादन किया, जो कोया भाषा में साल में तीन बार प्रकाशित होती थी और स्थानीय आदिवासी समुदाय तक पहुंचती थी. बता दें कि तेलंगाना माओवादी आंदोलन की दृष्टि से हमेशा उर्वर भूमि तरह रहा है. पुलिस के अनुसार, इस समय भूमिगत चल रहे सीपीआई (माओवादी) के 78 कैडर तेलंगाना से हैं. संगठन की केंद्रीय समिति के 15 सदस्यों में से 10 इसी राज्य से आते हैं. यह आंकड़ा बताता है कि किस तरह इस राज्य ने दशकों तक आंदोलन को नेतृत्व और ऊर्जा दी है.
कमजोर हो रहा माओवदी मूवमेंट
सुरक्षा बलों का दावा है कि माओवादी संगठन अब अपना प्रभाव और जनाधार खो रहा है. बस्तर रेंज के आईजी पी. सुंदरराज ने शेष अंडरग्राउंड सदस्यों से हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौटने की अपील की. उन्होंने कहा, ‘माओवादी कैडर और उसका नेतृत्व अब किसी विकल्प की स्थिति में नहीं है. उन्हें हिंसा छोड़कर मुख्यधारा से जुड़ना ही होगा.’ सुजाता की कहानी न केवल व्यक्तिगत जीवन की उथल-पुथल का आईना है, बल्कि यह भी दिखाती है कि किस तरह विचारधारा, पारिवारिक पृष्ठभूमि और संघर्षपूर्ण परिस्थितियाँ किसी व्यक्ति को पूरी तरह बदल सकती हैं. गांव की एक छात्रा से माओवादी केंद्रीय समिति सदस्य तक का उनका सफर एक लंबे आंदोलन की कहानी है. आज जबकि माओवादी आंदोलन अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, सुजाता जैसे नेताओं की भूमिका और उनकी जीवन यात्रा एक बड़े प्रश्न को सामने रखती है: क्या यह सब संघर्ष वास्तव में उस बदलाव को ला पाया, जिसकी कल्पना कभी 1980 के दशक में की गई थी?
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 14, 2025, 12:43 IST