नालंदा की रणभूमि: तेजस्वी की तेजी या नीतीश की नीति? चुनाव में कौन मारेगा बाजी?

2 hours ago

Last Updated:September 17, 2025, 11:32 IST

Bihar Chunav 2025: बिहार का नालंदा जिला जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जन्म हुआ और जहां उनकी राजनीतिक जड़ें गहरी हैं, वहां अब तेजस्वी यादव की धमक ने सियासी हलचल मचाई है. 'बिहार अधिकार यात्रा' के क्रम में वह जब नालंदा के इस्लामपुर और हिलसा पहुंचे तो बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ उन्हें देखने-सुनने पहुंची. बेरोजगारी, पलायन और नौकरी जैसे मुद्दों को उठाते हुए जहां उन्होंने युवाओं के मन को छूने की कोशिश की वहीं, जातिगत आधार पर राजनीति भी साधने की कोशिश की. लेकिन, सवाल यह की नीतीश कुमार के गढ़ में बीते चुनावों में राजद (महागठबंधन) का कैसा प्रदर्शन रहा है और इस बार कैसी सियासी तस्वीर बनती दिख रही है.

 तेजस्वी की तेजी या नीतीश की नीति? चुनाव में कौन मारेगा बाजी?बिहार अधिकार यात्रा: नालंदा में नीतीश कुमार को चुनौती की तेजस्वी यादव की रणनीति.

नालंदा. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राजद नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बिहार अधिकार यात्रा पर हैं. 16 सितंबर से जहानाबाद से शुरू हुई यह यात्रा 20 सितंबर को वैशाली में समाप्त होगी. इस दौरान तेजस्वी यादव की यात्रा नालंदा, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल और समस्तीपुर से गुजरेगी. इसी कड़ी में 16 सितंबर को तेजस्वी यादव ने बिहार अधिकार यात्रा के दौरान नालंदा जिले के इस्लामपुर एवं हिलसा में जनसभा को संबोधित किया. इस दौरान तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी, पलायन और किसानों के मुद्दों को उठाते हुए कहा कि बिहार के युवाओं को रोजगार देने के नाम पर छलावा किया जा रहा है. जितने मुद्दों को मैंने उठाते हुए सरकार बनने पर पूरा करने की बात कही उसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कॉपी कर रहे हैं. इस दौरान तेजस्वी यादव ने मंत्री जीवेश मिश्रा के काफिले में शामिल लोगों द्वारा एक पत्रकार की कथित पिटाई का मुद्दा भी उठाया. बेरोजगारी, किसान और पलायन जैसे मुद्दे तेजस्वी की यात्रा का केंद्र में हैं. कई बार वह जातिगत आधारित राजनीति को भी हवा देने की कोशिश करते दिखते हैं. ऐसे में जानकार कहते हैं तेजस्वी यादव की रणनीति से आगामी विधानसभा चुनावों में नालंदा की राजनीतिक तस्वीर में बदलाव संभव है, लेकिन नालंदा जिले में नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ उनके लिए अभी भी चुनौती बनी हुई.

बता दें कि नालंदा जिले की 7 विधानसभा सीटों पर 2015 और 2020 दोनों विधानसभा चुनावों में महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ा मुकाबला रहा. 2015 में महागठबंधन ने नालंदा की अधिकांश सीटें जीतीं, जबकि एनडीए के खाते में कुछ सीटें आईं. उस समय नीतीश कुमार का जदयू महागठबंधन का हिस्सा था. वहीं, वर्ष 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए का दमदार प्रदर्शन रहा क्योंकि नीतीश कुमार का जदयू इस बार एनडीए के साथ था. इस बार फिर जदयू एनडीए के साथ है, लेकिन नीतीश कुमार के स्वास्थ्य पर उठते सवालों के बीच तेजस्वी यादव का नालंदा पहुंचना महागठबंधन की रणनीति का हिस्सा कहा जा रहा है. यहां तेजस्वी यादव की रणनीति स्पष्ट दिखती है कि वह युवाओं और अल्पसंख्यकों के साथ ही यादव समुदाय के लोगों को जोड़ने पर केंद्रित कर रहे हैं. राजनीति के जानकार बता रहे हैं कि तेजस्वी ने मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत किया है, लेकिन नीतीश कुमार के विकास कार्यों की वजह से उनका कितना प्रभाव पड़ा है यह तो वक्त बताएगा. हालांकि उनकी इस यात्रा ने महागठबंधन को जमीन पर मजबूती जरूर दी है. ऐसे में आइये जानते हैं कि बीते दो चुनाव में किनके खाते में कितनी सीटें थीं और आगे की संभावनाएं क्या हैं.

2020 चुनाव :  एनडीए का जलवा, महागठबंधन को झटका

वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नालंदा जिले की सातों सीटों पर एनडीए ने क्लीन स्वीप किया था. जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने चार सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने दो और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) ने एक सीट पर सफलता प्राप्त की. महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वाम दलों का गठजोड़) को यहां कोई सीट नहीं मिली थी. मत प्रतिशत के लिहाज से एनडीए को औसतन 50-55% वोट मिले थे, जबकि महागठबंधन को 35-40% हिस्सेदारी मिली. राजद को नालंदा में करीब 30% वोट शेयर मिला, लेकिन सीट नही जीत पाने से उसकी हार हुई. नीतीश कुमार के गढ़ में जदयू का सियासी समीकरण कुर्मी-कोइरी और अन्य पिछड़ा वर्ग पर टिका है. वहीं, बीजेपी और जीतन राम मांझी की पार्टी के शामिल होने से दलित और सवर्णों का सपोर्ट भी जदयू को मिल जाता है और इसका परिणाम चुनाव में दिखता भी है.

2015 चुनाव : महागठबंधन की जीत, एनडीए की मजबूती

वहीं 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार का जदयू महागठबंधन में शामिल था. तब राजद-जदयू-कांग्रेस गठबंधन ने पूरे बिहार में 178 सीटें जीतकर सरकार बनाई. नालंदा में जदयू ने चार सीटें हासिल कीं, राजद ने दो और कांग्रेस को एक मिली. एनडीए (भाजपा और सहयोगी) को कोई सीट नहीं मिली. मत प्रतिशत में महागठबंधन को अलग-अलग सीटों पर 55-60% वोट मिले थे, जबकि एनडीए को 35-40% मत मिले थे. मुस्लिम-यादव गठजोड़ की बदौलत अकेले राजद का वोट शेयर यहां 25-30% रहा . यह दौर नीतीश-लालू गठबंधन का था, जब नालंदा में भी विपक्षी एकता काम आई और एनडीए धराशायी हो गया, लेकिन 2020 में नीतीश के एनडीए में लौटने से नालंदा फिर एनडीए का गढ़ बन गया. मतलब साफ है कि नालंदा में जिधर नीतीश कुमार रहते हैं जीत की गारंटी उसी गठबंधन की होती है.

मत प्रतिशत में बदलते रुझान और जातिगत समीकरण

साफ है कि 2015 में महागठबंधन का मत प्रतिशत नालंदा में लगभग 58% था जो सामाजिक (जातिगत) समीकरण पर आधारित था. लेकिन 2020 में एनडीए का 52% मत प्रतिशत ने इसे पलट दिया. राजद का वोट शेयर 2015 के 28% से बढ़कर 2020 में 32% हो गया, लेकिन सीट नहीं जीतने से प्रभाव कम ही रहा. बता दें कि नालंदा में कुर्मी-कोइरी (नीतीश का कोर वोट) 20-25%, मुस्लिम 15-20% और यादव 10-15% हैं. तेजस्वी यादव ने अपनी इस बिहार अधिका यात्रा से मुस्लिम-यादव को एकजुट करने की कोशिश की है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग अभी एनडीए के साथ खड़ा दिख रहा है. केवल एक वर्ष पूर्व 2024 लोकसभा में जदयू ने नालंदा सीट जीती थी, जो एनडीए की ताकत दिखा रहा है. इसके अतिरिक्त नीतीश कुमार के विकास मॉडल (सड़कें, बिजली) से ग्रामीण मतदादाताओं पर अभी भी अच्छा प्रभाव दिखता है. हालांकि, वर्तमान में तेजस्वी यादव की हैसियत मजबूत विपक्षी नेता की है, लेकिन नालंदा का समीकरण नीतीश कुमार के साथ अधिक सधता रहा है.

तेजस्वी यादव की उम्मीदें, सीएम नीतीश की चुनौतियां

हालांकि, वर्ष 2025 चुनाव से पहले नालंदा में तस्वीर नहीं बदल सकती है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है. तेजस्वी यादव की यात्रा ने बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों से युवाओं को आकर्षित किया है जो महागठबंधन के लिए फायदेमंद हो सकता है. सर्वे बताते हैं कि तेजस्वी यादव सीएम पद के लिए नीतीश कुमार से बहुत ज्यादा लोकप्रिय हैं. लेकिन नीतीश का गढ़ होने से नालंदा में अभी भी एनडीए मजबूत है. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी नया विकल्प बन रही है जो एक बड़ा फैक्टर तब साबित हो सकता है जब वह दोनों मुख्य पक्षों में किसी एक पक्ष को अधिक नुकसान पहंचा पाए. अगर महागठबंधन मुस्लिम-यादव-दलित को एकजुट कर ले और कुछ अतिपिछड़े वो को अपनी ओर मोड़ ले तो कम से कम 2-3 सीटों पर जीत की संभावना देख सकता है. वहीं, दूसरी ओर एनडीए का दबदबा बरकरार दिख रहा है. इन सब के बीच तेजस्वी यादव की सियासी हैसियत मजबूत होती दिख तो रही है, लेकिन सवाल यही है कि क्या नालंदा में नीतीश की पकड़ आसानी से छूटेगी?

Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें

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First Published :

September 17, 2025, 11:32 IST

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