यदि आपका अपने कर्मों पर बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है तब वह भाग्यवाद होगा. लेकिन ऐसा केवल जानवरों के मामले में होता है. जानवर कर्म संचय नहीं करते क्योंकि वे बस अपने स्वभाव और प्रवृत्ति का पालन करते हैं. इसके विपरीत, मनुष्य न केवल प्रवृत्ति से बल्कि अपने मन से भी संचालित होते हैं.
Source: News18Hindi Last updated on:January 31, 2025 8:31 PM IST
युद्धभूमि में जब अर्जुन अपने युद्धकर्म के संभावित परिणाम के विषय में सोचकर विषाद करने लगे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें कर्मयोग की शिक्षा दी और वहीं भगवद गीता का जन्म हुआ . श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, “अर्जुन, तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके परिणाम पर तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं है इसलिए फल की चिंता किए बिना कर्म करो.”
अधिकतर लोग फल की आशा किये बिना कोई कर्म नहीं करते. जब आप चावल पका रहे होते हैं, तो आप चावल को पानी में डालते हैं और फिर उसे आग पर रख देते हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि यह कर्म एक परिणाम देगा . परिणाम कर्मों पर निर्भर करते हैं. आप सोचते हैं, “चावल पक सका क्योंकि मैंने इसे आग पर रखा इसलिए यह मेरे द्वारा पकाया गया.” नहीं! चावल ने तो बस नियम का पालन किया. आप या कोई अन्य व्यक्ति भी, किसी भी स्थान पर यदि चावल को पानी में डालकर आग पर रखेंगे तो चावल पक ही जाएगा. लेकिन आपको लगता है कि ‘आपने’ यह किया है. आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जो नियम के अनुकूल नहीं है. आप एक गुलाब का पौधा लगाते हैं और उसे पानी देते हैं, खाद डालते हैं और कुछ दिन बाद उसमें फूल खिलने लगता है. लेकिन उस फूल ने तो बस अपने नियम का, अपने धर्म का पालन किया. यदि सभी परिणाम आपके कर्म के कारण संभव हो सकते तो आपको केले के पेड़ से एक सेब प्राप्त करने में भी सक्षम होना चाहिए लेकिन वैसा संभव नहीं है. केले के पेड़ से कभी सेब नहीं निकलेगा क्योंकि ऐसा प्रकृति के नियम के अनुकूल नहीं है.
इसका अर्थ यह नहीं है कि आप पूरी तरह से भाग्य पर निर्भर हो जाएं. यदि आपका अपने कर्मों पर बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है तब वह भाग्यवाद होगा. लेकिन ऐसा केवल जानवरों के मामले में होता है. जानवरों को ऐसा बनाया गया है कि उनकी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं है. जानवर कर्म संचय नहीं करते क्योंकि वे बस अपने स्वभाव और प्रवृत्ति का पालन करते हैं. इसके विपरीत, मनुष्य न केवल प्रवृत्ति से बल्कि अपने मन से भी संचालित होते हैं.
भाग्य और कर्म दोनों जरूरी
मनुष्य का जीवन भाग्य और कर्म दोनों का संयोजन है. उदाहरण के लिए, आपकी लंबाई आपका भाग्य है और वजन आपका कर्म . एक निश्चित आयु के बाद आप अपनी लम्बाई को बढ़ा नहीं सकते लेकिन अपने भोजन और व्यायाम आदि से आप अपने वजन को अवश्य घटा या बढ़ा सकते हैं. यदि आप सोचते हैं कि आपका अतीत जैसा भी था आपके कर्मों के ही कारण था तो आप केवल वर्तमान में बैठकर उसका पश्चाताप करेंगे. यदि आपको लगता है कि आपका भविष्य आपके भाग्य पर निर्भर करता है तो आपको कर्म करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहेगी . अतीत को कर्म और भविष्य को भाग्य सोचकर उदास और दुखी हो जाना मूर्खता है. एक बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा अपने अतीत को भाग्य के रूप में और भविष्य को कर्म के रूप में देखेगा.
कर्म करना हाथ में
कर्म करना आपके नियंत्रण में है लेकिन उस पर भी आप केवल अप्रत्यक्ष तरीके से ही प्रभाव डाल सकते हैं, प्रत्यक्ष रूप से नहीं. अपने कर्मों को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका यह है कि सत्त्व, रजस और तमस तीनों गुणों से परे चले जाएं. तमस का गुण है जड़ता; रजस का गुण है बेचैनी; और सत्त्व का गुण है सन्तुलन. जब जीवन में सत्त्व गुण बढ़ता है तो हर काम में संतुलन, सतर्कता, ज्ञान, हल्कापन और आनंद होता है. जब रजोगुण की अधिकता होती है तो हमारे भीतर अधिक इच्छाएं, स्वार्थ, बेचैनी और उदासी पैदा हो जाती है और जब तमोगुण बढ़ता है तो मोह, ज्ञान का अभाव और आलस्य की अधिकता होती है.
तीनों गुण बारी-बारी से प्रबल
तीनों गुण बारी-बारी से प्रबलहालांकि ये तीनों गुण हमारे जीवन में बारी-बारी से प्रबल होते ही हैं लेकिन हम योग की सहायता से अपने सत्त्व गुण के स्तर को ऊंचा रख सकते हैं . जब आप आलस्य और प्रमाद को त्याग कर समता में स्थित रहते हैं और इन तीनों गुणों से भी आगे, उनसे परे जा पाते हैं तब आप अपने कर्मों को भी प्रभावित कर सकते हैं.
केवल कर्म के फल के बारे में न सोचें
यदि आप केवल कर्म के फल के बारे में सोचते रहते हैं तो आप एक निर्बल व्यक्ति हैं. जो व्यक्ति 100% केवल अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करता है, वह मुक्त है. यदि आप किसी दौड़ में भाग ले रहे हैं तो आपको यह देखने में कोई दिलचस्पी नहीं होनी चाहिए कि कौन आपसे तेज दौड़ रहा है. आपका ध्यान अपने ट्रैक और दौड़ पर होना चाहिए . जब आप किसी भी कार्य में अपना 100% लगाते हैं तो भले ही आप हार जाएं, लेकिन आपको इस बात से संतोष होता है कि आपने अपनी पूरी क्षमता का उपयोग किया और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. लेकिन अगर आप किसी और से अपनी तुलना करते हैं और किसी को गिराने की कोशिश करते हैं तो आप खुद भी ठोकर खाते हैं. किसी को गिराकर आप भले ही कोई प्रतिस्पर्धा जीत जाएं लेकिन वास्तव में वह नुकसान ही है. यह देखें कि आपने कल क्या किया था और आज आप उससे कितना बेहतर कर सकते हैं. जब आप अपने आप से प्रतिस्पर्धा करते हैं, तब आप जीवन में आगे बढ़ते हैं लेकिन जब आप दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं, तब आप कमजोर हो जाते हैं.
यदि आप अपने साथ एकता का अनुभव नहीं करते हैं तो न तो आपकी बुद्धि प्रखर होगी और न ही भावनाएं संतुलित होंगी. जब तक आप भावनात्मक रूप से शांत नहीं होंगे तब तक आपके जीवन में खुशी कैसे संभव है! तो फल की चिंता किये बिना कर्म करें और केन्द्रित होकर अपने जीवन में आगे बढ़ें.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर एक मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु हैं। उन्होंने आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की स्थापना की है, जो 180 देशों में सेवारत है। यह संस्था अपनी अनूठी श्वास तकनीकों और माइंड मैनेजमेंट के साधनों के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाने के लिए जानी जाती है।
First published: January 31, 2025 8:31 PM IST