Last Updated:February 05, 2025, 16:24 IST
Indian army news: अंग्रेज व्यापार के मकसद से भारत आए और देश को गुलाम बना लिया. ब्रिटिश इंडियन आर्मी ने अंग्रेजों को खूब जंग जिताई. एक से एक वीर सैनिक भी हुए लेकिन कभी किसी का नाम बड़ा नहीं होने दिया. हर जगह या ...और पढ़ें
धुंधली की जा रही है अंग्रेजों की छाप
FREEDOM FROM COLONIEL PRACTICE : देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुलामी की मासिकता से बाहर आने का आव्हान किया था. बड़ी तेजी से नियम कानून से लेकर सड़क इमारतों तक के नामों से अंग्रेजों की छाप हटाई जा रही है. स्वदेशी नामकरण किया जा रहा है. 2023 में अंग्रेजों के बनाए गए इंडियान पीनल कोड को भारतीय न्याय संहिता से बदला गया. सेना में सबसे ज्यादा ब्रिटिश काल की यादें है. धीरे धीरे सेना उन सब से खुद को आजाद कर रही है. इसकी शुरूआत काफी समय से हो गई थी. भारतीय सेना पर अंग्रेजी छाप को हटाने के लिए कई बदलाव किए गए. हाल ही में एक सबसे बड़ा बदलाव हुआ है. भारतीय सेना के कोलकाता स्थित इस्टर्न कमॉंड के हेड क्वार्टर फोर्ट विलियम को बदल कर क्षत्रपति शिवाजी के नाम पर कर दिया गया.
फोर्ट विलियम हुआ विजय दुर्ग
फोर्ट विलियम 1696 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने हुगली नदी के किनारे बनाया था. किंग विलियम 3 के नाम पर इस फोर्ट को नाम दिया गया था. पलासी की लड़ाई के बाद 1757 में नया फोर्ट बनाया गया था जो 1781 में बनकर पूरा हुआ. 170 एकड़ में फैले इस फोर्ट में ब्रिटिश काल की इमारते है. उनके नाम भी ब्रिटिश राज घरानों या अफसरों के नाम पर है. यह फोर्ट विलियम में भारतीय सेना के इस्टर्न कमांड का मुख्यालय हुआ करता जो अब विजय दुर्ग है. पिछले साल दिसंबर में ही फोर्ट विलियम का नाम बदल दिया गया. अब इसका नाम शिवाजी महाराज के किले विजय दुर्ग के नाम पर रखा गया है. फोर्ट में किंग जॉर्ज के नाम पर एक द्वार था जिसे जॉर्ज गेट के नाम से जाना जाता था. उसका नाम बदलकर शिवाजी द्वार कर दिया गया. फोर्ट विलियम के प्राचीर पर एक इमारत थी जिसें किचनर हाउस के नाम से जाना जाता था. वह अब फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नाम से जाना जा रहा है. किचनर हाउस का इस्तेमाल भारतीय सेना मेस के तौर पर करती है. इस इमारत का नाम भी फील्ड मार्शल होरेशियो हर्बर्ट किचनर के नाम पर रखा गया था. यह 1902 से 1909 के बीच कमंडर इन चीफ के तौर पर तैनात थे. किचनर हाउस वही जगह है ढाका सरेंडर के बाद ले.जन नियाजी को रखा गया था. इसी फोर्ट में चार मंजिला इमारत है जिसे डलहौजी बैरेक कहा जाता था. माना जाता है कि 1940 में नेता जी सुभाष को रखा गया था. उसका नाम अब नेताजी बैरक कर दिया गया है. इसी फोर्ट में रस्सल ब्लॉक भी है इसका मान बदल कर बंगाल के फ्रीडम फाइटर बाघाजतिन के नाम पर रखा गया है.
रक्षामंत्री राजनाथ ने दिया था सुझाव
देश आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान ब्रिटिश क्राउन और उनके अधिकारियों की छाप को सेना से हटाने का काम शुरु किया गाया था. इनमें सड़कें और इमारतें भी हैं. रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 2021 में रक्षा सम्पदा महानिदेशालय के 96वें स्थापना दिवस के मौके पर बात कही थी. रक्षामंत्री ने कहा था कि स्वतंत्रता के 75वी वर्षगांठ के मौके पर क्राउन के वफादार ब्रिटिश अधिकारियों और सैनिकों के नाम के सड़कों और भवनों के नाम बदले जाएं. उन्होंने सुझाव दिया था कि नए नाम हमारे बहादुर सैनिकों और आधुनिक भारत के निर्माताओं के नाम पर रखा जाना चाहिए . इस काम बहुत जल्द पूरा किया जाने की बात भी कही थी. राजनाथ सिंह ने यह भी साफ किया था कि इतिहास से छेडछाड करने और किसी दुर्भावना और संकीर्ण मानसिकता से प्रेरित होकर ऐसा नही कह रहा हूं. रक्षामंत्री ने यह भी हिदायत दी थी कि नाम बदलते हुए यह भी घ्यान रखें कि उन ब्रिटिश अफसर के नाम नहीं बादले जिन्होंने देश क्षेत्र की जनता के लिए अच्छा काम किया है. आगामी पीढ़ी से उनकी पहचान कराई जाए और उनके नाम सम्मान पूर्व यथावत रखा जाए.
क्या क्या बदला सेना ने?
26 जनवरी और 15 अगस्त में 21 तोपों की सलामी देना वाली ब्रिटिश 25 पाउंडर गन को स्वदेशी 105 से बदला गया. गणतंत्र दिवस समापन समारोह में बजने वाली ब्रिटश काल की धुन को स्वदेशी धुन से बदला गया. साल 2022 में इंडिया गेट वॉर मेमोरियल पर अमर जवान ज्योति की लौ को नेश्नल वॉर मेमोरियल में मिला दिया था. इंडिया गेट पर आजादी से पहले शहीद हुए ब्रिटिश इंडिया आर्मी जिसमें अंग्रेज अफसरों के नाम भी गुदे हुए थे.1971 में यहा अमर जवान ज्योति स्थापित की गई थी. नौसेना ने अपने फ्लैग और इनसाइन को बदल कर शिवाजी महाराज की मुहर को लगाया गया. बहरहाल अभी शुरुआत है. सेना से ब्रिटिश काल की छाप पूरी तरह से जाने में काफी लंबा वक्त लग सकता है.
First Published :
February 05, 2025, 16:24 IST