Last Updated:March 01, 2025, 17:36 IST
फिल्म स्टार गोविंदा का नाम इन दिनों खूब सुर्खियों में हैं. पत्नी सुनीता के साथ उनके तलाक की खबरों पर फिलहाल विराम लग गया है, लेकिन इससे उनकी निजी जिंदगी को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया. गोविंदा ने 2005 में रा...और पढ़ें
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हाइलाइट्स
गोविंदा और सुनीता के तलाक की खबरों पर फिलहाल विराम लग गया है.गोविंदा का करिश्मा कपूर और नीलम कोठारी संग अफेयर चर्चित रहा.गोविंदा ने राजनीति में दमदार आगाज किया, लेकिन फिर संन्यास भी ले लिया.बीते कुछ दिनों से फिल्म अभिनेता गोविंदा सुर्खियों में हैं. पत्नी सुनीता के साथ तलाक की खबरों पर फिलहाल विराम लग गया है, लेकिन यह भी साफ हो गया है कि उनके 37 साल के पारिवारिक गठबंधन में सबकुछ ठीक तो कतई नहीं चल रहा. हालांकि उनके प्रशंसक यही चाहते हैं कि यह जिंदादिल जोड़ा हमेशा साथ रहे.
सुनीता के साथ अपने विवाह को गोविंदा ‘लव कम अरेंज मैरिज’ बताते थे, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे को पहले से जानते थे. दोनों के बीच गाढ़ी दोस्ती हुआ करती थी और फिर वे यकायक दोस्त से पति-पत्नी बन गए. अपनी शादी के पलों को याद करते हुए गोविंदा कहते हैं, ‘एक दिन मैं शूटिंग से घर आया और मेरी मां ने कहा कि अब शादी करने का वक्त आ गया है. तो अगले ही दिन सुबह 4:30 बजे सुनीता और मेरी शादी हो गई.’ गोविंदा ने शादी अपनी मां निर्मला देवी के जोर देने पर की थी. गोविंदा कहते हैं, ‘मैंने कभी अपनी मां से सवाल नहीं किया. मैं बस उन्हें वो सारी खुशियां देना चाहता था, जो मेरे बस में थीं.’
कई अभिनेत्रियों से अफेयर के चर्चे
हालांकि, गोविंदा के निजी जीवन की डोर केवल सुनीता तक सीमित नहीं थी. जैसा कि फिल्म क्षेत्र से जुड़े लोगों के साथ होता ही है, गोविंदा भी अन्य अभिनेत्रियों के साथ अफेयर और अफेयर की अफवाहों से बच नहीं सके. एक समय करिश्मा कपूर के साथ उनके अफेयर की अफवाहें उड़ी थीं, जब वे फिल्मों में नई-नई आई थीं. लेकिन उनके जीवन का असल प्यार उनकी सह-कलाकार नीलम कोठारी मानी जाती थीं.
हांगकांग में जन्मी नीलम के साथ गोविंदा की पहली मुलाकात निर्माता प्राणलाल मेहता के दफ्तर में हुई थी. वे उसी समय से उनके प्रति आकर्षित हो गए थे. ‘लव 86’ और फिर ‘इल्जाम’ में साथ काम करने के बाद उनका रिश्ता गहरा हो गया. लेकिन उनकी शादी नहीं हो सकी. फिल्म मैगजीन ‘स्टारडस्ट’ ने ‘गोविंदा नीलम से शादी क्यों नहीं कर सके?’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया था. इसकी लेखिका सुगुना सुंदराम ने इसकी वजह दोनों की पृष्ठभूमियों का काफी अलग होना बताया था. गोविंदा जो खुद को ‘अनगढ़’ कहते थे, ने स्वीकार किया था कि नीलम के सामने वे खुद को हीन महसूस करते थे, क्योंकि उनकी अंग्रेजी उतनी अच्छी नहीं थी.
गोविंदा के अभिनेत्री रानी मुखर्जी के साथ कथित प्रेम संबंधों की खबरों ने एक तरह से हलचल मचा दी थी, क्योंकि उस समय तक अभिनेता शादी कर चुके थे. गोविंदा की रानी के साथ पहली मुलाकात ‘हद कर दी आपने’ (2000) के सेट पर हुई थी. एक बड़े अंग्रेजी अखबार ने लिखा था कि गोविंदा ने रानी को महंगी कार, डायमंड ज्वेलरी और यहां तक कि एक आलीशान अपार्टमेंट गिफ्ट किया था. इस मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि पत्नी सुनीता ने खफा होकर उनका घर तक छोड़ दिया था. चूंकि गोविंदा अपनी शादी बचाए रखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने रानी मुखर्जी के साथ रिश्ता खत्म कर लिया.
कैसे इतनी हिट फिल्में देते गए गोविंदा?
गोविंदा में आखिर ऐसा कौन-सा जादू है, जो फिल्म-दर-फिल्म उन्हें कामयाब बनाता गया? इस बारे में फिल्म निर्देशक महेश भट्ट, जिन्होंने उन्हें ‘आवारगी’ (1990) में डायरेक्ट किया था, ने इस लेखक से कहा था, ‘उनमें जमीन से जुड़े ऐसे आम आदमी वाला आकर्षण है, जिसमें ईमानदारी भी है तो मासूमियत भी. भारतीयता उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है. लोग उन्हें देखकर उनके साथ अपना जुड़ाव महसूस करते थे.’ निर्देशक डेविड धवन, जिन्होंने गोविंदा के साथ कई सुपरहिट फिल्में बनाई, उन्हें शम्मी कपूर की ‘याहू’ जैसी मस्ती और राज कपूर की ‘अनाड़ी’ जैसी मासूमियत का मेल मानते थे.
जब सोनिया ने कहा- हां, मेरे बच्चे इनकी बातें करते हैं…
1990 के दशक के उत्तराद्ध में सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस की बागडोर संभालने तक गोविंदा एक अभिनता के तौर पर स्थापित हो चुके थे. किस्मत अब उनके लिए राजनीति के दरवाजे खोलने जा रही थी. सोनिया गांधी के सम्मान में मुंबई में कांग्रेस नेता मुरली देवड़ा द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गोविंदा को भी आमंत्रित किया गया था. देवड़ा की पत्नी हेमा को आज भी याद है कि गोविंदा का सोनिया गांधी से परिचय करवाने के लिए उनके पति कैसे उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी तक ले गए थे. जब मुरली देवड़ा सोनिया से गोविंदा का परिचय करवाने लगे तो कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘बिल्कुल, मैं इन्हें जानती हूं. मेरे बच्चे अक्सर इनके बारे में बातें करते रहते हैं.’
गोविंदा को सोनिया के बाजू में बैठाकर मुरली और हेमा अन्य अतिथियों की अगवानी के लिए चले गए. हेमा उन्हें दूर से देख रही थीं कि कैसे गोविंदा अपने सेंस ऑफ ह्यूमर से सोनिया को हंसा रहे थे. सोनिया गांधी के करीबी लोगों के मुताबिक गोिवंदा की सादगी व सहजता से कांग्रेस अध्यक्ष काफी प्रभावित हुई थीं और उन्होंने उनसे 10, जनपथ पर आकर मुलाकात करने को कहा था. हालांकि यह मुलाकात काफी बाद में अंततः 2003 में संभव हो पाई.
2004 के लोकसभा चुनावों में गोविंदा ने मुंबई उत्तर की सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम नाईक को हराकर ‘जाएंट किलर’ का खिताब हासिल कर लिया था. लटके-झटके वाले एक हास्य कलाकार का इस तरह से राजनीति के मंच पर उभरना किसी आश्चर्य से कम नहीं था. और इसकी वजह थी उनकी सादगी और सहज हाजिर-जवाबी. जब एक बार किसी ने उनसे पूछा कि संसद में अटल बिहारी वाजपेयी के होने से क्या अब ज्यादा ताल-मेल बन सकेगा? इस पर उन्होंने कहा था, ‘ताल तो जरूर होगा, मगर मेल के बारे में कह नहीं सकता.’
जब लोग कहते, ‘ये तो अपुन का आदमी है’
गोविंदा अपेक्षाकृत एक कमजोर पृष्ठभूमि से आए थे और यही उनकी ताकत बन गई. उनका जन्म महाराष्ट्र में बस चुके एक पंजाबी परिवार में हुआ था, जो उनके जन्म से पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहा था. उनकी मां निर्मला देवी एक शास्त्रीय गायिका थीं, जबकि पिता अरुण आहूजा एक संघर्षरत फिल्म अभिनेता.
खुद को आम जनता के बीच का आदमी दिखाने के लिए राहुल गांधी ने तो हाल के वर्षों में मेट्रो की यात्राएं कीं, लेकिन गोविंदा तो काफी पहले ही लोकल ट्रेनों का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए कर चुके थे. वे इन ट्रेनों में चढ़कर अपनी पार्टी के लिए समर्थन जुटाते थे. संभावित मतदाताओं को इससे एक अपनापन महसूस होता था और वे उनसे तुरंत जुड़ जाते थे. उन्हें एक-दूसरे से यह कहते सुना जाता, ‘ये भिड़ू तो अपुन का आदमी है.’ भीड़ हमेशा उनके साथ रहती, उनसे बातें करती और उत्साह में चिल्लाती, ‘चल, गोविंदा भाई, चल!’ गोविंदा भी जोशीले अंदाज में कहते, ‘गोविंदा आला रे आला!’ और फिर जोड़ते, ‘राम नाईक गेला रे गेला!’ (राम नाईक जाने वाले हैं.)
और फिर राजनीति से मोहभंग
नाईक को हराकर गोविंदा ने शानदार शुरुआत की थी. लेकिन 2008 तक आते-आते उनका राजनीति से मोहभंग हो गया और उन्होंने कई बार राजनीति छोड़ने की धमकी दी. जनवरी-फरवरी 2008 से लेकर मई 2009 तक गोविंदा का कांग्रेस पार्टी और अपने संसदीय क्षेत्र से बहुत कम संपर्क रहा. 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने कांग्रेस के लिए प्रचार भी नहीं किया. यह अलग बात है कि फिर भी पार्टी के उम्मीदवार संजय निरुपम ने अपनी यह सीट निकाल ली थी.
यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान गोविंदा राजनीति के प्रति पूरी तरह निष्क्रिय रहे. वे इस बात से नाराज थे कि न तो सोनिया गांधी और न ही तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उन्हें राज्यसभा की सीट देने की पेशकश की. जब इस विषय पर मैंने उनसे बात करनी चाही तो गोविंदा ने कोई भी सीधी टिप्पणी न करते हुए सिर्फ इतना ही कहा था, ‘आप राजनीति छोड़ने की वजहों को खुद समझ सकते हैं.’ उन्होंने राजनीति और कांग्रेस नेतृत्व पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन अंततः राजनीति छोड़ने की वजह बताई, ‘मुझे लगा कि राजनीति छोड़ना उचित रहेगा, क्योंकि इस क्षेत्र में मुझे ज्यादा अनुभव नहीं था.’
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
March 01, 2025, 17:17 IST