Last Updated:July 18, 2025, 11:53 IST
Atal Bihari Vajpayee News: अटल बिहारी वाजपेयी के पास बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद सुलझाने का प्लान था, लेकिन आडवाणी की असहमति से योजना विफल हो गई.

अटल बिहारी वाजपेयी के पास था बाबरी मस्जिद विवाद का समाधान: किताब.
हाइलाइट्स
अटल बिहारी वाजपेयी के पास बाबरी विवाद का समाधान था.आडवाणी की असहमति से योजना विफल हो गई.वीपी सिंह सरकार अध्यादेश लाने को तैयार थी.बाबरी मस्जिद का विवाद सालों तक चला. कई बार आपसी बातचीत से इसे सुलझाने की कोशिश हुई. कभी सरकार की ओर से तो कभी पार्टी की ओर से. मगर हर कोशिश नाकाम रही. आखिरकार साल 2019 में अयोध्या राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया. अब उसी बाबरी विवाद को लेकर एक किताब में नया दावा किया गया है. किताब के मुताबिक, कभी अटल बिहारी वाजपेयी के पास बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद सुलझाने का प्लान था. इस पर बहुत आगे बात बढ़ गई थी, मगर आडवाणी तैयार नहीं थे. अटल बाद में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढांचे के विध्वंस से दुखी थे.
इतिहासकार अभिषेक चौधरी की किताब ‘बिलीवर’स डिलेमा: वाजपेयी एंड द हिंदू राइट्स पाथ टू पावर’ में यह खुलासा हुआ है. यह किताब पूर्व पीएम वाजपेयी पर है. इस किताब में लिखा गया है कि अटल बिहारी वाजपेयी के पास बाबरी विवाद को सुलझाने का प्लान था. उन्होंने बाबरी विवाद को सुलझाने के लिए एक खास फॉर्मूला भी तैयार किया था, जिसे वीपी सिंह सरकार भी मानने को तैयार थी, मगर लालकृष्ण आडवाणी की असहमति के कारण यह योजना ठंडी पड़ गई.
अटल के पास क्या था प्लान
किताब के मुताबिक, अटल बिहारी वाजपेयी की योजना के तहत उस वक्त की वीपी सरकार अयोध्या में विवादित स्थल को छोड़कर 67 एकड़ जमीन वीएचपी यानी विश्व हिंदू परिषद को सौंपने वाली थी और विवादित स्थल का मामला सुप्रीम कोर्ट को भेजा जाना था. वीपी सिंह इस पर अध्यादेश लाने को भी राजी हो गए थे. यहां तक कि राष्ट्रपति को आधी रात 12:30 बजे अध्यादेश पर दस्तखत के लिए जगा दिया गया था. मगर लालकृष्ण आडवाणी ने सहमति नहीं दी. कारण कि उन्हें वीपी सिंह पर भरोसा नहीं था.
वीपी सिंह को अध्यादेश वापस लेना पड़ा
इस कदम से बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और जनता दल के नेता जैसे मुलायम सिंह यादव नाराज हो गए. दूसरी ओर वीएचपी ने भी अपनी कारसेवा को रोकने से इनकार कर दिया और एलके आडवाणी ने अपनी रथ यात्रा जारी रखी. नतीजा हुआ कि वीपी सिंह को अध्यादेश वापस लेना पड़ा. किताब में यह भी बताया गया है कि 5 दिसंबर 1992 को लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ‘वहां नुकीले पत्थर हैं, वहां कोई नहीं बैठ सकता. जमीन को समतल करना होगा ताकि लोग वहां बैठ सकें.’ इसे कई लोग 6 दिसंबर 1992 की घटना का संकेत मानते हैं.
अटल को हुआ अफसोस?
किताब के मुताबिक, अगली दोपहर यानी 6 दिसंबर 1992 को वाजपेयी दिल्ली में अपने ड्राइंग रूम में बैठे बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने की प्रक्रिया देख रहे थे. लेकिन कुछ हफ्ते बाद उन्हें ‘निजी तौर पर इस बात का नैतिक क्षोभ हो रहा था कि उन्हें उस बात का बचाव करना पड़ रहा है जिसका बचाव नहीं किया जा सकता.’
कौन हुआ विरोध प्रदर्शन में शामिल
अभिषेक चौधरी ने अटल की बायोग्राफी में लिखा, ‘बाबरी विध्वंस के अगले दिन उनकी दत्तक बेटी गुन्नू एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं, जहां लोगों ने तख्तियां पकड़ी हुई थीं और कहा था कि वे बहुसंख्यक धर्म से जुड़े होने पर बेहद शर्मिंदा हैं… एक दोस्त ने आडवाणी के घर में एक उदासी देखी जिससे पता चलता था कि वह इस्तीफा देने वाले हैं… वह परेशान थे, यह कोई बनावटी बात नहीं थी. परिवार शोक मना रहा था.’
Shankar Pandit has more than 10 years of experience in journalism. Before News18 (Network18 Group), he had worked with Hindustan times (Live Hindustan), NDTV, India News Aand Scoop Whoop. Currently he handle ho...और पढ़ें
Shankar Pandit has more than 10 years of experience in journalism. Before News18 (Network18 Group), he had worked with Hindustan times (Live Hindustan), NDTV, India News Aand Scoop Whoop. Currently he handle ho...
और पढ़ें
Location :
Delhi,Delhi,Delhi