पटना. प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह का मिलन क्या बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर है? इस मिलन से किस गठबंधन को ज्यादा नुकसान होगा? क्या एनडीए की संगठनात्मक ताकत और सीएम नीतीश का राजनीतिक अनुभव बिहार के आगामी चुनाव में मजबूत रखेगा? क्या तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और युवा छवि महागठबंधन को बढ़त दे सकती है? क्या नीतीश के लिए यह चुनाव अब तक का सबसे कठिन हो सकता है? क्या नीतीश कुमार के दो पूर्व सहयोगियों का गठजोड़ उनकी सत्ता को गंभीर चुनौती दे रहा है? क्या बिहार में कुर्मी और ब्राह्मण का गठजोड़ नई कहानी लिखने जा रहा है?
बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और आरसीपी सिंह की पार्टी ‘आप सबकी आवाज’ (आसा) के विलय ने 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले सियासी समीकरणों को और जटिल कर दिया है. प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह दोनों ही नीतीश कुमार के करीबी रहे हैं और उनकी राजनीति को करीब से समझते हैं. आरसीपी सिंह का नालंदा और कुर्मी समुदाय में प्रभाव नीतीश के पारंपरिक वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरसीपी सिंह की भूमिका मुख्य रूप से वोटकटवा की हो सकती है, जैसा कि 2020 में चिराग पासवान ने किया था. इससे जदयू की सीटें कम हो सकती हैं, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ महागठबंधन को मिल सकता है.
बीजेपी की दुविधा
नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता के कारण बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने से बच रही है. प्रशांत किशोर ने दावा किया है कि अगर एनडीए जीतता है, तो बीजेपी अपना मुख्यमंत्री लाएगी. यह स्थिति जदयू-बीजेपी गठबंधन में तनाव पैदा कर सकती है. प्रशांत किशोर शुरू से ही तेजस्वी यादव और राजद को निशाने पर लेते रहे हैं. उनकी रणनीति राजद के युवा वोट बैंक, खासकर यादव और मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित करने की है. अगर जन सुराज महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होती है, तो तेजस्वी यादव के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
किस पार्टी और गठबंधन को ज्यादा नुकसान होगा?
प्रशांत किशोर की पार्टी और आरसीपी सिंह की पार्टी में विलय का तात्कालिक नुकसान एनडीए, खासकर जदयू को होने की संभावना ज्यादा है, क्योंकि प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह दोनों ही नीतीश कुमार को मुख्य निशाना बना रहे हैं. हालांकि, अगर जन सुराज महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल होती है, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, जिससे दोनों गठबंधनों को नुकसान हो सकता है.
एनडीए बनाम महागठबंधन, किसका पलड़ा भारी?
2025 के चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर की उम्मीद है. दोनों गठबंधनों की ताकत और कमजोरियों का विश्लेषण निम्नलिखित है:
एनडीए की ताकत
नीतीश कुमार का अनुभव और उनकी सरकार की कुछ लोकप्रिय योजनाएं, जैसे सात निश्चय और महिलाओं के लिए आरक्षण. बीजेपी की मजबूत संगठनात्मक शक्ति और केंद्र सरकार के संसाधन.
बीजेपी नेता सैयद शाहनवाज हुसैन का दावा कि नीतीश के नेतृत्व में एनडीए 200+ सीटें जीतेगा.
एनडीए की कमजोरियां
नीतीश कुमार की घटती लोकप्रियता और बढ़ती उम्र. सर्वे में केवल 17% लोग उन्हें सीएम के रूप में चाहते हैं, जबकि तेजस्वी यादव को 35.5% समर्थन है. जदयू-बीजेपी के बीच सीट बंटवारे को लेकर संभावित तनाव. जन सुराज और आरसीपी सिंह का नीतीश के वोट बैंक पर हमला.
महागठबंधन की ताकत
तेजस्वी यादव की युवा छवि और 2020 में राजद के सबसे बड़ी पार्टी बनने का रिकॉर्ड. यादव और मुस्लिम वोट बैंक का मजबूत समर्थन. नीतीश की कमजोर होती छवि का फायदा उठाने की रणनीति.
महागठबंधन की कमजोरियां
राजद पर जंगलराज का पुराना ठप्पा, जिसे बीजेपी और जन सुराज भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. गठबंधन में कांग्रेस और अन्य छोटे दलों की कमजोर स्थिति. प्रशांत किशोर का तेजस्वी के खिलाफ आक्रामक रुख.
नीतीश कुमार क्या थक गए हैं’?
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे अनुभवी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने बार-बार गठबंधन बदलकर अपनी सत्ता बरकरार रखी है. लेकिन इस बार उनकी स्थिति पहले से कहीं ज्यादा कमजोर दिख रही है. प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह, जो कभी उनके ‘हथियार’ थे, अब उनके खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं.
नीतीश की ताकत
उनकी सरकार की कुछ योजनाएं, जैसे बिजली, सड़क, और महिलाओं के लिए सशक्तिकरण, अभी भी प्रभावी हैं. गठबंधन की राजनीति में उनकी विशेषज्ञता. वह बीजेपी और राजद दोनों के साथ दबाव की रणनीति अपनाने में माहिर हैं. नालंदा और कुर्मी समुदाय में उनकी मजबूत पकड़.
नीतीश के सामने चुनौतियां
प्रशांत किशोर ने नीतीश को शारीरिक और मानसिक रूप से थका हुआ बताकर उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया है. उनकी रणनीति नीतीश के विकास मॉडल पर सवाल उठाने की है, जैसे उनके गांव में रियलिटी चेक. आरसीपी सिंह सिंह का जदयू संगठन का अनुभव और नीतीश के खिलाफ उनकी नाराजगी जदयू के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकती है. नीतीश की बढ़ती उम्र और घटती लोकप्रियता और विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश की उम्र और थकान उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन रही है.