Last Updated:June 22, 2025, 16:38 IST
Prashant Kishor Politics: प्रशांत किशोर का बिहार चुनाव से पहले लालू यादव वाला अवतार क्या उनको सिकंदर बनाएगा? RJD सुप्रीमो लालू यादव स्टाइल में प्रशांत किशोर का खाटी बिहारी पॉलिटिक्स के निशाने पर कौन?

पीके का लालू यादव वाला अंदाज लोगों को कितना पसंद आ रहा है?
हाइलाइट्स
पीके का लालू वाला अंदाज से फायदा या नुकसान?PK भीड़ के बीच कैसे बन जा रहे हैं एक आम बिहारी?लालू और पीके के स्टाइल में क्या समानताएं हैं?पटना. ‘भाई बैठो, माला नहीं पहनना है… बैठिइए लोग गर्मी में बैठे हैं और आपको माला पहनाने की पड़ी है.’ जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर का यह नया अंदाज आजकल उनके रैलियों में देखने को मिल रहा है. प्रशांत किशोर बिहार चुनाव से पहले सीधे जनता से संवाद कर रहे हैं और उनका यह अंदाज लोगों को खूब भा रहा है. आज से 15-20 साल पहले आरेजेडी सुप्रीमो लालू यादव का भी यही अंदाज हुआ करता था. हालांकि, लालू यादव अब बहुत कम ही रैलियों में नजर आते हैं. लेकिन लालू वाला वह अंदाज अब पीके के रैलियों में दिखने लगा है. खास बात यह है कि पीके का यह वीडियो जन सुराज के एक्स हैंडल से पोस्ट कर बताया जा रहा है कि पीके जनता के बीच कितने पॉपुलर हो रहे हैं. पीके का यह नया पेंतरा है या जनता जुनून, यह तो बिहार चुनाव का परिणाम ही बताएगा कि लेकिन इतना जरूर है कि प्रशांत किशोर खाटी बिहारी पॉलिटिक्स से कई पार्टियों की नींद गायब है. क्या पीके ने लालू वाला स्टाइल अपना कर तेजस्वी यादव को पटखनी देंगे या फिर उनके निशाने पर नीतीश कुमार हैं?
बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर बीते कुछ सालों से बड़ा नाम बनते जा रेह हैं. पीके का अंदाज वैसा ही है जैसे लालू यादव के शुरुआती दिनों के राजनीतिक करियर में देखा जाता था. लालू का भी अंदाज अनूठा था तो पीके का अंदाज और भी अनूठा. दोनों की जनता से बातचीत की शैली में कई समानताएं हैं, जो उनकी लोकप्रियता और प्रभाव का आधार बनी हैं. हालांकि, प्रशांत किशोर एक रणनीतिकार और जन सुराज के संस्थापक के रूप में उभरे हैं, जबकि लालू यादव एक करिश्माई राजनेता और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख हैं. फिर भी दोनों के स्टाइल में कई समानताएं देखी जा सकती हैं.
जन सुराज पार्टी के चीफ प्रशांत किशोर. (फाइल फोटो)
प्रशांत किशोर की राजनीति या रणनीति?
लालू यादव की तरह प्रशांत किशोर भी जनता से सीधे और सरल भाषा में संवाद करने में माहिर हैं. लालू यादव का देसी ठाठ, जिसमें वे गांव की बोली, हास्य और चुटकुले का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें जनता का अपना नेता बनाता है. लालू अपनी सभाओं में गाय चराने वाले, भैंस चराने वाले और ताड़ पर चढ़कर ताड़ी उतारने वालें जैसे बातों से सभा की शुरुआत करते थे तो पीके जनता के बीच पहुंचकर उन्हीं के अंदाज में बात करने लगते हैं. समस्तीपुर की एक रैली में भीषण गर्मी में जब प्रशांत किशोर पहुंचे तो कुछ नेता मंच पर पीके को माला पहनाने के लिए आगे बढ़े. पीके ने तुरंत ही लोगों की तरफ देखकर कहा, ‘भाई बैठो, माला नहीं पहनना है… बैठिइए लोग गर्मी में बैठे हैं और आपको माला पहनाने की पड़ी है.’
PK की सभाओं में लालू वाला अंदाज
प्रशांत किशोर भी अपनी सभाओं में बिहारी बोली और साधारण भाषा का उपयोग करते हैं.पीके जनता के बीच एक आत्मीयता भी पैदा करते हैं. दोनों का यह अंदाज़ जनता को यह विश्वास दिलाता है कि वे उनके अपने हैं. लालू यादव ने 1990 के दशक में सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के उत्थान के नारे को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया. ‘जात-पात तोड़ो’ और MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण’ उनकी रणनीति का हिस्सा था, जिसने उन्हें बिहार में मजबूत आधार दिया. दूसरी ओर प्रशांत किशोर भी अपनी जन सुराज यात्रा में शिक्षा, रोजगार और भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम को केंद्र में रखते हैं. उनकी यह रणनीति लालू के सामाजिक न्याय के नारे से प्रेरित लगती है, जो जनता की बुनियादी समस्याओं को उठाने पर जोर देती है. दोनों ही जनता की नब्ज़ को पकड़कर मुद्दों को हवा देने में माहिर हैं.
लालू यादव भी जनता से उन्हीं के अंदाज में बात करते थे. (फाइल फोटो)
क्या पीके के निशाने पर तेजस्वी या फिर नीतीश?
लालू यादव की तरह पीके भी मंच पर हास्य, तंज और आत्मविश्वास से भरे रहते हैं. उनकी सभाओं में लोग घंटों गर्मी में बैठते हैं, क्योंकि उनका आत्मविश्वास और तार्किक अंदाज़ लोगों को बांध लेता है. दोनों ही अपने भाषणों में तंज कसने और विरोधियों पर निशाना साधने में माहिर हैं. लालू यादव अपने विरोधियों को तीखे बयानों और हास्य के जरिए घेरने के लिए जाने जाते हैं. जबकि, पीके परिवारवाद के मुद्दे पर न केवल लालू को घेरते हैं बल्कि उनके बेटे तेजस्वी को भी नहीं छोड़ते. पीके कहते हैं कि अगर लालू यादव परिवार से बाहर किसी को सीएम बनाएं तो वे समर्थन करेंगे. यह बयान न केवल रणनीतिक है, बल्कि लालू के स्टाइल की तरह जनता में चर्चा का विषय बन गया.
कुलिमिलाकर आने वाले दिनों में प्रशांत किशोर का जनता से जुड़ने का अंदाज उन्हें लालू यादव की तरह पॉपुलर बना दे हैरानी नहीं होगी. हालांकि, लालू यादव का आधार जातिगत समीकरण और परिवारवाद रहा, जबकि प्रशांत किशोर सुशासन और गैर-परिवारवादी राजनीति की बात करते हैं. फिर भी, दोनों का जनता को मोहित करने का अंदाज़ और रणनीतिक चतुराई उन्हें बिहार की सियासत में खास बनाती है.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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