Last Updated:December 26, 2025, 07:35 IST
Akash NG Missile System: भारत अपने एयर डिफेंस सिस्टम को लगातार मजबूत करने में जुटा है. आयरन डोम और गोल्डन डोम की तर्ज पर भारत भी मिशन सुदर्शन चक्र पर काम कर रहा है. यह मिशन नेशनल एयर डिफेंस सिस्टम का हिस्सा है. इसके तहत स्वदेशी तकनीक से डेवलप सिस्टम के साथ ही इंपोर्टेड टेक्नोलॉजी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत का लक्ष्य साल 2035 तक फुलप्रूफ नेशनल एयर डिफेंस सिस्टम डेवलप करना है.
Akash NG Missile System: DRDO ने आकाश नेक्स्ट जेनरेशन यानी आकाश NG का सफल परीक्षण किया है. इससे भारत की वायु सुरक्षा प्रणाली के और मजबूत होने की संभावना है. (फोटो: PTI)Akash NG Missile System: भारत एंटी मिसाइल और एंटी फाइटर जेट सिस्टम डेवलप करने की दिशा में नित नया इतिहास लिख रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देसी तकनीक से डेवलप मिसाइल सिस्टम ने पाकिस्तान के दर्जनों वार का सफलतापूर्वक विफल किया था. आकाश मिसाइल सिस्टम की ताकत को पहली बार दुनिया ने देखा था. रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने भी जबरदस्त तरीके से काम किया था. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इंडियन आर्म्ड फोर्सेज को पहली बार एक मजबूत और फुलप्रूफ एयर डिफेंस सिस्टम की जरूरत महसूस हुई थी. सशस्त्र संघर्ष के बाद भारत ने आकाश मिसाइल सिस्टम को अपडेट करना शुरू कर दिया है. इसी प्रक्रिया के तहत आकाश प्राइम का परीक्षण किया गया था. आकाश प्राइम सिस्टम समुद्र तल से 18 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी पूरी तरह से कारगर है. दुश्मन की ओर से किए गए वार को विफल करने में सक्षम है. आकाश प्राइम की सफलता ने भारत के डिफेंस सिस्टम को नेक्स्ट लेवल तक पहुंचा दिया. इसके बाद पिछले दिनों रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने आकाश मिसाइल सिस्टम के एक और अपग्रेडेड वर्जन का सफल ट्रायल किया है. इसे आकाश-NG (Akash New/Next Generation) का नाम दिया गया है. रेंज और कैपेबिलिटी के मामले में यह आकाश प्राइम से सुपीरियर है. मिशन सुदर्शन चक्र में यह प्रमुख स्तंभ साबित हो सकता है. डिफेंस एक्सपर्ट की मानें तो आकाश-NG पाकिस्तान की सबसे घातक और लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम न्यूक्लियर कैपेबल शाहीन मिसाइल की धार को कुंद करने में सक्षम है. शाहीन के तीन वर्जन है. पाकिस्तान ने इसे चीन की DF सीरीज की मिसाइल से प्रेरित होकर डेवलप किया है.
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने आकाश-न्यू जेनरेशन मिसाइल प्रणाली के यूज़र इवैल्यूएशन ट्रायल (UET) सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं. इसके साथ ही इस अत्याधुनिक सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली के भारतीय वायुसेना (IAF) में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया है. इन परीक्षणों को आकाश-एनजी के विकास में एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है. आकाश मिसाइल प्रणाली का विकास डीआरडीओ ने 1980 के दशक के अंत में इंटीग्रेटेड डायरेक्टेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) के तहत शुरू किया था, जिसकी अगुवाई उस समय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम कर रहे थे. यह एक छोटी से मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है. 1990 और 2000 के शुरुआती वर्षों में डेवलपमेंटल ट्रायल के बाद भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना ने इसके व्यापक यूज़र ट्रायल किए.
डीआरडीओ ने इससे पहले हाई एल्टीट्यूड से मार करने में सक्षम आकाश प्राइम मिसाइल का सक्सेसफुल ट्रायल किया था. (फोटो: PTI)
आकाश मिसाइल सिस्टम खास क्यों?
आकाश मिसाइल सिस्टम एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बनाने में सक्षम है और इसे ग्रुप मोड या ऑटोनोमस मोड में ऑपरेट किया जा सकता है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक काउंटर-काउंटर मेजर्स (ईसीसीएम) भी लगे हैं, जो दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक धोखाधड़ी सिस्टम का मुकाबला करने में मदद करते हैं. आकाश मिसाइल को 2014 में एयरफोर्स और 2015 में सेना में शामिल किया गया. वर्तमान में दोनों सेनाएं इसके कई स्क्वाड्रन को ऑपरेट कर रही हैं. डीआरडीओ के अनुसार, इस मिसाइल में करीब 96 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. दिसंबर 2020 में सरकार ने आकाश मिसाइल के निर्यात को भी मंजूरी दी थी, क्योंकि कई मित्र देशों ने इसमें रुचि दिखाई थी.
आकाश-NG की विकास यात्रा
आकाश मिसाइल का शुरुआती संस्करण 27 से 30 किलोमीटर तक की दूरी और लगभग 18 किलोमीटर की ऊंचाई तक लक्ष्य को भेदने में सक्षम था. आकाश-NG को इससे कहीं अधिक उन्नत रूप में विकसित किया गया है. यह प्रणाली कैनिस्टराइज्ड लॉन्चर के साथ आती है, जिससे इसकी तैनाती आसान हो जाती है और जमीनी सिस्टम का आकार भी छोटा हो गया है. आकाश-NG को मुख्य रूप से भारतीय वायुसेना के लिए तैयार किया गया है. इसका उद्देश्य ऐसे हवाई खतरों को रोकना है, जिनकी रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) बहुत कम होती है और जो तेज़ी से दिशा बदल सकते हैं. नई पीढ़ी की इस मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 70 किलोमीटर तक है. यह पहले की तुलना में हल्की, स्लीक (पतली) और तकनीकी रूप से अधिक सक्षम है.
DRDO मिसाइल डेवलपमेंट के 3 चरण
विकासात्मक परीक्षण (Developmental Trial) यूजर-असिस्टेड ट्रायल यूज़र इवैल्यूएशन ट्रायलअल्ट्रा मॉडर्न टेक्नोलॉजी
आकाश मिसाइल सिस्टम में स्वदेशी रूप से विकसित रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर, लॉन्चर, मल्टी-फंक्शन रडार और कमांड, कंट्रोल व कम्युनिकेशन सिस्टम शामिल हैं. कैनिस्टर में रखे जाने के कारण मिसाइलों की स्टोरेज और परिवहन आसान होता है, साथ ही उनकी उम्र और ऑपरेशनल तैयारी भी बढ़ जाती है. डीआरडीओ ने आकाश का एक और संस्करण ‘आकाश प्राइम’ भी विकसित किया है, जिसमें पहले जैसी रेंज तो है, लेकिन सटीकता बढ़ाने के लिए इसमें स्वदेशी एक्टिव रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर जोड़ा गया है.
क्या है यूजर इवैल्यूएशन ट्रायल और क्यों अहम?
आकाश-NG का पहला परीक्षण 25 जनवरी 2021 को ओडिशा तट के पास इंटीग्रेटेड टेस्ट रेंज से किया गया था. इसके बाद 12 जनवरी 2024 को बेहद कम ऊंचाई पर तेज़ गति से उड़ रहे मानवरहित हवाई लक्ष्य के खिलाफ इसका सफल परीक्षण हुआ, जिससे यूज़र ट्रायल का रास्ता खुला. 23 दिसंबर 2025 को हुए यूजर इवैल्यूएशन ट्रायल में आकाश-एनजी ने प्रोविजनल स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट्स (पीएसक्यूआर) को पूरा किया. इन परीक्षणों के दौरान मिसाइल ने अलग-अलग दूरी और ऊंचाई पर मौजूद हवाई लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया. इसमें सीमा के पास कम ऊंचाई पर उड़ते लक्ष्य और लंबी दूरी पर अधिक ऊंचाई वाले लक्ष्य भी शामिल थे. इन परीक्षणों में इस्तेमाल किए गए सभी सिस्टम और सब-सिस्टम, जैसे मल्टी-फंक्शन रडार, कमांड एंड कंट्रोल यूनिट और मिसाइल लॉन्च वाहन, डीआरडीओ की विभिन्न प्रयोगशालाओं ने भारतीय उद्योगों के सहयोग से तैयार किए हैं.
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बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 26, 2025, 07:35 IST

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