भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' से चीन-पाकिस्तान की दोस्ती में आई दरार...अब क्या होगा?

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Last Updated:May 12, 2025, 12:18 IST

Pakistan-China News: भारत के ऑपरेशन सिंदूर में चीन ने पाकिस्तान को सीधे तौर पर समर्थन नहीं दिया, बल्कि तटस्थ रुख अपनाया. चीन के इस रुख के बाद पाकिस्तान के सोशल मीडिया में पीएम शाहबाज शरीफ को लेकर तरह-तरह की बात...और पढ़ें

भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' से चीन-पाकिस्तान की दोस्ती में आई दरार...अब क्या होगा?

क्या ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान और चीन में दरार पैदा कर दिया है?

हाइलाइट्स

चीन ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को समर्थन नहीं दिया.पाकिस्तान में चीन पर धोखा देने के आरोप लगे.चीन ने तटस्थ रुख अपनाते हुए संयम बरतने की अपील की.

नई दिल्ली. भारत के ऑपरेशन सिंदूर में चीन की भूमिका को लेकर कई तरह की बातें शुरू हो गई हैं. पाकिस्तानी मीडिया और सोशल मीडिया में चीन पर धोखा देने का आरोप लग रहा है. सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान, जो चीन की तारीफ करते नहीं थकता था, वही चीन ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान से दूर रहना ही सही समझा. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने कई मौकों पर कहा है कि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती हिमालय से ऊंची, समुद्र से गहरी और शहद से मीठी है. लेकिन भारत की बढ़ती ताकत को देखकर अब चीन भी पाकिस्तान से दूरी बना रहा है. हालांकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि चीन ने पर्दे के पीछे से पाकिस्तान को मदद की है. लेकिन अमेरिका के डर से सामने नहीं आया. क्योंकि अगर चीन खुलकर भारत के खिलाफ आता, तो अमेरिका भी चुप नहीं बैठता. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन पाकिस्तान की आंतरिक स्थितियों को देखकर अब दूरी बना रहा है? क्या पाकिस्तान और चीन की दोस्ती में दरार आ गया है?

7 मई 2025 को भारत द्वारा शुरू किया गया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ भारत-पाकिस्तान तनाव का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया. यह ऑपरेशन 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे. भारत ने 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइलों का उपयोग हुआ. इस दौरान, पाकिस्तान के ‘आयरन ब्रदर’ चीन की भूमिका चर्चा का केंद्र रही. क्या चीन ने पाकिस्तान की मदद की, या उसे धोखा दिया?

ऑपरेशन सिंदूर और चीन की भूमिका
ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना ने बहावलपुर, मुरीदके और सियालकोट जैसे स्थानों पर सटीक हमले किए, जिसमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के 100 से अधिक आतंकी मारे गए. भारत ने दावा किया कि केवल आतंकी ठिकाने निशाना बने, जबकि पाकिस्तान ने नागरिक हताहतों और मस्जिदों पर हमले का आरोप लगाया. इस संघर्ष में ब्रह्मोस मिसाइलों की प्रभावशीलता ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की ताकत को आकर्षित किया. विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में भारत की ताकत को पहली बार देखा गया.

क्या चीन ने पाकिस्तान को समर्थन दिया या तटस्थ रहा?
सामरिक मामलों के जानकारों का कहना है कि चीन ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद तटस्थ रुख अपनाया. चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में भारत के सैन्य हमलों को ‘खेदजनक’ बताया और दोनों देशों से संयम बरतने की अपील की. यह बयान चीन की सामान्य कूटनीतिक रणनीति को दर्शाता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देता है. हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने दावा किया कि चीनी J-10C जेट्स ने पांच भारतीय विमानों को मार गिराया, जिसे भारत ने खारिज कर दिया.

वहीं, कई विश्लेषकों का मानना है कि चीन ने पाकिस्तान को पूर्ण समर्थन देने से परहेज किया. कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ के कारण भारतीय बाजार चीन के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, दक्षिण चीन सागर और ताइवान स्ट्रेट में बढ़ते तनाव के बीच चीन नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में सैन्य उथल-पुथल हो.

चीन की रणनीति और धोखे का सवाल
चीन ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरण, जैसे J-10C जेट्स और वायु रक्षा प्रणालियां, उपलब्ध कराई थीं. हालांकि, ऑपरेशन सिंदूर में इन प्रणालियों की विफलता ने चीन की सैन्य तकनीक की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. भारतीय हमलों ने चीनी रक्षा प्रणालियों को निष्प्रभावी कर दिया, जिससे पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हुई. कुछ भारतीय विश्लेषकों ने इसे चीन का ‘धोखा’ करार दिया, लेकिन यह संभवतः तकनीकी अक्षमता का परिणाम था.

भारत-पाकिस्तान तनाव और भविष्य
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताकत को प्रदर्शित किया. भारत ने अमेरिका, रूस और इजरायल जैसे देशों से समर्थन प्राप्त किया, जबकि चीन की तटस्थता ने पाकिस्तान को अलग-थलग कर दिया. इस संघर्ष ने ब्रह्मोस मिसाइल की मांग को बढ़ाया, विशेष रूप से फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों में. कुल मिलाकर चीन ने ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान को प्रत्यक्ष सैन्य समर्थन नहीं दिया, बल्कि कूटनीतिक तटस्थता अपनाई. यह न तो पूर्ण समर्थन था और न ही धोखा, बल्कि एक रणनीतिक संतुलन था, जो चीन के आर्थिक और भू-राजनीतिक हितों को संरक्षित करता है.

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