Last Updated:November 04, 2025, 18:22 IST
Indian satellites: इसरो ने 2 नवंबर को भारतीय नौसेना के लिए CMS-03 सेटेलाइट लॉन्च किया. इस सेटेलाइट का भार 4,410 किलोग्राम था, जिससे यह भारतीय धरती से लॉन्च किया गया अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह बन गया.
जीसैट-30 सेटेलाइट. (फोटो साभार: इसरो)Indian satellites: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने रविवार को अपनी लगातार बढ़ती क्षमताओं का एक और प्रदर्शन किया. उस दिन इसरो ने एक शक्तिशाली संचार सेटेलाइट CMS-03 को लॉन्च किया, जो अब तक किसी भी भारतीय रॉकेट द्वारा ले जाया गया सबसे भारी सेटेलाइट है. 4,410 किलोग्राम का यह सेटेलाइट मुख्य रूप से भारतीय नौसेना के उद्देश्यों की पूर्ति करेगा और उसकी अंतरिक्ष-आधारित संचार और समुद्री क्षेत्र जागरूकता क्षमताओं को बढ़ाएगा.
हालांकि इसरो ने इससे भी भारी एक सेटेलाइट प्रक्षेपित किया है. 2018 में अंतरिक्ष में भेजा गया GSAT-11 का वजन 5,800 किलोग्राम से ज्यादा था. लेकिन इसमें यूरोपीय एरियन-5 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था. इसरो अपने सभी भारी सेटेलाइट, जिनका वजन 3,000 किलोग्राम से ज्यादा था, को भेजने के लिए यूरोपीय रॉकेट पर निर्भर था. CMS-03 के साथ इसरो ने LVM3 रॉकेट की भारी-भरकम क्षमता का प्रदर्शन किया है. यह वही रॉकेट है जिसने जुलाई 2023 में चंद्रयान-3 मिशन को प्रक्षेपित किया था. बहुत कम देशों के पास 2 टन से ज्यादा वजन वाले सेटेलाइट को प्रक्षेपित करने की क्षमता है.
क्यों भारी होते हैं भारतीय सेटेलाइट
भारत के संचार उपग्रह भारी-भरकम होते हैं, क्योंकि उन्हें व्यापक कवरेज, उच्च शक्ति और दीर्घकालिक सेवा जीवन जैसी आवश्यक खूबियों को एक ही अंतरिक्ष यान में समाहित करना होता है.
वजन के मुख्य कारण
विस्तृत कवरेज और बहु-बैंड क्षमता: पूरे देश और आसपास के समुद्री क्षेत्रों को सेवा प्रदान करने के लिए इन उपग्रहों को विभिन्न आवृत्ति बैंडों (C बैंड, Ku बैंड, और कभी-कभी Ka बैंड) में कई संचार चैनलों को संभालना पड़ता है.
जटिल पेलोड उपकरण: इस बहु-बैंड कार्यक्षमता को सुनिश्चित करने के लिए, उपग्रह में कई जटिल उपकरण लगे होते हैं. इनमें कई बड़े और तैनात किए जा सकने वाले एंटीना, उच्च-शक्ति वाले एम्पलीफायर, सिग्नल को नियंत्रित करने वाले वेवगाइड्स, फ़िल्टर और स्विच शामिल होते हैं. सिग्नल प्रोसेसिंग के लिए इसमें कई एनालॉग ट्रांसपोंडर या लचीले डिजिटल प्रोसेसर की भी आवश्यकता होती है, जो उपग्रह का वजन बढ़ाते हैं.
लंबी आयु और शक्ति: लंबी सेवा अवधि (आमतौर पर 10-15 वर्ष) सुनिश्चित करने के लिए उपग्रह को अतिरिक्त ईंधन ले जाना पड़ता है. कक्षा में बने रहने और आवश्यक थ्रस्ट के लिए. उच्च शक्ति वाले ट्रांसपोंडर को चलाने के लिए बड़े सौर पैनलों और बड़े बैटरी बैंक की आवश्यकता होती है, जिससे भी उपग्रह का कुल द्रव्यमान बढ़ जाता है.
भारत के पास कौन से रॉकेट
भारत के पास वर्तमान में तीन मुख्य रॉकेट हैं, जिनका उपयोग उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए किया जाता है.
पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल (PSLV) – यह इसरो का सबसे भरोसेमंद और सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला रॉकेट है. यह छोटे से मध्यम आकार के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षाओं (खासकर ध्रुवीय कक्षाओं) में स्थापित करने के लिए इस्तेमाल होता है. 1993 से अब तक इसकी 63 उड़ानें हो चुकी हैं. इसकी सफलता की दर 95.2 फीसदी से अधिक है. केवल तीन उड़ानें ही आंशिक या पूर्ण रूप से असफल रही हैं.
जियो-सिंक्रोनियस सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल (GSLV Mk II) – यह मध्यम आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर अंतरण कक्षा (GTO) में स्थापित करने के लिए डिजाइन किया गया है, जहां से उपग्रह पृथ्वी के साथ घूमते हैं. जैसे संचार उपग्रह. इसकी कुल 17 उड़ानें हुईं हैं. पिछले अगस्त के बाद 3 मिशन सफल रहे हैं. चार मिशन असफल रहे हैं, जिनमें अंतिम विफलता अगस्त 2021 में (GSLV-F10) हुई थी.
लॉन्च व्हिकल मार्क-3 (LVM3) – इसका पुराना नाम GSLV Mk III था. यह इसरो का सबसे भारी और सबसे शक्तिशाली ऑपरेशनल रॉकेट है. यह भारी संचार उपग्रहों को GTO में और बड़े पेलोड को निचली कक्षा (LEO) में ले जाने के लिए है. इसने कुल 8 उड़ानें भरी है, जिसमें चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और गगनयान मिशन की टेस्ट उड़ान भी शामिल हैं. इसकी सफलता की दर 100 फीसदी है. इस रॉकेट ने अपने सभी मिशनों में शानदार प्रदर्शन किया है और कभी निराश नहीं किया है.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 04, 2025, 18:22 IST

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