Last Updated:September 14, 2025, 22:09 IST
Opinion: भारत विदेशी सोशल मीडिया पर निर्भर है, जिससे संस्कृति और राजनीति पर असर पड़ रहा है. अब कड़ी निगरानी और देसी प्लेटफॉर्म तैयार करने की जरूरत है ताकि तकनीकी गुलामी से बचा जा सके.

नई दिल्ली: भारत के सोशल और डिजिटल मीडिया में कुछ भी भारतीय नहीं है. यह मुख्य रूप से विदेशी गूगल (यूट्यूब सहित), फेसबुक (व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम सहित) और इसके अलग अलग उपक्रमों के भरोसे है. यहां तक कि भारत के सबसे बड़े मीडिया संस्थान भी अपने डिजिटल व्यवसाय के लिए पूरी तरह से इन्हीं प्लेटफॉर्मों पर निर्भर हैं. इस कारण भारत का लगभग समूचा मीडिया इनकी गिरफ्त में आ चुका है और इनकी मनमानियों और इनके ही अनाप शनाप नियमों को झेलने के लिए विवश है. और तो और, अपने डिजिटल संचार के लिए खुद भारत सरकार की निर्भरता भी इन्हीं प्लेटफॉर्मों पर बढ़ती जा रही है.
हमने देखा है कि दुनिया के किसी भी देश में इन विदेशी कंपनियों ने निष्पक्ष होकर काम नहीं किया है और ये प्रच्छन्न तरीके से वहां की अंदरूनी राजनीति, मुद्दों और सभ्यता संस्कृति को प्रभावित करने के कुत्सित प्रयास में जुटी रहती हैं. भारत में भी ये विदेशी कंपनियां न सिर्फ भारतीय लोगों की मेहनत और निवेश की बदौलत मोटा माल कमा रही हैं, बल्कि यहां की सभ्यता संस्कृति को नष्ट करने और हमारे यहां की अंदरूनी राजनीति को प्रभावित करने के हिडेन एजेंडा पर भी लगातार काम कर रही हैं. अल्गोरिदम और कथित वैश्विक नियमों की आड़ में इनके खेल को अब बेनकाब किया जाना अनिवार्य हो गया है.
बिगड़ रहे हैं बच्चे
हालात ऐसे बन गए हैं कि ये कम्पनियां सुरसा के मुंह की तरह भारत में विस्तार पाती ही जा रही हैं, और क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या महिलाएं, क्या नौजवान सबको इनकी लत लगती जा रही है. इनकी वजह से बच्चे बिगड़ रहे हैं, और घर परिवार भी टूट रहे हैं. यहां तक कि देश की आवाज भी इनकी बंधक बन चुकी है. अब भारत जो कुछ भी बोलेगा, इन विदेशी कंपनियों के प्लेटफॉर्मों पर बोलेगा, क्योंकि उनके पास बोलने के देसी प्लेटफॉर्म धीरे धीरे समाप्त होते जा रहे हैं.
विश्वशक्ति बनने का सपना देखना अच्छी बात है. लेकिन हमारे सारे रास्ते वाया तकनीकी अक्षमता वैश्विक महाशक्तियों की आर्थिक , मानसिक और राजनीतिक गुलामी की तरफ जा रहे हैं.
इसलिए अगर भारत ने समय रहते
शिक्षा और रोजगार में गुणवत्ता को बढ़ाने पर ध्यान नहीं दिया ब्रेन ड्रेन यानी प्रतिभा पलायन पर नियंत्रण नहीं किया वैश्विक महाशक्तियों पर अपनी तकनीकी निर्भरता समाप्त नहीं कीतो 2047 तक विकसित भारत तो दूर, एक बर्बाद असहाय भारत देखने के लिए तैयार हो जाइए.
यह मत सोचिए कि भारत बहुत बड़ा देश है, और इसलिए भारत में नेपाल, बांग्लादेश जैसे हालात पैदा नहीं किए जा सकते. अभी नहीं किए जा सकते का मतलब यह कतई नहीं है कि कभी नहीं किए जा सकते. जब वैश्विक महाशक्तियों का शिकंजा तकनीकी के माध्यम से हमारे देश के हर क्षेत्र, हर कार्य में हर व्यक्ति पर कस जाएगा, तो कुछ भी हो सकता है.
इस खतरे के प्रति सचेत रहते हुए भारत सरकार को तत्काल इन तीन बातों पर गौर करने की जरूरत है –
सभी विदेशी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर कड़ी निगरानी रखी जाए और उन्हें सख्ती से रेगुलेट किया जाए. इसके लिए बाकायदा एक अलग विभाग बनाकर देश भर में हजारों लोगों को नियुक्त किए जाने की जरूरत है. संभवतः अभी तक किए गए प्रयास और बनाए गए कानून इन वैश्विक डिजिटल मगरमच्छों का काबू में करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. भारत सरकार भारतीय नागरिकों को अविलंब एक ऐसा एक्सक्लूसिव ऑनलाइन शिकायत प्लेटफॉर्म मुहैया कराए. जहां पर भारत का कोई भी नागरिक बहुत आसानी से इन कंपनियों के व्यवहार, नीतियों और मनमाने नियमों की शिकायत कर सके. यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि आज भारत के करोड़ों लोग इन प्लेटफॉर्मों पर अपना समय और पैसा खर्च कर रहे हैं. लेकिन भारतीय नागरिकों के इस मूल्यवान निवेश की सुरक्षा के प्रति इन विदेशी कंपनियों की कोई जवाबदेही नहीं है. वे जब चाहें अपने मनमाने नियमों की आड़ में किसी का भी अकाउंट कारण बताकर या बिना बताए अपने प्लेटफॉर्म से रिमूव कर सकते हैं, और इस तरह बिना किसी जवाबदेही के उसके ठोस निवेश को पल भर में बर्बाद करके उसे सड़क पर ला सकते हैं. इसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. चीन की तरह भारत भी अपने ताकतवर सोशल और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म तैयार करे. जो राजनीतिक सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक हर लिहाज से निष्पक्ष हो, ताकि इन विदेशी कंपनियों पर भारत की निर्भरता धीरे धीरे कम या समाप्त हो सके. कुछ साल पहले जब भारत सरकार की ट्विटर से तनातनी चल रही थी. तब ऐसा लगा कि वह “कू” जैसे प्लेटफॉर्म को बढ़ावा दे रही है. लेकिन “कू” के विफल रहने के पीछे कई कारणों में से एक यह भी था कि इसके बारे में ऐसा परसेप्शन बन गया था कि वास्तव में यह भाजपा के आईटी सेल का ही विस्तार है, जिसके कारण मुख्य रूप से ज़्यादातर दक्षिणपंथी विचार के लोग ही इसके साथ जुड़े.इतना तय है कि अगर समय रहते सरकार ने इन वैश्विक सोशल और डिजिटल मीडिया कंपनियों की मनमानी और सुरसामुखी विस्तार पर अंकुश नहीं लगाया, तो आगे बहुत पछताना पड़ सकता है.
अभिरंजन कुमारपत्रकार और लेखक
अभिरंजन कुमार जाने माने लेखक,पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.तीन किताबें, हजारों लेख प्रकाशित. मीडिया में लगभग 27 साल का अनुभव. संप्रति न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं.
अभिरंजन कुमार जाने माने लेखक,पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं.तीन किताबें, हजारों लेख प्रकाशित. मीडिया में लगभग 27 साल का अनुभव. संप्रति न्यूट्रल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं.
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
First Published :
September 14, 2025, 22:09 IST