Last Updated:July 15, 2025, 04:23 IST
Jamsetjee Jejeebhoy Story: 19वीं सदी के पारसी व्यापारी जमशेदजी जीजाभाई ने मुंबई में जेजे हॉस्पिटल, कला विद्यालय और अनाथालय स्थापित किए. अफीम-कपास के व्यापार से संपत्ति बनाकर उन्होंने लाखों रुपए दान किए. ब्रिटिश...और पढ़ें

जमशेदजी जीजाभाई: नाम पर हैं सड़कें, स्कूल और अस्पताल
हाइलाइट्स
जमशेदजी जीजाभाई ने मुंबई में जेजे हॉस्पिटल और कला विद्यालय स्थापित किए.अफीम-कपास व्यापार से संपत्ति बनाकर लाखों रुपए दान किए.ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत का पहला 'बैरोनेट' बनाया.नई दिल्ली: 19वीं सदी के भारत में, व्यापार और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में नाम कमाना आसान नहीं था. तब एक अनाथ पारसी बालक ने अपनी मेहनत, दूरदृष्टि और परोपकारिता से इतिहास रच दिया. उसका नाम था जमशेदजी जीजाभाई. 15 जुलाई 1783 को बंबई (अब मुंबई) में एक साधारण पारसी परिवार में जन्मे जमशेदजी, बचपन में ही माता-पिता को खो बैठे. उनकी परवरिश मामा ने की. आर्थिक तंगी और औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद उन्होंने मेहनत और समझदारी से जीवन को दिशा दी.
महज 15 साल की उम्र में व्यापार में कदम रखा. शुरुआत मामा के साथ की, जहां उन्होंने अफीम और कपास के व्यापार में अनुभव हासिल किया. कुछ ही सालों में उन्होंने अपनी कंपनी खड़ी कर ली और चीन जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजार तक व्यापार फैलाया. जल्द ही वे बॉम्बे (अब मुंबई) के सबसे प्रतिष्ठित व्यापारियों में शुमार हो गए.
व्यापार से परोपकार तक
लेकिन जमशेदजी की पहचान सिर्फ एक सफल व्यापारी के रूप में नहीं बनी. उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा समाज सेवा को समर्पित कर दिया. उनकी सबसे बड़ी देन मानी जाती है- जेजे हॉस्पिटल और जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, जिनकी स्थापना के लिए उन्होंने भारी धनराशि दान दी. उन्होंने पारसी समुदाय के साथ-साथ अन्य धर्मों और जातियों के लिए भी धर्मशालाएं, स्कूल, अनाथालय और शिक्षण संस्थानों की नींव रखी. उनके दान की राशि उस दौर में लाखों रुपए में थी. एक ऐसा योगदान जो आज के करोड़ों के बराबर माना जाता है.
ब्रिटिश शासन से मिला सम्मान
उनकी सेवाओं के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने भी उन्हें सम्मानित किया. 1842 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी गई और 1857 में वे भारत के पहले व्यक्ति बने जिन्हें ‘बैरोनेट’ की उपाधि मिली. यह उपाधि ब्रिटिश साम्राज्य में एक विशिष्ट सामाजिक और राजनीतिक दर्जे का प्रतीक थी. इसके अलावा, उन्हें मुंबई के जस्टिस ऑफ पीस और विधान परिषद सदस्य जैसे पदों से भी नवाजा गया.
एक प्रेरणादायक विरासत
14 अप्रैल 1859 को जब जमशेदजी का निधन हुआ, तब वे सिर्फ एक धनी व्यापारी नहीं थे, वे एक आंदोलन बन चुके थे. उनका जीवन उस दर्शन का प्रतीक है जिसमें व्यापार सिर्फ लाभ के लिए नहीं, समाज के निर्माण के लिए होता है.
आज भी मुंबई की कई सड़कों, संस्थानों और इमारतों पर उनका नाम अंकित है. जमशेदजी जीजाभाई उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, जिसने न केवल व्यापार से भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, बल्कि अपने संसाधनों से सामाजिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य को भी सशक्त किया.
उनकी कहानी आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि साधारण परिस्थिति से उठकर भी असाधारण इतिहास रचा जा सकता है, बशर्ते इरादे नेक और उद्देश्य समाजहित में हों.
Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें
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New Delhi,Delhi