Last Updated:November 26, 2025, 16:55 IST
Lalu Yadav News : राबड़ी देवी को आवंटित बंगला खाली कराने का आदेश ऐसे समय सामने आया है जब लालू परिवार पहले से ही कठिन दौर से गुजर रहा है. विधानसभा चुनाव में राजद को मिली करारी हार और एनडीए की 202 सीटों की ऐतिहासिक जीत ने विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है. इस बीच लालू प्रसाद यादव कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं. न बयान, न ट्वीट, न मीडिया से संवाद-उनका मौन अब राजनीतिक चर्चा का विषय बन गया है. यह उस वाकये की याद दिला रहा था जब लालू यादव अज्ञातवास में चले गए थे. क्या है यह कहानी आइए जानते हैं.
लालू यादव की राजनीति में वापसी या विराम 2025 बिहार चुनाव पर असर.पटना. बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक दौर हैं-जहां सत्ता, संघर्ष, विवाद और जनसमर्थन चारों बराबर मौजूद रहे. कभी बिहार की राजनीति पर निर्विवाद दबदबा रखने वाले लालू आज भले ही कानूनी दायरे और जेल की सज़ा के बीच सीमित हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा ऐसी है जिसमें उतार-चढ़ाव, अडिगता और अप्रत्याशित मोड़ हमेशा साथ रहे हैं.वर्तमान बिहार की राजनीति में एक बार फिर लालू यादव और उनका परिवार केंद्र में है. बिहार चुनाव में हार की पीड़ा से जूझ रहा यह परिवार इस बार कारण पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के 10 सर्कुलर रोड स्थित सरकारी आवास को खाली करने के आदेश से दुखी है. सरकार का कहना है कि यह प्रक्रिया नियम के तहत है, लेकिन राजद इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है. इस आदेश के साथ ही राजनीतिक माहौल और संवेदनशील हो गया है, क्योंकि इस समय लालू परिवार पहले से ही कई मोर्चों पर चुनौती झेल रहा है.
लालू यदव का ‘मौन’ चर्चा में क्यों?
बिहार विधानसभा चुनाव में राजद की करारी हार और एनडीए की 202 सीटों वाली वापसी ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर बड़ा सवाल खड़ा किया है. इसके साथ ही रोहिणी आचार्य और तेजस्वी यादव के बीच असामान्य रिश्ते, तेज प्रताप यादव का पहले से परिवार से राजनीतिक दूरी और कानूनी मामलों-आईआरसीटीसी घोटाला, लैंड-फॉर-जॉब केस का दबाव, परिवार पर अतिरिक्त बोझ बन चुका है. अब नया बंगला आवंटन मामले ने राजनीतिक गलियारों में तेज हलचल पैदा कर दी है और चर्चा फिर इस सवाल पर टिक रही है-क्या 2025 की स्थिति वही कहानी दोहरा रही है जो 2010 में भी देखने को मिली थी?
क्या फिर वही 2010 वाला दौर ?
लालू यादव इस विवाद पर चुप हैं. न मीडिया में बयान, न कोई प्रतिक्रिया. उनके करीबी बताते हैं कि वह थके हुए, निराश और सार्वजनिक बातचीत से दूर हैं. यह स्थिति उन्हें जानने वालों को 2010 की याद दिला रही है-जब चुनावी हार के बाद वह एक महीने से ज्यादा समय तक ‘अज्ञातवास’ में चले गए थे. दरअसल, 1990 से 2005 तक सत्ता के केंद्र में रहने वाले लालू यादव के लिए 2010 की हार बड़ा झटका थी. उस समय जेडीयू और बीजेपी ने 243 में से 206 सीटें जीती थीं और राजद केवल 22 सीटों पर सिमट गई थी. हार के दो दिन बाद ही लालू यादव अचानक सार्वजनिक जीवन से गायब हो गए थे. पार्टी नेता और मीडिया हफ्तों तक उनकी खोज में लगे रहे. केवल दो लोगों—राजद के तत्कालीन करीबी नेता रामकृपाल यादव और एक वरिष्ठ पत्रकार को उनकी लोकेशन पता थी. बाद में राबड़ी देवी की पहल पर दोनों दिल्ली पहुंचे और लालू को राजनीति में वापस आने के लिए राजी किया.
इतिहास दोहराएगा या बदलेगा?
आज स्थिति 2010 से अलग भी है और बेहद समान भी. तब हार थी और आज भी हार है. तब कानूनी जांचें थीं आज भी हैं. तब परिवार में राजनीतिक असहमति नाम की चीज नहीं थी मगर अब यह और तीखी है. मगर तब लालू जवान थे, आज बीमार और राजनीति से थके हुए हैं. इस बीच बंगला खाली कराने का आदेश सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि राजनीतिक संकेतों की भाषा भी माना जा रहा है.। सवाल यह है-क्या यह संदेश विपक्ष के लिए है या राजद परिवार के लिए? राजनीति के जानकारों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह मामला पहले से कमजोर होती राजद राजनीति पर और असर डालेगा.
क्या 2025 फिर 2010 दोहरा रहा है?
राजनीति के जानकार कहते हैं कि लालू यादव का राजनीतिक सफर कई मायनों में अनोखा है, जहां सत्ता खोने के बाद भी जनाधार नहीं टूटा, आलोचनाओं के बीच भी समर्थकों का विश्वास बना रहा और हार के बाद भी वापसी की उम्मीद हमेशा ज़िंदा रही. 2010 का वह दौर, जब वे राजनीतिक सदमे में चुपचाप साइडलाइन हो गए थे, यह साबित करता है कि सबसे मजबूत नेता भी कभी-कभी खुद को नए सिरे से समझने के लिए समय लेते हैं. 2015 वापसी की और फिर दौर बदला है, अब 2025 में फिर 2010 का दौर आ गया!
लालू के राजनीतिक मौन पर उठे सवाल!
2025 में आज जब बिहार की राजनीति नए समीकरण गढ़ रही है, एक सवाल फिर उभर रहा है-क्या लालू फिर किसी रूप में वापसी कर सकते हैं या उम्र के इस पड़ाव पर इतिहास 2010 की तरह उनके मौन को राजनीतिक विराम मान चुका है? समय इसका जवाब जरूर देगा, लेकिन एक बात तय है लालू यादव बिहार की राजनीति की कहानी में सिर्फ एक अध्याय नहीं, बल्कि पूरी किताब हैं. कहा जाता है कि 2010 में अंत में राबड़ी देवी ने ही उन्हें राजनीतिक मंच पर वापस लाने में भूमिका निभाई थी. लेकिन सवाल यह कि क्या वह इस बार भी वैसा कर पाएंगी?
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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First Published :
November 26, 2025, 16:55 IST

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