सियाचिन में सेना की पेट्रोलिंग पार्टी एवलॉंच की चपेट में, 3 जवानों की मौत

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Last Updated:September 09, 2025, 20:09 IST

SIACHEN GLACIER ACCIDENT:15000 फीट से ऊंचाई वाले इलाकों को सुपर हाई एल्टीट्यूड में माना जाता है, जिसमें सियाचिन सहित नॉर्थ सिक्किम, कारगिल, बटालिक की पहाड़ियां आती हैं. जितने भी सैनिकों की इन जगह पर तैनाती होती...और पढ़ें

सियाचिन में सेना की पेट्रोलिंग पार्टी एवलॉंच की चपेट में, 3 जवानों की मौतसियाचिन में एवलॉंच में तीन जवानों की मौत

SIACHEN GLACIER ACCIDENT: दुनिया के सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन में 40 साल से भारतीय सेना दो दुश्मनों से लड़ रही है, पहला है मौसम और दूसरा है पाकिस्तान की साजिश. सर्दियों में तापमान माइनस 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. गर्मियों में 10 डिग्री से ज्यादा नहीं चढ़ता. भारतीय सेना लगातार अपनी सीमाओं की सुरक्षा में जुटी रहती है और खतरनाक मौसम का सामना करती रहती है. सियाचिन के सेंट्रल ग्लेशियर में 7 सितंबर की शाम को सेना की टुकड़ी पेट्रोलिंग पर निकली थी, लेकिन पूरी टुकड़ी एवलॉंच की चपेट में आ गई. सेना ने तुरंत राहत बचाव के लिए रेस्क्यू टीम को भेजा. मौके पर पहुंचकर रेस्क्यू टीम ने बर्फ में दबे पेट्रोलिंग पार्टी को निकालना शुरू किया. कुछ देर में पेट्रोलिंग पार्टी को बर्फ के नीचे से निकाल लिया गया. लेकिन 1 सिपाही मोहित कुमार और दो अग्निवीर नीरज कुमार चौधरी और दाभी राकेश देवाभाई गंभीर रूप से घायल हो गए थे. तीनों को जल्दी से पहले बेस कैंप और फिर आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया. सेना के डॉक्टरों ने उनकी जान बचाने की खूब कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सके और 9 सितंबर की सुबह उन्हें मृत घोषित कर दिया.

सियाचिन में ड्यूटी करना है चुनौतीपूर्ण
सर्दियां साल में 3 महीने से ज्यादा की नहीं होती. इसमें ही पूरा उत्तर भारत ठिठुर जाता है. यहां तापमान कभी माइनस में नहीं जाता. इसके बावजूद लोग ठंड को कोसते हैं. लेकिन सियाचिन में तो तापमान गिरकर माइनस 40 से 50 डिग्री तक पहुंच जाता है. हवा उसे माइनस 5 से माइनस 10 डिग्री तक और गिरा देती है. जी हां, यह सियाचिन है, दुनिया का सबसे ऊंचा रणक्षेत्र. यहां 1984 से भारतीय सेना ऑपरेशन मेघदूत के तहत लगातार ग्लेशियर पर तैनात है. हर वक्त एवलॉंच का खतरा बना रहता है. भारतीय सेना के सैनिकों की ग्लेशियर में तैनाती तीन महीने की होती है.दिन में सूरज निकलने के बाद गर्मी से हिमस्खलन और ग्लेशियर में दरारें खुलने का खतरा बढ़ जाता है. सभी महत्वपूर्ण काम जैसे कि लिंक ड्यूटी यानी पोस्ट पर बेस कैंप से सामान लाना ले जाना, पेट्रोलिंग करना सुबह सूरज निकलने से पहले ही पूरा करना होता है. बर्फबारी के वक्त तो पोस्ट पर रात भर जागकर बर्फ को हटाते रहना पड़ता है. रात को सोते वक्त इसका भी ध्यान रखना होता है कि बुखारी तो नहीं जल रही है, उससे निकलने वाली गैस जानलेवा हो सकती है.

ऐसे होती है दिन की शुरूआत
सियाचिन में सैनिकों के रोज के दिन की शुरुआत होती है हैंड परेड और फुट परेड से. उन्हें हाथों और पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना पड़ता है ताकि ब्लड सर्कुलेशन ठीक हो सके. टेंट से बाहर निकलने से पहले स्पेशल विंटर क्लोदिंग को लेयर में पहनकर ही बाहर आना होता है. डाउन फेदर की जैकेट, लोअर, चेहरे पर धूप ना लगे इसके लिए पूरे मुंह को ढका जाता है. आंखों पर अल्ट्रा वायलेट रोशनी से बचाव के लिए चश्मा पहनना जरूरी होता है. सूरज की रोशनी बर्फ पर पड़कर आंखों पर आती है जो स्नो ब्लाइंडनेस का कारण बन जाती है. बिना दस्ताने के अगर किसी भी धातु को हाथ लगाया तो चमड़ी उस पर चिपक जाती है. मेटल बाइट से बचने के लिए बड़ी सावधानी से अपने हथियारों का इस्तेमाल और देखभाल करना पड़ता है. यहां तक कि शेव भी नहीं की जाती है सियाचिन में.

मर जाती है भूख-प्यास
सियाचिन में सबसे जरूरी है अपनी सेहत का ख्याल रखना. ग्लेशियर में तैनात सैनिकों की भूख मर जाती है. ठंड की वजह से पानी की प्यास खत्म हो जाती है. शरीर में न्यूट्रीशन की कमी ना हो इसका खूब ख्याल रखना होता है. यहां हाई कैलोरी वाली डाइट लेनी जरूरी है. सेना यहां के लिए खास स्पेशल राशन सैनिकों को देती है. ऑक्सीजन कम है तो पाचन तंत्र पर बुरा असर पड़ता है. डीहाइड्रेशन से बचाने के लिए गर्म पानी या जूस पीते रहना जरूरी है. सामन्या तौर पर लोग रात को सोते हैं और दिन में काम करते हैं. सियाचिन में इसका उलटा है. यहां रात में सारे काम निपटाए जाते हैं.

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First Published :

September 09, 2025, 20:09 IST

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