Last Updated:July 24, 2025, 19:33 IST
हाल ही में बॉक्स ऑफिस पर आई सैयारा मूवी को देखकर युवाओं के रोने और गश खाकर गिर पड़ने के दर्जनों वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इन्हें लेकर कुछ लोग जहां युवाओं का मजाक उड़े हैं, बल्कि बहुत सारे लोग इन...और पढ़ें

हाइलाइट्स
सैयारा मूवी देखकर युवाओं के रोने के वीडियो वायरल हो रहे हैं.मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, यह फिल्म नहीं, अतीत का दर्द है.फिल्म का सुखद अंत असल जिंदगी से मेल नहीं खाने पर गहरी प्रतिक्रिया होती है.हाल ही में रिलीज हुई बॉलीवुड मूवी सैयारा को देखकर रोते, बिलखते और पछाड़ खाते युवाओं के वीडियोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं.इन्हें लेकर सोशल मीडिया पर अच्छी-खासी बहस भी चल रही है. जहां कुछ लोग युवाओं की इस प्रतिक्रिया को मूवी के प्लॉट से भावनात्मक जुड़ाव मान रहे हैं वहीं कुछ लोग इसे युवाओं का टोटल ड्रामा बता रहे हैं.फिर भी सवाल उठता है कि इस रोमांटिक लव स्टोरी का अंत भी काफी सुखद है, इसके बावजूद ऐसी क्या वजह है कि युवाओं की ऐसी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.
इस पूरे घटनाक्रम पर अब सबसे सटीक जवाब अब मनोवैज्ञानिकों ने दिया है.ड्रग टुडे ऑनलाइन से बातचीत में दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजी की वरिष्ठ सलाहकार डॉ.आरती आनंद का कहना है कि युवा क्यों रो रहे हैं? इसका जवाब शायद फिल्म में बिल्कुल भी नहीं है. यह फिल्म नहीं, अतीत है.ये आंसू स्क्रीन पर जो हो रहा है उससे कम और दर्शकों के अपने अतीत में जो कुछ छिपा है उससे ज्यादा निकल रहे हैं.
डॉ. आनंद बताती हैं, ‘ये भावनाएं अवचेतन में पहले से मौजूद अनसुलझे अनुभवों से आती हैं. जब लोग ऐसी फिल्म देखते हैं जो उनके अपने जीवन के कुछ हिस्सों को दर्शाती है, तो वे यादें फिर से उभर सकती हैं और एक गहरी प्रतिक्रिया को जन्म दे सकती हैं.
जब सुखद अंत बेमेल लगता है
‘हम में से कई लोग फिल्मी किरदारों से जुड़ाव महसूस करते हैं .हम उनकी कहानियों में अपनी कहानियों के कुछ अंश देखते हैं लेकिन जब फिल्म का अंत सकारात्मक होता है और हमारी असल ज़िंदगी की कहानी ऐसी नहीं होती तो यह हमें आहत, चिंतित या यहां तक कि ठगा हुआ महसूस करा सकता है. लोग सोच सकते हैं,मुझे ऐसा अंत क्यों नहीं मिला? मेरे लिए कोई ऐसा क्यों नहीं था? यह विरोधाभास उन्हें अपने अतीत का शिकार महसूस करा सकता है.’
अगर ऐसा हो तो आपको क्या करना चाहिए?
डॉ. आनंद जोर देकर कहती हैं,’ऐसे गंभीर ट्रिगर्स का अनुभव गहरे, अनसुलझे भावनात्मक दर्द का संकेत हो सकता है.वह कहती हैं, ‘अगर किसी को फिल्म देखते समय घबराहट के दौरे पड़ते हैं या बहुत ज़्यादा उदासी महसूस होती है, तो उन्हें काउंसलिंग पर विचार करना चाहिए. बात फिल्म की नहीं है, बात उस दर्द से उबरने की है जिससे आप गुज़रे हैं.’
प्रिया गौतमSenior Correspondent
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ और रियल एस...और पढ़ें
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ और रियल एस...
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