सो जा बेटा, नहीं तो… गैंगस्‍टर से पॉलिटिशियन बने गवली की रिहाई पर बोले SC जज

1 month ago

हाइलाइट्स

गवली शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा हैहाईकोर्ट ने गवली को 10 जनवरी, 2006 की सजा माफी नीति के आधार पर राहत प्रदान की थी.तर्क दिया गया कि 2012 में जब सजा सुनाई गई तब 2015 की सजा माफी नीति आई ही नहीं थी.

नई दिल्‍ली. फिल्म ‘शोले’ के डायलॉग ‘‘सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जायेगा’’ का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली की समय से पहले रिहाई पर रोक लगाने संबधी अपने पहले के आदेश की ‘पुष्टि’ की. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की बेंच ने बंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के पांच अप्रैल के आदेश के अमल पर रोक लगाते हुए तीन जून के अपने आदेश को बरकरार रखा और अपीलों पर सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय की.

हाईकोर्ट ने राज्य प्राधिकारियों को 2006 की सजा माफी नीति के तहत गवली की समय पूर्व रिहाई के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया था. पीठ ने कहा, ‘‘हम कोई अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं हैं. हमारे द्वारा दिये गये अंतरिम रोक संबंधी आदेश की पुष्टि की जाती है. अपील की सुनवाई 20 नवंबर को होगी.’’ शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजा ठाकरे ने दलील दी कि गवली के खिलाफ हत्या के लगभग 10 मामलों सहित 46 से अधिक मामले दर्ज हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील से पूछा कि क्या गवली ने पिछले पांच से आठ वर्षों में कुछ किया है. ठाकरे ने जवाब दिया कि गैंगस्टर 17 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे है.

यह भी पढ़ें:- स्‍वदेशी बुलेट ट्रेन के लिए हो जाएं तैयार! संसद में रेल मंत्री अश्विनी वैष्‍णव बोले- तेजी से चल रहा काम…

हाईकोर्ट ने 2006 सजा माफी नीति के तहत दी थी राहत…
हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को सजा में छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है. यह 2015 की नीति के अनुसार है.  गवली की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन ने कहा कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दे दी गई है और बम्बई हाईकोर्ट द्वारा समयपूर्व रिहाई देने का निर्णय सही था. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी सजा माफी नीति (2015 में) बदलाव किया है. उन्होंने कहा कि क्योंकि गवली को 2009 में दोषी ठहराया गया था, इसलिए 2006 की नीति लागू होगी. यह नीति उम्र और शारीरिक दुर्बलता के आधार पर छूट की अनुमति देती है.

सो जा नहीं तो गब्‍बर आ जाएगा…
इस पर बेंच ने गवली की वकील से कहा, ‘‘लेकिन मैडम आपको पता होना चाहिए कि हर कोई अरुण गवली नहीं होता है. ‘शोले’ फिल्म में एक मशहूर डायलॉग है, जिसमें कहा जाता है कि ‘सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा’, ऐसा ही कुछ मामला यहां भी है.’’ गवली की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि वह दिल और फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहा है. इस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि ऐसा 40 वर्षों तक लगातार धूम्रपान करने के कारण हुआ है.

धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं… 
रामकृष्णन ने जवाब दिया, ‘‘तो क्या हुआ, आप इस वजह से उसे अंदर नहीं रख सकते. उस पर धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं चल रहा है. सलाहकार बोर्ड ने प्रमाणित किया है कि वह अपनी उम्र के हिसाब से कमजोर है, इसलिए 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उस समय उसे दोषी ठहराया गया था. वर्ष 2015 की बाद की नीति लागू नहीं हो सकती.’’ सुप्रीम कोर्ट ने तीन जून को बंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के पांच अप्रैल के आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी जिसने राज्य के अधिकारियों को गवली की समय पूर्व रिहाई के आवेदन पर 2006 की सजा माफी नीति के तहत विचार करने का आदेश दिया था.

Tags: Maharashtra News, Supreme Court

FIRST PUBLISHED :

July 31, 2024, 18:01 IST

Read Full Article at Source