Last Updated:March 18, 2025, 19:03 IST
Nashik Rangpanchami: नासिक में होली के पांच दिन बाद रंगपंचमी मनाई जाती है, जिसे रहाड रंगपंचमी कहते हैं. इसमें लोग रहाड़ियों में कूदते हैं और प्राकृतिक रंगों से भीगते हैं.

नासिक की अनोखी रहाड रंगपंचमी का इतिहास और परंपरा.
हाइलाइट्स
नासिक में होली के पांच दिन बाद रंगपंचमी मनाई जाती है.रहाड़ रंगपंचमी में लोग 10-15 फीट गहरी टंकियों में कूदते हैं.रहाड़ रंगपंचमी का इतिहास 300 साल पुराना है.नासिक: पूरे भारत में दिवाली के अलावा सबसे ज्यादा उत्साह से मनाया जाने वाला त्योहार होली है और इसके अगले दिन धुलिवंदन खेला जाता है. पूरे देश में होली के अगले दिन धुलिवंदन पर रंग उड़ाए जाते हैं. लेकिन पूरे देश में, खासकर महाराष्ट्र में, एक ऐसा शहर है जहां होली के पांच दिन बाद यानी रंगपंचमी पर रंग उड़ाए जाते हैं.
नासिक में रंगपंचमी एक अनोखे तरीके से मनाई जाती है. इसे रहाड रंगपंचमी के नाम से जाना जाता है. इसके लिए सभी नासिकवासी बेसब्री से इंतजार करते हैं, लेकिन इस अनोखे उत्सव का इतिहास क्या है? जिसे अनुभव करने के लिए खास विदेश से लोग आते हैं? चलिए जानते हैं.
नासिक की रहाड रंगपंचमी क्या होती है?
नासिक में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी खेलने की पेशवेकालीन परंपरा है. इस परंपरा के अनुसार नासिक की पेशवेकालीन रहाड़ियां खोली जाती हैं. रहाड़ियां यानी जमीन के नीचे बनी छोटी टंकियां. लगभग 10-12 फीट चौड़ी और 10-15 फीट गहरी इन टंकियों को पत्थर और चूना का उपयोग करके बनाया जाता था.
रंगपंचमी के दिन लोग इन रहाड़ियों में कूदते हैं, जिससे व्यक्ति पूरी तरह भीग जाता है. इसे धप्पा मारना कहा जाता है. यह परंपरा लगभग 300 साल से चली आ रही है. रंगपंचमी के अलावा इन रहाड़ियों को बाकी समय बंद रखा जाता है और रंगपंचमी के कुछ दिन पहले खोला जाता है.
इन रहाड़ियों में रंग प्राकृतिक पत्तों और फूलों से बनाया जाता है. इसलिए इन रंगों से कोई खतरा नहीं होता. शहर में कई रहाड़ियां होने के बावजूद केवल तीन ही खोली जाती हैं. और हर रहाड़ी का रंग तय होता है. शनि चौक की रहाड़ी गहरे गुलाबी, दिल्ली दरवाजा क्षेत्र की रहाड़ी केसरिया, और तिवंधा की रहाड़ी पीले रंग की होती है. इससे नासिक की रंगपंचमी का एक अनोखा और अलग ही रंगीन अनुभव मिलता है.
पहलवानों के शक्ति प्रदर्शन की जगह
पहले के समय में रहाड़ियां पहलवानों के शक्ति प्रदर्शन की जगह मानी जाती थीं. यहां कुश्ती के मुकाबले होते थे, और उसी दौरान होने वाली मारपीट से राडा शब्द प्रचलित हुआ होगा. इसी कारण रहाड़ शब्द नासिकवासियों के दिल में हमेशा के लिए बस गया. खास बात यह है कि रहाड़ संस्कृति आज भी केवल नासिक में ही जीवित है. इस साल की रंगपंचमी के लिए नासिक की रहाड़ियां तैयार हो गई हैं.
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नासिक की यह अनोखी रंगपंचमी केवल महाराष्ट्र या भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है. इसलिए हर साल कई विदेशी खास इस रंगपंचमी का आनंद लेने आते हैं.
First Published :
March 18, 2025, 18:54 IST