15 साल तक न्याय की चौखट पर संघर्ष, आख़िरकार मर चुके पति को दिलाया इंसाफ़

2 days ago

Last Updated:August 17, 2025, 12:55 IST

पत्नी की 15 साल की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिवंगत क्लर्क मोहनचंद्रन एन.के. को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि मामले में रिश्वत की मांग साबित नहीं हुई और आरोपी को संदेह का लाभ म...और पढ़ें

15 साल तक न्याय की चौखट पर संघर्ष, आख़िरकार मर चुके पति को दिलाया इंसाफ़सुप्रीम कोर्ट ने दिवंगत क्लर्क मोहनचंद्रन एन.के. को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया

Delhi: इंसाफ के लिए एक पत्नी की 15 साल लंबी जद्दोजहद आखिरकार पूरी हुई. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में मिनी नामक महिला के दिवंगत पति मोहनचंद्रन एन.के. को भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि इस पूरे मामले में रिश्वत की मांग साबित नहीं हुई और आरोपी की सफाई को निचली अदालतों ने नजरअंदाज़ कर दिया.

क्या था पूरा मामला?
दरअसल, मामला साल 2003 का है. उस समय मोहनचंद्रन तिरुवनंतपुरम पासपोर्ट कार्यालय में लोअर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत थे. उन पर आरोप था कि उन्होंने एक आवेदक से पासपोर्ट आवेदन को जल्दी पास करने के लिए 500 रुपये रिश्वत मांगी. CBI ने दावा किया कि उन्होंने शिकायतकर्ता से 1000 रुपये पासपोर्ट फीस के अलावा 200 रुपये अतिरिक्त अपने घर पर जमा कराने के लिए कहा. इसके बाद सीबीआई ने जाल बिछाया और 1200 की राशि उनके पास से बरामद की. इसमें 1000 रुपये फीस और 200 रुपये अतिरिक्त थे.

ट्रायल के दौरान हुई पति की मौत
इस बरामदगी के आधार पर मोहनचंद्रन के खिलाफ केस चला. साल 2010 में एर्नाकुलम की ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और एक साल की सजा सुनाई. इसके बाद जनवरी 2020 में केरल हाईकोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा. लेकिन इस बीच मोहनचंद्रन की मौत हो गई. इसके बावजूद उनकी पत्नी मिनी ने हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की.

पत्नी ने लड़ी न्याय की लड़ाई
अपनी अपील में मिनी ने दलील दी कि यह पूरा मामला सिर्फ पैसे की बरामदगी पर आधारित है, जबकि रिश्वत मांगने का कोई ठोस सबूत नहीं है. उन्होंने कहा कि 1200 रुपये में से 1000 रुपये तो पासपोर्ट की तयशुदा फीस थी और जो 200 रुपये अतिरिक्त बरामद हुए, उनका आरोपी को कोई ज्ञान नहीं था. उनका कहना था कि यह 200 रुपये शिकायतकर्ता ने दो 500 रुपये के बीच छुपा दिए थे और आरोपी यह पैसे गिन तक नहीं पाए.

SC ने माना निर्दोष
सुप्रीम कोर्ट ने मिनी की दलीलों को गंभीरता से सुना और 14 अगस्त को अपना फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में सबसे अहम बात यह साबित करना होता है कि आरोपी ने रिश्वत की मांग की थी. इस मामले में शिकायतकर्ता ने खुद ट्रायल के दौरान कहा कि उसने पैसे देने की बात का समर्थन नहीं किया. ऐसे में केवल पैसे की बरामदगी के आधार पर आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

लोअल कोर्ट को लगाई लताड़
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी की सफाई यथार्थवादी और तार्किक है. अगर आरोपी कह रहा है कि उसे अतिरिक्त 200 रुपये का पता नहीं था और यह नोट गिनने से पहले छिपा दिए गए थे, तो इस दलील को निचली अदालतों द्वारा नजरअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए था. अदालत ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए.

मरणोपरांत मिला न्याय
अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मोहनचंद्रन को मरणोपरांत (Posthumous) बरी कर दिया और पत्नी मिनी की लंबी लड़ाई को जीत में बदल दिया. यह फैसला न केवल मिनी के लिए राहत लेकर आया, बल्कि यह भी संदेश देता है कि न्याय भले देर से मिले, लेकिन अगर सबूत कमजोर हों और आरोपी की सफाई तार्किक हो, तो अदालत दोषमुक्ति देने से पीछे नहीं हटेगी.

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First Published :

August 17, 2025, 12:55 IST

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