7 साल की बेटी ने मां को दिलाया इंसाफ, पिता को जेल, SC बोला- बच्चे मन के सच्चे

1 month ago

Last Updated:February 26, 2025, 07:20 IST

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों की गवाही भी मान्य होगी, अगर वे गवाही देने योग्य हैं. सात साल की बच्ची की गवाही पर एक व्यक्ति को पत्नी की हत्या का दोषी ठहराया गया.

7 साल की बेटी ने मां को दिलाया इंसाफ, पिता को जेल, SC बोला- बच्चे मन के सच्चे

सुप्रीम कोर्ट: गवाह की उम्र तय नहीं, बच्चे की गवाही भी मान्य.

नई दिल्ली: बच्चों को अब बच्चा समझने की गलती कभी मत करिएगा. अदालती कार्यवाहियों में भी अब बच्चों की बातें मानी जाएंगी. खुद सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं. उनकी गवाही भी अब वैलिड मानी जाएगी. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई बच्चा गवाही देने योग्य है तो उसकी गवाही भी उतनी ही मान्य होगी, जितनी कि किसी और गवाह की. गवाह की उम्र तय नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सात साल की बच्ची की गवाही के आधार पर हत्यारे शख्स को उसकी पत्नी की हत्या का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है. बच्ची ने अपनी मां की हत्या होते हुए देखी थी.

टीओआई की खबर के मुताबिक, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था. हाईकोर्ट ने बच्ची के बयान को नहीं माना था और उसे खारिज कर दिया था. बच्ची उस वक्त घर में ही मौजूद थी, जब उसकी मां की हत्या हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम में गवाह के लिए कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं है और बच्चे की गवाही को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा, ‘बच्चे के बयान का आकलन करते समय अदालत को केवल यह सावधानी बरतनी चाहिए कि बच्चा विश्वसनीय हो क्योंकि बच्चे आसानी से बहकावे में आ सकते हैं.’ बेंच ने कहा, ‘हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि थोड़ी सी भी विसंगति होने पर बच्चे के बयान को सिरे से खारिज कर दिया जाए. जरूरत इस बात की है कि बच्चे की गवाही का मूल्यांकन बहुत ही सावधानी से किया जाए.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘बच्चे की गवाही की सराहना करते हुए अदालतों को यह आकलन करना आवश्यक है कि क्या गवाह का बयान उसकी स्वेच्छा से दिया गया है या वह किसी और के प्रभाव में है और क्या गवाही विश्वास जगाती है.’

कोर्ट ने नियम का हवाला दिया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है. इसलिए ट्रायल कोर्ट को बयान दर्ज करते समय इस पहलू के प्रति सतर्क रहना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि बच्चे के बयान पर भरोसा करने से पहले उसकी पुष्टि की जाए. पुष्टि पर जोर केवल सावधानी और विवेक का एक उपाय है. इसका इस्तेमाल अदालतें मामले के खास तथ्यों और परिस्थितियों में जरूरी होने पर कर सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘बच्चों को गवाह के तौर पर खतरनाक माना जाता है क्योंकि वे लचीले होते हैं और आसानी से प्रभावित हो सकते हैं. उन्हें आसानी से ढाला जा सकता है और इस तरह अदालतों को ट्यूटरिंग (बहकाना) की संभावना से इनकार करना चाहिए. अगर अदालतें पूरी जांच पड़ताल के बाद पाती हैं कि न तो कोई ट्यूटरिंग हुई है और न ही अभियोजन पक्ष द्वारा बच्चे को गवाह के तौर पर इस्तेमाल करने की कोई कोशिश की गई है, तो अदालतों को आरोपी के अपराध या निर्दोषता का फैसला करते वक्त ऐसे गवाह की विश्वसनीय गवाही पर भरोसा करना चाहिए. इस संबंध में आरोपी की ओर से कोई आरोप नहीं लगाए जाने पर, बच्चे को ट्यूटर किया गया है या नहीं, इसका अनुमान उसके बयान की सामग्री से लगाया जा सकता है.’

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Delhi,Delhi,Delhi

First Published :

February 26, 2025, 07:20 IST

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