Last Updated:October 07, 2025, 13:58 IST
TATA vs SP Group : टाटा समूह के सबसे पुराने हिस्सेदारी शापूरजी पैलोनजी ग्रुप की तकरार एक बार फिर सामने आ गई है. ऐसे में टाटा समूह एसपी ग्रुप को बाहर निकालने के विकल्पों पर विचार कर रहा है, लेकिन यह रास्ता इतना आसान नजर नहीं आता है.

नई दिल्ली. 157 साल पुराने देश के सबसे बड़े और भरोसेमंद बिजनेस समूह टाटा ग्रुप में इन दिनों काफी कुछ घट रहा है. वेटरन कारोबारी रतन टाटा के पिछले साल निधन के बाद से टाटा समूह में एक के बाद एक घटनाक्रम और विवाद सामने आता रहा है. चाहे सरकार की ओर से पहली बार समूह के विवाद सुलझाने में हस्तक्षेप की बात हो या फिर टाटा और मिस्त्री परिवार के बीच जारी खींचतान, विवादों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस बीच टाटा समूह ने एक बड़ा फैसला करते हुए अपने सबसे बडे़ सहयोगी शापूरजी पैलोनजी ग्रुप को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी में जुट गया है.
शापूजी पैलोनजी ग्रुज जिसे एसपी ग्रुप के नाम से भी जाना है, टाटा की सबसे बड़ी और पुरानी हिस्सेदार है. एसपी ग्रुप की टाटा समूह में 18.37 फीसदी की हिस्सेदारी है, जो साल 1936 से चली आ रही है. 80 साल तक दोनों कारोबारी समूह के बीच रिश्ते काफी मधुर रहे, लेकिन साल 2016 में साइरस मिस्त्री और रतन टाटा के बीच विवाद होने के बाद इसमें खटास आ गई. विवाद का यह सिलासिला कंपनी ट्रिब्यूनल के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट तक गया, जहां टाटा को जीत मिली. लेकिन, 10 साल बाद दोनों परिवारों का विवाद एक बार फिर नोएल टाटा और मेहली मिस्त्री के रूप में सामने आ गया है. लिहाजा टाटा समूह ने इन विवादों पर हमेशा के लिए लगाम लगाने की कवायद शुरू कर दी है और एसपी ग्रुप की पूरी हिस्सेदारी को खरीदने पर मंथन चल रहा है.
एसपी ग्रुप खुद बेचना चाहता है हिस्सेदारी
एसपी ग्रुप इस समय भयंकर रूप से कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और इससे निजात पाने के लिए वह टाटा समूह में अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहता है. टाटा संस अगर एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी खरीद लेता है तो उसकी समूह पर पकड़ और मजबूत हो जाएगी. एसपी ग्रुप और टाटा समूह में पहले भी इस पर बातचीत हुई है, लेकिन अंतिम फैसला अभी तक नहीं हो सका है. साल 2025 में दोनों के बीच एक बार फिर इस मुद्दे पर चर्चा शुरू हुई, लेकिन कई बातों पर असहमति जारी है.
एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी खरीदने के क्या रास्ते
टाटा समूह के लिए एसपी ग्रुप को बाहर का रास्ता दिखाना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि इसके पास 18 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी है. कॉरपोरेट नियमों के अनुसार, 10 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी होने पर उसे प्रमोटर का दर्जा मिल जाता है. लिहाजा उसे समूह से बाहर निकालने के लिए कॉरपोरेट नियमों, टाटा संस के आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशंस और आरबीआई के दिशानिर्देशों का पालन करना पड़ेगा. ऐसे में टाटा समूह के पास एसपी ग्रुप को बाहर निकालने के लिए तीन ही रास्ते बचते हैं, जिसमें हिस्सेदारी की पुनर्खरीद, इक्विटी स्वैप और बाहरी खरीदारी को हिस्सेदारी बेचना और टाटा संस को लिस्ट कराना शामिल है. यह चारों विकल्प कैसे काम करते हैं, इस पर एक नजर डालते हैं.
एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी का बायबैक
टाटा संस अगर एसपी ग्रुप की पूरी हिस्सेदारी को खरीद ले तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. समूह ने इसके लिए फंड जुटाने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. इस काम के लिए टाटा समूह को 3 लाख करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी, लेकिन एसपी ग्रुप इसके लिए तैयार नहीं दिख रहा है. इसकी वजह है उस पर लगने वाला 36 फीसदी कैपिटल गेन टैक्स, जो सौदे के बाद होने वाले मुनाफे पर देना पड़ेगा. इस लिहाज से देखा जाए तो एसपी ग्रुप को हजारों करोड़ रुपये टैक्स के रूप में चुकाने पड़ सकते हैं.
इक्विटी स्वैप है आसान विकल्प
टाटा संस में एसपी ग्रुप की कुल हिस्सेदारी जिसमें साइरस इनवेस्टमेंट और स्टर्लिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प की 9.19 फीसदी की बराबर हिस्सेदारी है, उसे शेयरों में बदल दे. यह हिस्सेदारी टाटा स्टील और टीसीएस सहित कई कंपनियों में बंटी हुई है और इसे इक्विटी में बदलने पर इन कंपनियों में स्टॉक की संख्या भी बढ़ जाएगी. इससे एसपी ग्रुप को पैसे निकालने में आसानी होगी और ज्यादा टैक्स भी नहीं भरना पड़ेगा. साथ ही उसे 2026 1 अरब डॉलर के कर्ज चुकाने में भी मदद मिलेगी. इसमें दिक्कत ये है कि टाटा संस का आर्टिकल ऑफ एसोसिएशंस इसका विरोध करता है. जाहिर है कि पहले नियमों में बदलाव करना होगा, तभी इस पर अमल किया जा सकता है.
बाहरी खरीदारों को हिस्सेदारी बेचना
अगर टाटा समूह किसी भी कीमत पर एसपी ग्रुप को बाहर निकालना चाहता है तो उसे खुद के बजाय किसी बाहरी खरीदारी को इसकी हिस्सेदारी बेचनी पड़ेगी. इसके लिए किसी प्राइवेट इक्विटी फंड को एसपी ग्रुप की हिस्सेदारी ट्रांसफर की जा सकती है. इस काम के लिए टाटा को अतिरिक्त पूंजी की जरूरत नहीं होगी और एसपी ग्रुप से छुटकारा भी मिल जाएगा. इसके लिए मुश्किल ये है कि बिना लिस्टिंग के खरीदार मिलेंगे नहीं और टाटा संस का आर्टिकल ऑफ एसोसिएशंस के नियम भी इसके आड़े आते हैं.
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...
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New Delhi,New Delhi,Delhi
First Published :
October 07, 2025, 13:58 IST