Last Updated:July 28, 2025, 13:49 IST
Air India Crash: एयर इंडिया विमान हादसे में एक मां ने अपने 8 महीने के बेटे को अपने शरीर से ढंककर जान बचाई. आग में झुलसने के बावजूद दोनों ने पांच हफ्ते अस्पताल में संघर्ष किया और अब स्वस्थ हैं.

12 जून को अहमदाबाद में एक बहुत ही डरावना हादसा हुआ. एयर इंडिया का एक विमान, बीजे मेडिकल कॉलेज की रिहायशी बिल्डिंग से टकरा गया. हादसा इतना भयानक था कि हर तरफ आग, धुआं और लोगों की चीखें ही सुनाई दे रही थीं. सब कुछ एक पल में बर्बाद हो गया.

उसी इमारत में मनीषा कछड़िया नाम की 30 साल की महिला अपने आठ महीने के बेटे ध्यानांश के साथ रहती थीं. जैसे ही हादसा हुआ, चारों तरफ धुआं और आग फैल गई. कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन मनीषा ने हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने अपने बेटे को सीने से चिपकाया और जैसे-तैसे वहां से बाहर निकलने की कोशिश की.

आग बहुत तेज़ थी, दोनों बुरी तरह जल गए. मनीषा का चेहरा और हाथ बुरी तरह झुलस गए, और उनका करीब 25 फीसदी शरीर जल चुका था. वहीं छोटे ध्यानांश का 36 फीसदी शरीर जल गया था. उसके चेहरे, सीने, पेट और हाथ-पैरों पर गहरे ज़ख्म थे.

इस हादसे के बाद मां-बेटे को केडी अस्पताल में भर्ती कराया गया. अगले पांच हफ्ते उनके लिए किसी जंग से कम नहीं थे. दिन-रात डॉक्टर और नर्सें उनकी जान बचाने की कोशिश में लगे रहे. कई बार लगा कि शायद अब बचना मुश्किल है, लेकिन मनीषा ने हार नहीं मानी.

डॉक्टरों के मुताबिक मनीषा के शरीर से ही थोड़ी-सी स्वस्थ त्वचा लेकर ध्यानांश के जले हुए हिस्सों पर लगाई गई. प्लास्टिक सर्जन डॉ. ऋत्विज पारिख ने बताया कि यह काम बेहद जोखिम भरा था क्योंकि संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा था. लेकिन ये ज़रूरी था ताकि बच्चा ठीक हो सके.

केडी अस्पताल ने इस विमान हादसे में घायल छह लोगों का मुफ्त इलाज किया. इनमें मनीषा और उनका बेटा भी शामिल थे. अस्पताल के स्टाफ और डॉक्टरों की मेहनत और एक मां की ममता ने मिलकर इस चमत्कार को संभव बना दिया.

अब मनीषा और ध्यानांश को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है. ज़ख्म तो अब भी मनीषा के शरीर पर हैं, लेकिन उनकी आंखों में सुकून है. मनीषा कहती हैं, "हमने जो दर्द झेला, वो शब्दों में नहीं बता सकती. लेकिन अब जब मेरा बेटा ठीक है और मैं ज़िंदा हूं, तो यही सबसे बड़ी बात है."

ध्यानांश के लिए उसकी माँ सिर्फ़ एक माँ नहीं, बल्कि एक ढाल बन गईं. पहले उसे आग से बचाया और फिर अपने शरीर की त्वचा देकर उसे नई ज़िंदगी दी. इस हादसे ने फिर साबित कर दिया कि मां सिर्फ जन्म नहीं देती, वो हर मुसीबत से लड़कर अपने बच्चे को बचाती है — हर हाल में.