Chinmoy Krishna Das: बांग्लादेश से बड़ी खबर सामने आई है. वहां की एक अदालत ने बुधवार को हिंदू संत चंदन कुमार धर उर्फ चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के एक मामले में जमानत दे दी. चिन्मय के वकील प्रोलाद देब नाथ ने 'द डेली स्टार' को बताया कि हाईकोर्ट के हुक्म के बाद उनके जेल से रिहा होने की उम्मीद है. अगर सुप्रीम कोर्ट इस फैसले पर रोक नहीं लगाता है तो चिन्मय दास को रिहा कर दिया जाएगा.
जस्टिस मोहम्मद अताउर रहमान और जस्टिस मोहम्मद अली रजा की बेंच ने चिन्मय की तरफ से दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया. रिपोर्ट के मुताबिक 23 अप्रैल को चिन्मय के वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने हाईकोर्ट की बेंच से अपने मुवक्किल को जमानत देने की प्रार्थना की थी. उन्होंने तब कहा था कि चिन्मय बीमार हैं और बिना सुनवाई के जेल में मुसीबत झेल रहे हैं.
इससे पहले 4 फरवरी को हाईकोर्ट ने पूर्व इस्कॉन नेता चिन्मय दास की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह जानने के लिए रूल जारी किया था कि उन्हें जमानत क्यों न दी जाए? जबकि 23 अप्रैल को हाईकोर्ट ने रूल की सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख मुकर्रर की थी. इस प्रक्रिया के तहत, सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने रूल को 'एब्सोल्यूट' घोषित करते हुए फैसला सुनाया.लेकिन वो आज जेल से नहीं निकल पाएंगे. क्योंकि कल से 3 दिन बांग्लादेश में सरकारी छुट्टी है, इस बीच सरकार रिव्यू पिटिशन दायर कर सकती है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, पिछले साल 31 अक्टूबर को चटगांव के मोहोरा वार्ड बीएनपी के साबिक जनरल सेक्रेटरी फिरोज खान ने कोतवाली पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया था. इसमें चिन्मय और 18 अन्य पर बंदरगाह शहर के न्यू मार्केट इलाके में 25 अक्टूबर को हिंदू कम्युनिटी की एक रैली के दौरान राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का इल्जाम लगाया गया. वहीं, 26 नवंबर को चटगांव की एक अदालत ने चिन्मय को जेल भेज दिया. जबकि इससे एक दिन पहले राजधानी में उनकी गिरफ्तारी के बाद उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी.
दास की रिहाई की मांग
दास की गिरफ्तारी के बाद बांग्लादेश में आक्रोश फैल गया था, कई लोगों ने उनकी तत्काल रिहाई की मांग की थी. दास बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा के लिए काम करने वालों में शामिल रहे हैं. वे बांग्लादेश में हिंदू कम्युनिटी के मुखर समर्थक रहे हैं, उन्होंने अल्पसंख्यक संरक्षण कानून ( Minority Protection Act ), अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए न्यायाधिकरण ( Tribunal ) और अल्पसंख्यक मामलों के लिए समर्पित मंत्रालय की स्थापना जैसे प्रमुख सुधारों की मांग की है.
मोहम्मद यूनुस की अगुआई में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर यह इल्जाम लगता रहा है कि वह धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा देने में नाकाम रही है. पिछले साल अगस्त में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से देश में धार्मिक अल्पसंख्यक निशाने पर आ गए. भारत ने इस संबंध में बार-बार अपनी चिंता ढाका के साथ साझा की है. नई दिल्ली का कहना है कि अंतरिम सरकार को सभी माईनॉरिटी की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए.