DNA Analysis: दुनिया की करेंसी का बादशाह कहे जाने वाले अमेरिकी डॉलर की कुर्सी पर खतरा मंडरा है. यानी जिस करेंसी के भंडार की मौजूदगी किसी भी देश की संपन्नता का पैमाना है. जिस करेंसी में दुनिया का 80 फीसदी से ज्यादा कारोबार होता है. जिस करेंसी ने अमेरिका को दुनिया का सुपरपावर बनाया है. उस डॉलर की बादशाहत पर खतरा मंडरा रहा है.
इस खतरे को अब अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप भी महसूस कर रहे हैं. और अब डॉनल्ड ट्रंप ने करेंसी के इस युद्ध की तुलना वर्ल्ड वॉर से कर दी है. यानी आप कह सकते हैं दुनिया में करेंसी का वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया है. जिसमें दुनिया के सभी ताकतवर मुल्कों के बीच होड़ मच गई है. किस तरह अपनी करेंसी को दुनिया की दमदार करेंसी बनाया जाए. दुनिया के कुछ देशों का गुट डॉलर के विकल्प की तलाश कर रहा है. तो अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एलान कर दिया है. डॉलर राजा था. राजा है और अमेरिका उसे राजा बनाकर रखेगा.
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— Zee News (@ZeeNews) July 9, 2025
डॉलर दुनिया की इकोनॉमी का राजा कैसे बना?
आज आपको भी जानना चाहिए डॉलर दुनिया की इकोनॉमी का राजा कैसे बन गया. और अब ट्रंप को डॉलर की बादशाहत पर खतरा मंडराता क्यों नजर आ रहा है. करेंसी के वर्ल्ड वॉर वाले विश्लेषण की शुरुआत भी हम ट्रंप के सबसे बड़े डर और उससे निपटने के लिए उठाए गए कदम की खबर से करेंगे. इस वक्त ट्रंप को डॉलर के सबसे बड़े दुश्मन BRICS देश नजर आ रहे हैं. ब्राजील, रूस, भारत़, चीन और साउथ अफ्रीका की अगुवाई वाले BRICS में अब सऊदी अरब, यूएई, ईरान, मिस्र और इथियोपिया भी जुड़ चुके हैं. जिससे अब ये BRICS 10 बन चुका है.
इस लिहाज से ब्रिक्स देशों में अब दुनिया की 46 प्रतिशत आबादी रहती है. दुनिया का 40 फीसदी से ज्यादा तेल उत्पादन BRICS देश करते हैं. दुनिया की जीडीपी का 28 प्रतिशत इन्ही देशों से आता है. और अब ब्रिक्स में डॉलर के मुकाबले वैकल्पिक मुद्रा की चर्चा तेज हो गई है.
- इसीलिए डॉनल्ड ट्रम्प ने BRICS देशों पर 1 अगस्त से 10% एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने की धमकी दी.
- ट्रम्प ने BRICS पर अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने की कोशिश का आरोप लगाया.
- ट्रंप मानते हैं BRICS अमेरिका को नुकसान पहुंचाने और डॉलर को कमज़ोर करने के लिए बनाया गया है.
- ट्रंप ने डॉलर को चुनौती देने वालों को बड़ी कीमत चुकाने की धमकी दी है.
आज आपको ट्रंप के डर को समझने के लिए उनके उस बयान के बारे में जानना चाहिए, जिसमें वो डॉलर को राजा बनाए रखने की लड़ाई की तुलना वर्ल्ड वॉर से कर रहे हैं. डॉनल्ड ट्रंप कह रहे हैं. डॉलर राजा है. और हम उसे राजा बनाकर रखेंगे. लेकिन क्या आपको पता है जिस कुर्सी पर ट्रंप डॉलर को बिठाकर रखना चाहते हैं. आखिरकार डॉलर उस कुर्सी पर कैसे बैठा. डॉलर दुनिया की अर्थव्यवस्था का राजा कैसे बना. आज आपको हमारा ये विश्लेषण बहुत ध्यान से पढ़ना चाहिए. क्योंकि इतने विस्तार से आपको टीवी पर ये जानकारी नहीं मिलेगी. अमेरिका की करेंसी की किस्मत दो युद्धों ने बदल ली. इसकी शुरुआत हुई प्रथम विश्वयुद्ध से.
प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होने से ठीक एक साल पहले यानी वर्ष 1913 में अमेरिका ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया. इस दौरान भी ब्रिटेन का दुनिया के कारोबार में बोलबाला था और दुनिया में ज्यादातर कारोबार डॉलर नहीं बल्कि ब्रिटिश पाउंड में होता था.
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-ये वो दौर था जब ज्यादातर देश गोल्ड स्टैंडर्ड के जरिए अपनी करेंसी को सपोर्ट करते थे. यानी जिस देश के पास जितना सोना है वो उतने मूल्य की करेंसी को छाप सकता था.
-वर्ष 1914 में पहला विश्व युद्ध छिड़ने के बाद बहुत से देशों ने अपने मिलिट्री खर्चों को पूरा करने के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड को छोड़ दिया जिससे उनकी करेंसी की वैल्यू में गिरावट आने लगी.
-ब्रिटेन ने इस दौरान गोल्ड स्टैंडर्ड को नहीं छोड़ा. लेकिन 1931 में जब मंदी का दौर आया था, तब ब्रिटेन को भी गोल्ड स्टैंडर्ड छोड़ना पड़ गया.
-यहीं से दुनिया में ब्रिटेन के पाउंड पर भरोसा कम हुआ और अमेरिकी डॉलर पर भरोसा बढ़ने लगा.
- क्योंकि अमेरिका अभी भी उतनी ही करेंसी छाप रहा था. जितना उसके पास सोना था. यहीं से अमेरिका की करेंसी यानी डॉलर के राजा बनने की नींव पड़ गई.
जब जर्मनी, इटली, जापान से युद्ध लड़ने वाले जिन 44 देशों ने अमेरिका से हथियार खरीदे
लेकिन डॉलर को राजा बनाने का काम दूसरे विश्वयुद्ध ने किया. ये वो वक्त था जब अमेरिका ने ब्रिटेन की अगुवाई वाले एलाइड ग्रुप को हथियारों का मुख्य आपूर्तिकर्ता बन गया. एलाइड ग्रुप उन 44 देशों का समूह था, जो ब्रिटेन के नेतृत्व में जर्मनी-इटली और जापान से युद्ध लड़ रहे थे.
जर्मनी, इटली, जापान से युद्ध लड़ने वाले जिन 44 देशों ने अमेरिका से हथियार खरीदे उन सभी देशों की ओर से अमेरिका को इसका भुगतान गोल्ड में किया गया था.
- इसका नतीजा ये निकला कि दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के पहले ही दुनिया का ज्यादातर सोना अमेरिका के हाथ में आ चुका था । इस वक्त अमेरिका के पास दुनिया का 75 परसेंट सोना मौजूद था.
- इसके बाद साल 1944 में यानी दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने से पहले 44 देशों ने मिलकर दुनिया की इकोनॉमी को बचाने के लिए ब्रेटन वुड्स समझौता किया.
- जिसमें फैसला लिया गया कि दुनिया की करेंसी अब सोने से नहीं बल्कि अमेरिकी डॉलर से जुड़ी रहेंगी.
- और अमेरिकी डॉलर गोल्ड से जुड़ा रहेगा. उस वक्त एक औंस सोने की कीमत 35 डॉलर आंकी गई. औंस सोने चांदी जैसी धातुओं के भार को नापने की एक ईकाई है.
- ब्रेटन वुड्स समझौते के कारण अमेरिकी डॉलर धीरे-धीरे दुनिया की मजबूत करेंसी बन गई और कई देशों ने इसे अपने विदेशी मुद्रा भंडार में रखना शुरू कर दिया, जिसने डॉलर को और ताकतवर बनाया.
वियतनाम वॉर और वेलफेयर पर भारी खर्च
लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब अमेरिका ने गोल्ड और डॉलर को डीलिंक कर दिया. यानी दोनों को अलग कर दिया. इसकी वजह थी वियतनाम वॉर और वेलफेयर पर भारी खर्च. जिसकी वजह से अमेरिका का गोल्ड रिजर्व तेजी से खत्म हुआ. तब 15 अगस्त 1971 के दिन अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने सोने और डॉलर को डीलिंक कर दिया. यानी दूसरे देश अब डॉलर देकर अमेरिका से सोना नहीं ले सकते थे. इतिहास में इस घटना को निक्सन शॉक के नाम से याद किया जाता है. लेकिन उस वक्त, डॉलर की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अमेरिका ने एक और बड़ा कदम उठाया. इसे ध्यान से समझिएगा.
-अमेरिका ने OPEC देशों के साथ यानी तेल उत्पादन करने वाले देशों के समूह के साथ मिलकर पेट्रोडॉलर सिस्टम बनाया.
-इसके लिए 1973 में अमेरिका ने सऊदी अरब और OPEC देशों से एक समझौता किया.
-जिसके मुताबिक तेल का व्यापार सिर्फ US Dollar में करने की बात तय हुई.
-अमेरिका ने सऊदी अरब और OPEC देशों को इसके बदले में सुरक्षा की गारंटी दी.
-इससे पूरी दुनिया में तेल खरीदने के लिए डॉलर की जरूरत बनी रही. और इस तरह करेंसी के राजा की कुर्सी पर डॉलर का दबदबा निर्विवाद रूप से बरकरार रहा। जिसे दूर-दूर तक चुनौती देने वाला कोई नहीं था.
-साल 2023 तक दुनिया का 80% क्रूड ऑयल व्यापार डॉलर में होता रहा और डॉलर किंग बना रहा.
यानी पहले सोने और बाद में तेल ने डॉलर को किंग बनाकर रखा. लेकिन अब दुनिया की कई करेंसी ने डॉलर को चुनौती देना शुरू कर दिया है.
ये करेंसी हैं अभी डॉलर के सबसे करीब
डॉनल्ड ट्रंप को सबसे बड़ा खतरा ब्रिक्स देशों की करेंसी के विचार से आ रहा है. क्योंकि तेल उत्पादन,जनसंख्या और जीडीपी में शामिल देश बड़ी ताकत हैं. लेकिन अभी ब्रिक्स करेंसी एक विचार है. जिस पर अभी सिर्फ चर्चा चल रही है. आज आपको दुनिया की उन करेंसी के बारे में जानना चाहिए जो अभी डॉलर के सबसे करीब हैं.
-इसमें सबसे ऊपर है यूरो. जिसकी ताकत का अधार यूरोपियन यूनियन की संयुक्त अर्थव्यवस्था है. जिसमें 27 देश शामिल हैं.
- दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार का 20% यूरो में रहता है. इसका मतलब डॉलर के बाद दूसरे नंबर पर दुनिया का भरोसा यूरो पर है.
- डॉलर को चुनौती देने में दूसरे नंबर पर चीन की करेंसी युआन आती है.
- चीन खुद दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और दुनिया का प्रोडक्शन हब है.
- Belt & Road Initiative के जरिए चीन कई देशों से युआन में ट्रेड बढ़ा रहा है.
- रूस और चीन के बीच ऊर्जा का बड़ा व्यापार युआन में हो रहा है.
- इसके अलावा BRICS में शामिल देशों में युआन की भूमिका बढ़ रही है.
- इसके अलावा ब्रिटिश पाउंड ऐतिहासिक रूप से मजबूत है.
- लेकिन ब्रिटेन का छोटा आर्थिक आकार और ब्रेग्ज़िट के बाद सीमित प्रभाव इसके वैश्विक करेंसी बनने की राह में रोड़ा है.
डॉलर का वर्चस्व बहुत मजबूत
लेकिन मौजूदा स्थिति में डॉलर का वर्चस्व बहुत मजबूत है. दुनिया में 58% ग्लोबल फॉरेक्स रिजर्व अमेरिकी डॉलर मे हैं. और 80% इंटरनेशनल ट्रेड अमेरिकी डॉलर में होता है. ऐसे में चीन की युआन और यूरो ही दो प्रमुख करेंसी हैं जो लॉन्ग टर्म में अमेरिकी डॉलर आधारित व्यवस्था को चुनौती देने की स्थिति में हैं. आज आपको डॉनल्ड ट्रंप के अंदर नजर आ रहे संभावित ब्रिक्स करेंसी के डर पर विशेषज्ञों की राय को भी जानना चाहिए. यानि ब्रिक्स करेंसी बनी तो डॉनल्ड ट्रंप का डर सही साबित हो सकता है. और डॉलर की बादशाहत खतरे में भी आ सकती है.