Last Updated:November 28, 2025, 22:41 IST
Al Falah University Land Scam Revelation: अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी पर बड़ा आरोप लगा है कि उन्होंने मृतकों के नाम पर फर्जी GPA तैयार कराकर जमीन तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम ट्रांसफर कर दी. ED की जांच में खुलासा हुआ कि कई मालिक दशकों पहले मर चुके थे, फिर भी दस्तावेज 2004 दिनांकित बनाए गए और 2013 में सेल डीड तक तैयार हुई. यह पूरा सौदा फर्जी और धोखाधड़ी आधारित बताया गया है.
ED ने खुलासा किया कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े फाउंडेशन ने मृत व्यक्तियों के नाम पर फर्जी GPA बनाकर जमीन हासिल की. Al Falah University Land Scam Revelation: दिल्ली ब्लास्ट केस के बाद अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर शुरू हुई जांच अब एक बड़े आर्थिक घोटाले तक पहुंच गई है. ED की जांच में जो फैक्ट सामने आए हैं वो चौंकाने वाले हैं. आरोप है कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी के चांसलर जावेद अहमद सिद्दीकी ने मरे हुए लोगों के नाम पर फर्जी GPA तैयार कराई. उन्हीं के नाम पर दस्तावेज बनाए और अंततः उनकी जमीनें तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम कर दी गईं. यह खुलासा यह भी बताता है कि जमीन सौदों में किस तरह मृत व्यक्तियों की पहचान और हस्ताक्षर तक गढ़े गए जो मामला केवल धोखाधड़ी नहीं बल्कि सुनियोजित कब्जे की ओर इशारा करता है.
मामला केवल पेपर फ्रॉड तक सीमित नहीं है. जिस खसरा नंबर 792 की जमीन पर कार्रवाई हुई. वह ऐसे लोगों के नाम दर्ज थी जिनकी मौत सालों पहले हो चुकी थी. फिर भी दस्तावेज 2004 के दिखाए गए, मानो मृतक लोग ज़िंदा हों और उन्होंने खुद पावर ऑफ अटॉर्नी जारी कर दी हो. इससे सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ जमीन पर कब्जे का खेल था या इसके पीछे और बड़े नेटवर्क सक्रिय थे? ED की अब तक की जांच इसी दिशा में आगे बढ़ रही है.
फर्जी दस्तावेज, मृतक मालिक और जमीन ट्रांसफर
ED के अनुसार जमीन ट्रांसफर की पूरी प्रोसेस फर्जी General Power of Attorney (GPA) पर आधारित थी. GPA दस्तावेज पर 7 जनवरी 2004 की तारीख दर्ज थी. लेकिन जिन लोगों के नाम कागजों में थे, वे इससे कई दशक पहले मर चुके थे. इसके बावजूद उसी GPA के आधार पर जमीन बेची भी गयी और ट्रांसफर भी कर दी गई.
मामला केवल पेपर फ्रॉड तक सीमित नहीं है.
मृतक व्यक्तियों के नाम पर फर्जीवाड़ा- प्रमुख नाम
| नाम | कब हुई मौत |
| नथू | 1972 |
| हरबंस सिंह | 1991 |
| हरकेश | 1993 |
| शिव दयाल | 1998 |
| जय राम | 1998 |
प्वाइंट में समझिए पूरा जमीन घोटाला
मृतक व्यक्तियों के नाम पर GPA बनाई गई. दस्तावेज़ों में फर्जी अंगूठे और हस्ताक्षर. इन्हीं दस्तावेजों से आगे सेल डीड तैयार. जमीन तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन के नाम की गई. अंतिम लाभार्थी वही संस्था जिस पर यूनिवर्सिटी से संबंध होने के आरोप.नौ साल बाद बना सेल डीड-यानी धांधली को ‘कानूनी रूप’ देने की कोशिश
2004 में फर्जी GPA तैयार. 2013 में रजिस्टर्ड सेल डीड बनाई गई. ₹75 लाख में जमीन बेची दिखायी गई. बेचने वाला विनोद कुमार, पर मालिक मृत लोग भी शामिल. खरीदार-तर्बिया एजुकेशन फाउंडेशन (अल-फलाह से जुड़ा).यह क्रम बताता है कि फर्जी GPA सिर्फ एक पहला कदम था. असली लक्ष्य जमीन को फाउंडेशन के नाम करना था और वह करीब नौ साल बाद पूरा हुआ.
यूनिवर्सिटी का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया जब लालकिला धमाके के बाद इसके एक प्रोफेसर पर संलिप्तता के आरोप लगे.
GPA क्या है और इसे धोखाधड़ी में कैसे इस्तेमाल किया गया?
GPA ऐसा दस्तावेज होता है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को अपनी ओर से दस्तावेज साइन करने, जमीन खरीदने-बेचने जैसे अधिकार देता है. परंतु यदि जिस व्यक्ति की ओर से अधिकार दिए जा रहे हैं, वह जीवित ना हो तो GPA कानूनी रूप से शून्य मानी जाती है. यहां यही लूपहोल अपराध का आधार बना.
लालकिला ब्लास्ट से लेकर जमीन घोटाले तक-जांच कैसे पहुंची इस मुकाम तक
यूनिवर्सिटी का नाम पहली बार तब सुर्खियों में आया जब लालकिला धमाके के बाद इसके एक प्रोफेसर पर संलिप्तता के आरोप लगे. इसके बाद शामिल लोगों की गिरफ्तारी, यूनिवर्सिटी पर मान्यता संबंधी सवाल, फिर मनी लॉन्ड्रिंग और अब जमीन अधिग्रहण का खुलासा-सीढ़ियां एक के बाद एक खुलती चली गईं. यहां यह स्पष्ट होता है कि मामला सिर्फ शिक्षा संस्थान का नहीं, बल्कि नेटवर्क, प्रभाव और पैसे के खेल से जुड़े सवाल खड़े करता है.
कहानी यहीं रुकने वाली नहीं
ED की जांच ने संकेत दिए हैं कि जमीन कब्जे का यह मामला और भी गहराई लिए हुए है. फर्जी दस्तावेज बनाना, मृत व्यक्तियों की पहचान का दुरुपयोग करना और जमीन को संस्थान के नाम दर्ज कराना. ये सब इस जांच को केवल मनी लॉन्ड्रिंग ही नहीं बल्कि सुनियोजित कब्जे और धोखाधड़ी में बदल देते हैं. आगे ED की कार्रवाई तय करेगी कि यह मामला सिर्फ एक विश्वविद्यालय तक सीमित है या कहीं और भी इसकी जड़ें मौजूद हैं.
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November 28, 2025, 22:41 IST

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